मंत्री ने दी शिक्षकों को चेतावनी, कहा- वर्किंग डे में धरना प्रदर्शन किया तो होगी कार्रवाई
शिक्षा मंत्री ओपी सोनी ने कहा कि यदि शिक्षकों ने धरना देना है तो छुट्टी वाले दिन दें, यदि वर्किंग डे में प्रदर्शन करेंगे तो सख्त कार्रवाई होगी।
जेएनएन, श्री मुक्तसर साहिब। धरना प्रदर्शन करना सबका अधिकार है, लेकिन जो बच्चों की शिक्षा का नुकसान करेगा उसे सहन नहीं किया जाएगा। यदि शिक्षकों ने धरना देना है तो छुट्टी वाले दिन दें, यदि वर्किंग डे में प्रदर्शन करेंगे तो सख्त कार्रवाई होगी। यह कहना है शिक्षा व पर्यावरण मंत्री ओपी सोनी का।
उन्होंने कहा कि सभी शिक्षक करीब दस वर्ष पहले केंद्र की योजना के अधीन सोसायटी के माध्यम से बार्डर के स्कूलों में भेजने के लिए भर्ती किए गए थे। इनकी अपनी डिमांड थी कि उन्हें शिक्षा विभाग में ले लिया जाए और उन्हें रेगुलर किया जाए। बैठक भी हुई और जो इन्होंने कहा था वही किया गया है। इन्होंने 10,300 वेतन लेने की बात कही थी, लेकिन कैप्टन सरकार की ओर से 15 हजार दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि नौ हजार के करीब शिक्षकों को पक्का करना सरकार का ऐतिहासिक फैसला है। इससे शिक्षक खुश भी हैं। शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने के लिए नर्सरी से ही अंग्रेजी शुरू करने जा रहे हैं। शिक्षा बोर्ड की ओर से 44 पुस्तकों का सिलेबस बदलने के बाद बोर्ड को होने वाले पौने नौ करोड़ रुपये के नुकसान पर कहा कि अभी तो कुछ नहीं बदला है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाने के बारे में कहा कि वह इंडस्ट्री को बंद तो नहीं होने देंगे क्योंकि पहले ही उद्योग कम है। वह उद्योगपतियों से बैठक कर उन्हें नई टेक्नोलॉजी के साथ काम करने को कहेंगे।
सरकार के गलत फैसले से मुश्किल में शिक्षक : प्रो. चावला
उधर, अमृतसर में भाजपा नेत्री व पूर्व मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा है कि पिछले कुछ दिनों से पंजाब के वे अध्यापक सड़कों पर बैठे हैं जिनको प्रदेश सरकार ने स्थायी सेवा में करने के नाम पर मुसीबत में डाल दिया और उनका वेतन 42000 से कम करके 15000 रुपये कर दिया। उन्होंने कहा कि क्या यह मान लिया जाए कि सरकार ने बिना सोचे समझे गलत फैसला लेकर अध्यापकों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया, सड़कों पर बैठने के लिए विवश कर दिया।
चावला ने कहा कि मुख्यमंत्री निश्चित ही यह जानते होंगे कि आटा-दाल का भाव क्या है। वैसे उन लोगों को पता नहीं होगा जो दौलत में पलते और खेलते हैं। आखिर देश के किस नियम के अनुसार अध्यापकों का वेतन 65 प्रतिशत कम कर दिया। क्या सरकार यह चाहती है कि सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले गरीबों के बच्चे कभी भी जिंदगी में आगे न बढ़ सकें।