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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दूध बेचकर पाल रहा परिवार, शारीरिक कमी को न‍हीं बनने दिया कमजोरी

पंजाब का यह अंतरराष्‍ट्रीय दिव्‍यांग क्रिकेटर हौसले का दूसरा नाम है। वह दूध बेचकर परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। उसने शारीरिक कमी को जीवन की कमजोरी नहीं बनने दिया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 29 Jun 2020 08:32 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jun 2020 08:32 AM (IST)
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दूध बेचकर पाल रहा परिवार, शारीरिक कमी को न‍हीं बनने दिया कमजोरी
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दूध बेचकर पाल रहा परिवार, शारीरिक कमी को न‍हीं बनने दिया कमजोरी

मोगा, [राजकुमार राजू]। यह अंतरराष्‍ट्रीय दिव्‍यांग क्रिकेटर हाैसले का दूसरा नाम है। उसने साबित किया कि हौसला बुलंद हो तो बड़ी से बड़ी बाधा भी आसानी से दूर हो जाती है और कमजोरी को ताकत बनाया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं मोगा के गांव मैहना निवासी निर्मल सिंह की। निर्मल ने दिव्यांगता को जीवन में बाधा नहीं बनने दिया। पहले वह पढ़ाई के साथ मोगा में तीन हजार प्रतिमाह पर बेड पर पॉलिश का काम करता था। फिर व्हीलचेयर पर क्रिकेट खेलना सीखकर भारतीय टीम में जगह बनाकर कई मैच खेले। आज सरकार और प्रशासन की ओर से कोई मदद न मिलने पर वह दूध बेचकर परिवार पालने को मजबूर है।

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मोगा के गांव मैहना के निर्मल ने दिव्यांगता को नहीं बनने दिया बाधा

25 वर्षीय निर्मल सिंह ने बताया कि बेड पर पॉलिश का काम करते हुए एक दिन फेसबुक पर दिव्यांगों को क्रिकेट खेलते देखा। उसका भी सपना क्रिकेटर बनने का था। सपने को पंख लगाने के लिए पंजाब की दिव्यांग क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान व कोच वीर सिंह ने ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी।

इसके बाद हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, कोलकाता और नेपाल में विरोधी टीमों के साथ कई मैच खेले। शानदार प्रदर्शन करने पर कई मेडल भी मिले। पिछले साल कोलकाता में एशियन दिव्यांग क्रिकेट टी-20 सीरीज में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व भी किया। इस सीरीज में भारत उपविजेता रहा था।

दिव्यांगों की क्रिकेट में वो सम्मान व पैसा नहीं

निर्मल सिंह इन दिनों कोरोना संकट में मुश्किल से अपने परिवार का गुजारा कर पा रहे हैं। खेल गतिविधियां भी बंद हैं। भारतीय दिव्यांग क्रिकेट टीम की ओर से पांच मैच खेल चुके उभरते खिलाड़ी की तरफ न सरकार ने कोई ध्यान दिया है और न ही जिला प्रशासन ने। 12वीं पास निर्मल का कहना है कि हौसला व मेहनत से इंसान कोई भी लक्ष्य हासिल कर सकता है। क्रिकेट में सम्मान और पैसा तो है, लेकिन दिव्यांगों की क्रिकेट में न तो पैसा है और न ही सम्मान।

पिता 16 साल से बहरीन की जेल में बंद

निर्मल ने बताया कि उसके पिता 2004 में काम के लिए बहरीन गए थे। वहां उन पर एक कत्ल का मामला डाल दिया गया, जिस कारण वह पिछले 16 साल से बहरीन की जेल में बंद हैं। उन्हें सिर्फ इतनी जानकारी है कि पिता को सजा हुई है। सजा कब खत्म होगी इसकी कोई जानकारी नहीं है।

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