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गोद लिए गांव को नहीं मिला सांसद का दुलार

मोगा फरीदकोट लोकसभा क्षेत्र के सांसद प्रोफेसर साधू सिंह का गोद लिया गांव सीवरेज सड़क नालियों जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। हैरानी की बात है सांसद प्रो. साधू सिंह गोद लेने से अब तक चार साल में गांव में सिर्फ दो बार पहुंचे हैं। आम आदमी पार्टी के सांसद प्रोफेसर साधू सिंह को सबसे पहले लोकसभा क्षेत्र के गोद लिए गांव फतेहगढ़ कोरोटाना के लोगों ने उस समय देखा था जब उन्होंने गांव फतेहगढ़ कोरोटाना को गोद लेने का ऐलान किया था। दूसरी बार 1 जनवरी 2015 को उस समय फतेहगढ़ कोरोटाना पहुंचे थे जब गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बसंत सिंह का भोग था। उसके बाद से आज तक सांसद ने एक बार भी गोद लिए गांव की सुध ही नहीं ली।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 05:39 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 06:21 AM (IST)
गोद लिए गांव को नहीं मिला सांसद का दुलार
गोद लिए गांव को नहीं मिला सांसद का दुलार

सत्येन ओझा, मोगा : फरीदकोट लोकसभा क्षेत्र के सांसद प्रोफेसर साधू सिंह का गोद लिया गांव सीवरेज, सड़क, नालियों जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। हैरानी की बात है सांसद प्रो. साधू सिंह गोद लेने से अब तक चार साल में गांव में सिर्फ दो बार पहुंचे हैं। आम आदमी पार्टी के सांसद प्रोफेसर साधू सिंह को सबसे पहले लोकसभा क्षेत्र के गोद लिए गांव फतेहगढ़ कोरोटाना के लोगों ने उस समय देखा था, जब उन्होंने गांव फतेहगढ़ कोरोटाना को गोद लेने का ऐलान किया था। दूसरी बार 1 जनवरी 2015 को उस समय फतेहगढ़ कोरोटाना पहुंचे थे जब गांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बसंत सिंह का भोग था। उसके बाद से आज तक सांसद ने एक बार भी गोद लिए गांव की सुध ही नहीं ली।

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गांव के सरपंच व कांग्रेस नेता दिलबाग सिंह बताते हैं 70 हजार की आबादी वाले इस गांव की सबसे बड़ी समस्या सीवरेज की है। गांव में 5 छप्पड़ हैं। बरनाला-जालंधर हाईवे बनने के बाद गांव दो भागों में बंट गया है पहले एक हिस्से का पानी दूसरे में चला जाता था तब ऐसी समस्या नहीं थी। लेकिन अब हाईवे का लेवल काफी ऊंचा चला जाने के कारण गांव के दोनों हिस्सों का पानी एक दूसरे की तरफ नहीं जा पाता है जिससे सीवरेज का पानी गांव की गलियों नालियों में भरा रहता है। हालांकि पूरे गांव में सीवरेज डाल दिया गया है, लेकिन उसका कोई निकास नहीं है। यही नहीं गांव से गुजरने वाले हाईवे का साइड लाइन न होने के कारण हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है। हाईवे की साइड लाइन के लिए अब तक 9 करोड़ रुपये जारी हो चुका है लेकिन वह पैसा कहां गया किसी को नहीं पता।

हैरानी की बात है गांव फतेहगढ़ कोरोटाना में हाल ही में केंद्र सरकार की सहायता से सरकारी कॉलेज का निर्माण कार्य शुरू हुआ है। लेकिन 70000 की आबादी वाले गांव में अभी तक सिर्फ मिडिल स्कूल है। जिससे गांव के लोग आसपास के दूसरे गांव में पढ़ने के लिए जाते हैं। गांव फतेहगढ़ कोरोटाना में छठी पातशाही गुरुद्वारा रोड पर दुकान के बाहर बैठे बुजुर्ग मुख्त्यार सिंह ने बताया कि गुरुद्वारे को जाने वाली सड़क पिछले 20 सालों से नहीं बनी है। सीवरेज बिछा दिया गया है उसका कोई निकास नहीं है। जिससे गलियों और नालियों में सीवरेज का गंदा पानी भरे रहने से बीमारियां से फैली रहती हैं। गुरुद्वारा के निकट ही बने मिडिल स्कूल में स्थिति और भी ज्यादा खराब थी। हाईवे ने स्कूल के खेल मैदान का स्वरूप ही बिगाड़ दिया है। हाईवे निर्माण में स्कूल के खेल मैदान का काफी हिस्सा चला गया है। यही नहीं स्कूल परिसर की हरियाली वाली जगह पर कई महीने तक मिट्टी का पहाड़ खड़ा रहने के कारण स्कूल कि हरियाली भी खत्म हो गई है।

सरकारी स्कूल को नहीं मिली सहायता राशि

सांसद द्वारा गांव गोद लिए जाने के बाद से आज तक स्कूल को फूटी कौड़ी तो नहीं मिली सहायता के रूप में। उल्टा स्कूल की हरियाली भी उजाड़ दी। शौचालयों की हालत बेहद खराब है। 4 शौचालय बंद पड़े हैं सिर्फ एक को ही मरम्मत करके चलाया जा रहा है। स्कूल का बिजली बिल भी सरकार की ओर से कई सालों से नहीं मिल रहा है। स्कूल का स्टाफ भर रहा बिजली का बिल

स्कूल की प्रिसिपल सरोज बाला एवं अन्य स्टाफ अपने वेतन में से बिजली बिल की राशि इकट्ठा करके जमा कराते हैं। अन्यथा बिजली कनेक्शन कट जाने के बाद बच्चों को स्कूल परिसर में पीने का पानी भी मुहैया नहीं हो पाएगा। फंड तो मिला, लगा कहां पता नहीं

गांव के निवासी परमिदर सिंह ने बताया पिछले 4 सालों में गांव में फंड की कोई कमी नहीं रही है लेकिन फंड लगा कहां है किसी को नहीं पता। सड़कों का हाल बुरा है सीवरेज सबसे बड़ी समस्या है। अधिकारियों के तबादलों से रुका विकास : प्रो. साधू सिंह

सांसद प्रो. साधू सिंह ने बताया कि फतेहगढ़ कोरोटाना की समस्याओं की जानकारी उन्हे हैं, उन्होंने तो गांव को मॉडल गांव बनाने के लिए केन्द्र सरकार से धनराशि भी मंजूर करा ली थी, लेकिन चार साल में छह डीसी बदले, जिससे उस प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ ही नहीं पाया, लेकिन उन्होंने अपने स्तर पर हर संभव गांव को देने का प्रयास किया।


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