डिफॉल्टर मिल को 10 साल तक अधिकारी करते रहे धान आवंटित
मोगा : साल 1994-95 में ब्लैक लिस्ट की गई राइस मिल के पार्टनरों ने परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम पर नई फर्म बनाकर नियमों के खिलाफ जाकर साल 2005-06 से साल 2017-18 तक मि¨लग के लिए धान आवंटित कराते रहे।
सत्येन ओझा, मोगा : साल 1994-95 में ब्लैक लिस्ट की गई राइस मिल के पार्टनरों ने परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम पर नई फर्म बनाकर नियमों के खिलाफ जाकर साल 2005-06 से साल 2017-18 तक मि¨लग के लिए धान आवंटित कराते रहे।
रिश्तेदारों में आपसी संपत्ति विवाद के चलते धान मि¨लग के नाम पर हुए इस काले खेल का भंडाफोड़ मिल मालिक के ही भांजे ने 12 साल बाद किया है। इस मामले में विभाग की इंटरनल विजिलेंस के साथ ही अब पुलिस विजिलेंस ने भी जांच शुरू कर दी है। डीएसपी विजिलेंस रछपाल ¨सह ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि वैसे इस मामले में खाद्य आपूर्ति विभाग की इंटरनल विजिलेंस जांच कर रही है, लेकिन उन्होंने कुछ मामलों में जांच शुरू की है।
साल 1994-95 में धान मि¨लग के नाम पर मोगा में प्राकृतिक आपदा के बाद धान की गुणवत्ता प्रभावित हुई थी। बाद में अधिकारियों व मिल मालिकों ने मिलकर धान मि¨लग को भ्रष्टाचार का बड़ा टूल बना लिया था। अरबों रुपये के भ्रष्टाचार के इस खेल में दर्जनों मिल मालिकों के खिलाफ केस दर्ज हुए थे, 87 मिलें ब्लैक लिस्ट कर दी गई थीं। कुछ डिफाल्टर मिल मालिकों ने राजनीतिक आकाओं के दबाव व अधिकारियों की मिली भगत से अपने ही परिवार व रिश्तेदारों के नाम पर दूसरी फर्में तैयार कर धान आवंटित करा लिया था। नियमानुसार डिफॉल्टर घोषित मिलों के पार्टनर के खून के रिश्ते के किसी भी व्यक्ति के नाम पर बनी फर्म को खाद्य आपूर्ति विभाग तब तक धान मि¨लग के लिए आवंटित नहीं कर सकता है, जब तक कि फर्म को क्लीन चिट न मिल जाये।
इस मामले में किशनपुरा निवासी गगन शर्मा ने विजिलेंस ब्यूरो को दी शिकायत में पूरे खेल का सबूतों के साथ भंडाफोड़ करते हुए अधिकारियों की मिलीभगत का दावा किया है। इस गोरखधंधे में तत्कालीन जिला खाद्य एवं सप्लाई कंट्रोलर (डीएफएससी) व इसी विभाग के एक दर्जन अन्य अधिकारियों को जांच के घेरे में लिया है।
शिकायत में गगन शर्मा ने लिखा है कि साल 1994 -95 में स्थानीय आरा रोड पर मैसर्ज बाल कृष्ण-कैलाश चंद्र नाम की राइस मिल डिफाल्टर हो गई थी। बाद में मिल के हिस्सेदारों ने योजनाबंद ढंग से परिवार के दूसरे सदस्यों को हिस्सेदार बनाकर मैसर्ज शांति फूड नाम पर नई चावल मिल का लाइसेंस हासिल कर लिया। आरटीआइ में प्राप्त सूचना के अनुसार मैसर्ज शांति फूड राइस मिल भी डिफाल्टर सूची में शामिल थी। ये मिल डिफाल्टर सूची में आने के बाद मैसर्ज मनोहर एग्रोटेक के नाम पर फिर नई फर्म बनाई गई। विभाग ने इस फर्म को 2005 -06 से धान का आवंटन भी शुरू कर दिया। इस सीजन में मामले का भंडाफोड़ होने पर विभाग ने मिल को धान आवंटित नहीं किया।