सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल आज भी जिदा है दिलों में
मोगा 31 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब नेहरू पार्क (अब शहीदी पार्क) के बलिदानियों को श्रद्धाजंलि देने के लिए वीरवार को महज छोटा औपचारिक कार्यक्रम होगा। 25 जून 1989 की सुबह लगभग छह बजे आतंकवादियों ने नेहरू पार्क में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर अंधाधुंध फायरिग करने सहित बम धमाके किए थे। आतंकियों के इस नापाक इरादे से 25 स्वयसेवकों व आसपास के लोगों के खून से नेहरू पार्क लाल हो गया था।
सत्येन ओझा/तरलोक नरूला, मोगा
31 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जब नेहरू पार्क (अब शहीदी पार्क) के बलिदानियों को श्रद्धाजंलि देने के लिए वीरवार को महज छोटा औपचारिक कार्यक्रम होगा। 25 जून, 1989 की सुबह लगभग छह बजे आतंकवादियों ने नेहरू पार्क में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा पर अंधाधुंध फायरिग करने सहित बम धमाके किए थे। आतंकियों के इस नापाक इरादे से 25 स्वयसेवकों व आसपास के लोगों के खून से नेहरू पार्क लाल हो गया था।
25 जून का वो दिन मोगा के लिए काला दिन ही नहीं बल्कि मोगा ने उस दिन हिदू-सिख एकता की एक नई मिसाल पूरी दुनिया के सामने पेश करते हुए आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। आतंकी चाहते थे हिदू सिखों में तकरार हो, दंगे फैलें। कुछ लोगों के मन में आक्रोश भी था। मगर, तब 26 जून की सुबह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वयं अटल बिहारी वाजपेयी सांप्रदायिक सौहार्द का अटल विश्वास लेकर पहुंचे थे। गांधी रोड स्थित श्मशानघाट पर जब एक साथ 25 चिताएं सजाई जा रही थीं, तब शहीदों को श्रद्धाजंलि देने पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी की आंखों ने लोगों की आंखों में जन्म ले रहे अंगारों को पढ़ लिया था। चिताओं को मुखाग्नि देने से पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने जो भाषण दिया था, उसने एक पल में दिलों में पल रही नफरत की चिगारी को आंसुओं के सैलाब के रूप में बदला दिया और बलिदानियों की ये कहानी हिदू-सिख एकता की एक नई मिसाल बन गई थी।
उस समय इस हादसे के प्रत्यक्षदर्शी व वर्तमान में शहीद स्मारक समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि अटल जी ने गांधी रोड पर जो भाषण दिया था, उसने पूरे माहौल की दिशा ही बदल दी थी। बलिदानियों में जहां शहर के बड़े व्यापारी थे, तो आर्य बस्ती के गरीब लोग भी थे। मगर, आज तक के इतिहास में बलिदानियों के परिवारों में कोई गरीब-अमीर नहीं बना। जो आर्थिक रूप से कमजोर थे, उन्हें व्यवसायी बलिदानियों के परिजनों ने इलाज से लेकर उनके परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी खुद ले ली थी। आज तक इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। किसी बलिदानी के परिवार को सरकार के आगे हाथ नहीं पसारना पड़ा। स्मारक समिति ही उनकी पालनहार है, उनका दुख-दर्द सुनती है उसे दूर करती है।
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सीमित होगा समारोह
मोगा पीड़ित सहायता व स्मारक समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेश पुरी बताते हैं कि हर साल यहां बलिदान दिवस पर बड़ा समारोह होता था, इस बार कोविड-19 के कारण सिर्फ बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने तक कार्यक्रम सीमित कर दिया है। इस बार 25 जून को सार्वजनिक समागम नहीं होगा। सुबह सात बजे बलिदानी स्थल पर बलिदानियों के पारिवारिक सदस्य व आरआरएस के कार्यकर्ता श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। इस मौके पर आरआरएस के प्रांत प्रचारक प्रमोद विशेष रूप से मौजूद रहेंगे।