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हर माह एक लाख खर्च फिर भी अस्पताल में दवाइयों की शॉर्टेज

मोगा : अतिआधुनिक सुविधाओं से लैस जिले के इकलौते सिविल अस्पताल में इस समय दवाईयों की भारी शार्टेज चल रही है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Nov 2018 06:07 PM (IST)Updated: Sun, 04 Nov 2018 06:07 PM (IST)
हर माह एक लाख खर्च फिर भी अस्पताल में दवाइयों की शॉर्टेज
हर माह एक लाख खर्च फिर भी अस्पताल में दवाइयों की शॉर्टेज

रोहित शर्मा, मोगा : अतिआधुनिक सुविधाओं से लैस जिले के इकलौते सिविल अस्पताल में इस समय दवाईयों की भारी शार्टेज चल रही है।

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अधिकारिक जानकारी के अनुसार सिविल अस्पताल के स्टॉक में इस समय 35 फीसद से अधिक दवाइयां खत्म हैं। रूटीन की कुछ प्रमुख दवाइयां खत्म होने के कारण अस्पताल प्रशासन द्वारा हरेक माह बाहर से करीब एक लाख रुपये की दवाइयां खरीदी जा रही है, लेकिन फिर भी अस्पताल प्रशासन दवाइयों की शार्टेज को पूरा नही कर पा रहा है। यहां बता दें कि सिविल अस्पताल के स्टॉक में इस समय लगभग 70 फीसद प्रमुख एंटीबॉयटिक, पेनकिलर और कुछ अहम व महंगे इंजेक्शन काफी समय से खत्म हैं। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार उनके द्वारा चंडीगढ़ में उच्चाधिकारियों को कई बार लिखित में भेजा जा चुका है, लेकिन सप्लाई में हर बार 30 से 35 फीसद दवाइयों की शार्टेज रहती ही है। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि वह जैसे तैसे करके काम चला रहें हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि मरीजों को महंगे दाम पर बाजार से दवाईयां खरीदनी पड़ रही हैं। जैनरिक व एथीकल दवा से मरीज भ्रमित

दवा की कैटागिरी को लेकर मरीज काफी भ्रमित हो रहें हैं। क्योंकि सिविल अस्पताल में अगर कोई डॉक्टर किसी मरीज को जनऔषधि से दवा लिखकर देता है तो उसे वह दवा काफी इक्नोमीकल रेट पर मिल जाती है, लेकिन वही दवा उसे अगर बाजार से खरीदनी पड़े तो मरीज को उस दवा का दोगुना दाम देना पडता है। जैनरिक व एथीकल दवा की लगभग 90 फीसद मरीजों की जानकारी नही है। बता दें कि जैनरिक दवा पर भी एथीकल दवाइयों की भांति उतना ही एमआरपी होता है। मरीजों से लूट के लिए डॉक्टर भी जिम्मेदार

जी हां, बता दें कि केंद्र सरकार की सख्त हिदायत है कि कोई भी सरकारी डाक्टर किसी दवा का ब्रांड नेम नही बल्कि उस दवा का साल्ट नेम ही मरीज की पर्ची पर लिखेगा, ताकि निजी फार्मा कंपनियो द्वारा मरीजों से हो रही लूट को रोका जा सके। लेकिन उक्त आदेश भी महज कहने सुनने को ही रह गए। कुछेक सरकारी डाक्टरों द्वारा आज भी मरीजों को निजी कंपनियों के ब्रांड नेम की दवा लिखी जा रही है।

मरीज बोले-बाजार से खरीद रहें दवाइयां

गांव भागीके निवासी राज¨वदर के अनुसार उसके चाचा का बेटा कुछ दिन पहले सड़क हादसे में घायल हो गया था। आर्थिक कमजोरी के चलते उसे मोगा के सिविल अस्पताल में दाखिल करवाया गया था, लेकिन अब यहां पर डॉक्टर द्वारा कुछ महंगी दवाइयां पर्ची पर लिखकर दी गई है, जोकि सरकारी अस्पताल से नहीं बल्कि बाजार से खुद खरीदनी पड़ रही हैं।

वहीं विक्की कुमार वासी पुराना मोगा ने बताया कि कुछ दिन पहले उसकी भाभी घर में काम करते समय गिर गई तो उसे सिविल अस्पताल में उपचार के लिए लाया गया, लेकिन यहां आकर पता चला कि सिविल अस्पताल में रूटीन में इस्तेमाल होने वाली पेनकिलर गोली और एक प्रमुख इंजेक्शन ही नही है, जोकि उन्हें बाद में बाजार से खरीदना पड़ा। राज्य भर में चल रही है शार्टेज : एसएमओ

सिविल अस्पताल मोगा के एसएमओ डॉ. राजेश अत्री का कहना है कि सरकारी सप्लाई में आने वाली दवाईयों में 30 से 35 फीसद की शार्टेज राज्य भर में चल रही है। लेकिन इसके बावजूद वह किसी तरह से काम चला रहें हैं। बहुत जरूरी दवाईयों के लिए वह हर महीने बाहर से दवाईयां खरीदकर मरीजों को देते हैं। अत्री के अनुसार अस्पताल में आने वाले किसी भी मरीज को दवा के लिए परेशानी पेश नही आने दी जा रही।


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