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समय के साथ निर्जला एकादशी का भी बदला है स्वरूप

आध्यात्मिक महत्व वाला निर्जला एकादशी पर्व मंगलवार को है। यानि इस दिन महिलाएं बिना अन्न जल के परिवार के कल्याण के लिए व्रत रखेंगी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Jun 2020 10:47 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 06:14 AM (IST)
समय के साथ निर्जला एकादशी का भी बदला है स्वरूप

तरलोक नरूला, मोगा : आध्यात्मिक महत्व वाला निर्जला एकादशी पर्व मंगलवार को है। यानि इस दिन महिलाएं बिना अन्न जल के परिवार के कल्याण के लिए व्रत रखेंगी। हालांकि मोगा में इस व्रत को लेकर कोई बड़ा इतिहास तो नहीं है, लेकिन व्रत को ज्यादातर महिलाएं रखकर परिवार के कल्याण सुख शांति की कामना करती है। समय के साथ इस व्रत में बदलाव आया है। पहले मिट्टी के घड़ों, पंखे, मौसमी फल दान करने की परंपरा थी। मिट्टी के घड़े दान करने की प्रथा आज भी है, लेकिन इनके स्थान पर बहुत सी महिलाएं स्टील के जग भी दान करने लगी। गर्मी से शीतलता प्रदान करने के लिए महिलाएं गुलाब जल का भी दान करती हैं।

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निर्जला एकादशी भगवान विष्णु की तिथि है। निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु का ध्यान करके ब्राह्मण को मंदिर में जाकर घट, जल, पंखे, फल का दान करें। माना जाता है कि व्रत करने से स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिस घर में व्रत रखा जाता है उस घर में कोई कष्ट नहीं आता।

अक्षय शर्मा, पुजारी

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निर्जला एकादशी पर जलदान का ज्यादा महत्व है। इसलिए भक्तजन जल की छबीलें लगाकर लोगो को जल पिलाते हैं। उन्होंने बताया कि निर्जला एकादशी पर सुबह जल का बर्तन भरकर उसके साथ में चीनी, फल, वस्त्र आदि रखकर विष्णु की पूजा करें। अपने पूर्वजों का नाम लेकर दान करें।

पंडित पवन गौतम, पुजारी, -----------------

पिछले 30 वर्षो से निर्जला एकादशी का व्रत रख रही हैं। सुबह जल ग्रहण करके व्रत आरंभ करती हैं। दिनभर कुछ न खाती हैं। शाम को चाय के साथ फल खा लेती हैं। अगले दिन सुबह जल ग्रहण कर व्रत की पूर्णाहुति करती हैं।

नीलम रानी, गृहिणी

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सुबह जल के साथ फलाहार ग्रहण कर व्रत को आरंभ करती हैं। अगले दिन सुबह जल ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करती हैं। अब बजुर्गो ने उन्हें सायं काल भी सैन की कथा करके चाय व जल पीने की अनुमति दे दी है। वे 10 वर्ष से व्रत रख रही हैं।

चंदन नौहरिया, गृहिणी -----------------

992 में शादी के बाद से ही निर्जला एकादशी का व्रत रखती आ रही हैं। इस बार वे जरूरतमंदों को बर्तन फल व मिटटी की बनी सुराही दान करेंगी।

मीना सच्चर, अध्यापिका ---------------

निरंतर सात वर्षो से व्रत रख रही हैं। इस बार वे ब्राह्मणों के अलावा स्लम बस्ती में जाकर जरूरतमंदों को भीफल व अन्य सामग्री दान करेंगी।

रमा शर्मा, सेवा निवृत्त, अध्यापिका


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