जीवन में लक्ष्य निर्धारित करें : दिव्यानंद गिरि
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि मनुष्य सही और गलत दिशा का चुना
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने कहा कि मनुष्य सही और गलत दिशा का चुनाव ही नहीं कर पाता है। उसे जीवन में एक लक्ष्य बनाना चाहिए कि उसे किस ओर जाना है और क्या करना है। हमेशा याद रखो सही दिशा होने पर ही मेहनत पूरा रंग लाती है और यदि दिशा ही गलत हो तो चाहे आप कितनी भी मेहनत करो उसका कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। इस लिए सही दिशा तय करो कामयाबी जरूर मिलेगी।
दिव्यानंद जी ने ये विचार श्री रघुनाथ मंदिर में आयोजित वार्षिक माघ महात्म एवं ज्ञान भक्ति सत्संग कार्यक्रम के दौरान मंगलवार को प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहे व्यक्त किए।
स्वामी जी ने बताया कि एक बार हट्टा-कट्टा व लंबा-चौड़ा पहलवान किस्म का व्यक्ति समान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा। उसने आटो रिक्शा वाले को कहा कि मुझे श्री हनुमान मंदिर जाना है। आटो रिक्शा वाले ने उससे वहां तक ले जाने के सौ रुपये किराया मांगें। मगर व्यक्ति ने बुद्धिमानी दिखाते हुआ कहा कि इतने रुपये तो नाजायज हैं। वह खुद ही वहां तक पैदल ही सामान लेकर चला जाएगा। इतना कहते हुए वो खुद ही समान लेकर चल पड़ा। वह व्यक्ति काफी दूर समान ले कर चलता रहा। कुछ देर बाद उसे फिर वही रिक्शा वाला नजर आया तो उसने पूछा भाई अब तो मैं आधे से ज्यादा दूरी तय कर चुका हूं। अब यहां से श्री हनुमान मंदिर के कितने रुपये लोगे। रिक्शा वाले ने जवाब दिया अब तो दो सौ रुपये लगेंगे। उस आदमी ने कहा पहले तो सौ रुपये मांगें थे, परन्तु अब मैं इतने कदम आगे खुद ही आग गया हूं तो सौ रुपये और बढ़ाकर दो सौ रुपये मांग रहे हो। रिक्शा वाले ने जवाब दिया कि आपने सही दिशा का चुनाव नहीं किया। इतनी देर से आप श्री हनुमान मंदिर के विपरीत दिशा में जा रहे थे और अब मंदिर दोगुनी दूरी पर आ गया है। इसलिए दो सौ रुपये किराया ही लूंगा।
स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने इस ²ष्टांत का अर्थ समझाते हुए कहा कि ठीक इसी तरह ही ¨जदगी में कई स्थानों पर व्यक्ति बिना गंभीरता से सोचे-समझे काम शुरू कर देता है और बाद में उसे पछताना पड़ता है। किसी काम को हाथ में लेने से पहला पूरी तरह सोच विचार कर ले कि आप जो कि रहे हो, वह सही है। क्या वह कार्य ही आपके लक्ष्य का हिस्सा है या नहीं। अन्यथा आपको भी पहलवान की तरह बाद में कहीं पछताना न पड़ जाए।