ऑनलाइन शिक्षा ले रहे छात्रों को याद आने लगी कक्षा
मोगा गत पांच माह से कोरोना वायरस के मद्देनजर स्कूलों व कॉलेजों के बंद रहने के कारण विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है।
अश्विनी शर्मा/तरलोक नरूला, मोगा
गत पांच माह से कोरोना वायरस के मद्देनजर स्कूलों व कॉलेजों के बंद रहने के कारण विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है। इस आधुनिकता के असर को कितना और झेलना पड़ेगा, इसकी समयसीमा अभी निर्धारित नहीं है। वहीं अब विद्यार्थियों को अब अपने स्कूल व कॉलेजों की कक्षा याद आने लगी है। मगर, महामारी के चलते सभी मजबूर हैं और ऑनलाइन अपने शिक्षकों के माध्यम से घर बैठकर पढ़ाई ग्रहण कर रहे है। वहीं, दूसरी ओर विद्यार्थियों में महामारी पर जीत का संकल्प भी सिर चढ़कर बोल रहा है। विद्यार्थियों का मानना है कि जल्द ही यह बुरा दौर गुजर जाएगा और जल्द एक नई सुबह होगी और वे फिर से अपने-अपने स्कूल व कॉलेज की कक्षा में बैठक कर शिक्षा ग्रहण करेंगे।
बता दें कि इस आधुनिक युग में भले ही बच्चे अपने मोबाइल फोन के द्वारा शिक्षकों द्वारा भेजे वर्क फॉर होम के चलते पढ़ाई कर रहे हैं। मगर, स्कूल जैसा माहौल न मिल पाने से विद्यार्थियों पर मानसिक दबाव भी देखने को मिल रहा है। साथ ही थकावट भी शिक्षा ग्रहण करने में बाधा पैदा करने लगती है। शिक्षा में ऑनलाइन प्रक्रिया का कितना असर विद्यार्थियों को झेलना पड़ रहा है, इसी विषय पर दैनिक जागरण को विद्यार्थियों ने अपनी परेशानी बताई।
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जरूरत है फिर से पुराने लाइफस्टाइल की
किचलू पब्लिक स्कूल में 10वीं में पढ़ने वाली सना जिदल ने बताया कि कोविड-19 के कारण स्कूल की बजाय घर पर ही ऑनलाइन काम करना पड़ रहा है। बेशक यह महामारी से एक बचाव का बेहतर तरीका है। मगर, कई-कई घंटे ऑनलाइन काम करने से मानसिक दबाव बढ़ने लगता है और थकावट भी जल्द महसूस होने लगती है। जैसा माहौल स्कूल की कक्षा में रहता है, वह ऑनलाइन नहीं मिल पाता है। किसी प्रकार की परेशानी का भी हल उस तरह नहीं निकल पाता है, जैसे स्कूल में शिक्षकों से रू-ब-रू होकर निकलता था। लंबे समय तक ऐसा करने से दिन भर सुस्ती छाई रहती है। घर बैठकर आराम नहीं बल्कि मुश्किलें बढ़ी हैं। जल्द महामारी ठीक हो और हम अपने शेड्यूल के मुताबिक स्कूल जाएं। साथ ही पुराने लाइफस्टाइल के अनुसार जीवन बिताएं।
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ऐसा लगता है, स्कूल गए वर्षो बीत गए
सेंट जोसेफ स्कूल के नौंवी के छात्र प्रणव मिड्ढा ने बताया कि शिक्षा ग्रहण करने का सही आनंद तो स्कूल में अध्यापक के सामने बैठकर ही आता है। यह तो महामारी के कारण मजबूरी बनी हुई है कि घर पर बैठकर पढ़ना पड़ रहा है। रोजाना दो से तीन घंटे की ऑनलाइन कक्षा लगती है। जिसके कारण मोबाइल के सामने ही लगातार बैठना पड़ता है। लगातार बैठने से आंखें भी दर्द करने लगती हैं व सिर दर्द भी होने लगता है। दूसरा घर में वो माहौल नहीं मिलता, जो स्कूल में कक्षा में होता है। जब हम सभी अपने सहपाठियों के साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं। लगातार पांच महीनों से घर में पढ़ाई करते हुए ऐसा लगने लगा है जैसे स्कूल गए कई वर्ष बीत गए हों।
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यू-ट्यूब का लेना पड़ता है सहारा
एसडी कन्या स्कूल की 12वीं कक्षा की कॉमर्स की छात्रा गीताली सचदेवा का कहना है कि उनके स्कूल का काम उनके पापा के फोन पर आता है। जब पापा घर पर आते हैं, तब वह स्कूल के वर्क को अपने लैपटाप में इंस्टॉल कर लेती है। इस दौरान कोई टॉपिक समझ नहीं आते हैं, तो उसे यू-ट्यूब पर सर्च करके हल करना पड़ता है। गीताली का कहना है कि हर महीने टेस्ट होता है, जिसे सब्जेक्ट के अध्यापक व कक्षा के इंचार्ज को भेजा जाता है। जब घर पर बोर हो जाते हैं तब स्कूल की याद आती है। ईश्वर से प्रार्थना है कि जल्द इस महामारी को खत्म करे, ताकि जल्द स्कूल जा पाएं।
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रिविजन पर करनी पड़ रही अधिक मेहनत
डीएन मॉडल स्कूल के नौवीं कक्षा के छात्र हार्दिक का कहना है कि कोविड-19 के कारण कोरोना महामारी के बचाव हेतु सरकारी आदेशों का पालन करने के लिए स्कूल ने उन्हें ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने का जो प्रयास किया है, वह सराहनीय है। मगर, घर पर स्कूल जैसा आनंद नहीं मिल पाता है। रोजाना सुबह स्कूल से आठ बजे लिक आता है, जिसको सब्मिट करने पर हाजिरी लगती है। उसके बाद दूसरे लिक में सब्जेक्ट का टेस्ट वर्क आता है। उसे निर्धारित समय में पूरा करके ऑनलाइन भेजना होता है। इन दिनों 20 अगस्त से ऑनलाइन होने वाली परीक्षाओं की रिविजन करवाई जा रही है। जिसको लेकर उन्हें पहले से अधिक मेहनत करनी पड़ रही है।