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पूनम की चांदनी में दो मंदिरों में तैयार सवा दो क्विंटल खीर

मोगा शरद पूर्णिमा के दिन तैयार खीर को रातभर चांदनी में खुला रखकर अगले दिन प्रसाद के रूप में वितरित करने का इतिहास मोगा प्राचीन शिवाला मंदिर का

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 08:00 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 05:59 AM (IST)
पूनम की चांदनी में दो मंदिरों में तैयार सवा दो क्विंटल खीर
पूनम की चांदनी में दो मंदिरों में तैयार सवा दो क्विंटल खीर

जागरण संवाददाता, मोगा

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शरद पूर्णिमा के दिन तैयार खीर को रातभर चांदनी में खुला रखकर अगले दिन प्रसाद के रूप में वितरित करने का इतिहास मोगा प्राचीन शिवाला मंदिर का 80 साल पुराना है। यह परंपरा मंदिर में साल 1940 में तब मंदिर के प्रमुख पुजारी पं. जयराम दास उर्फ रामगिर ने शुरू कराई थी। तब से निरंतर हर साल शरण पूर्णिमा पर यहां पर खीर तैयार की जाती है। इस बार भी मंदिर में 100 किलो दूध की खीर तैयार की जा रही है, जो 31 अक्टूबर की सुबह आरती के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित की जाएगी।

शिवाला मंदिर के पुजारी पं. अक्षय शर्मा बताते हैं कि पं. जयराम दास मंदिर की सेवा के दौरान धर्म और आध्यात्म के वैज्ञानिक तथ्यों के साथ श्रद्धालुओं को जोड़ते थे। इसी सोच के साथ उन्होंने साल 1940 में शरद पूर्णिमा के दिन खीर तैयार कर रातभर उसे चांदनी में रखने की परंपरा शुरू की थी। मंदिर वर्तमान में घनी आबादी के बीच में आ चुका है। मगर उस समय मंदिर काफी खुला हुआ था। मंदिर के बराबर बड़ा बगीचा था। वहां पर रात भर खीर चांदनी की रोशनी में खुली रखी जाती थी। मंदिर के साथ प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य का तब मंदिर बेहतरीन उदाहरण था। उस समय भी शरद पूर्णिमा के दिन प्रकृति का यह नजारा देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते थे और अगले दिन मंदिर से ही प्रसाद के रूप में खीर लेकर जाते थे। हालांकि अब ये परंपरा लोगों ने घर-घर में भी शुरू कर दी है।

उधर, श्री सनातन धर्म हरि मंदिर पाठशाला मंदिर के प्रमुख पुजारी पं. पवन गौड़ ने बताया कि मंदिर में चांदनी की रोशनी के बीच ही सवा क्विंटल दूध की खीर शुक्रवार रात तैयार की जाएगी और इसे शनिवार सुबह छह बजे आरती के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित करेंगे।

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यह है वैज्ञानिक आधार

पं.अक्षय शर्मा ही नहीं बल्कि डायटीशियन शीनम कालड़ा भी मानती हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होती है। दूध में लैक्टिक नाम का एक एसिड होता है,जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति को ग्रहण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया काफी तेजी से होती है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने से खीर ज्यादा पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर होती है।

यह भी वैज्ञानिक मान्यता है कि इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए, क्योंकि चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे इम्युनिटी बढ़ती है, वायरस के संक्रमण से बचाती है।


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