जिस 'इंसाफ' से लाला जी निकालते थे वंदे मातरम, वहीं से आज निकल रहा है 'इंसाफ'
अमर स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का माेगा में मकान इंसाफ एक संघर्ष की गाथा समेटे हुए है। इंसाफ से लाला जी कभी वंदमातरम निकालने थे और वहां से डेली इंसाफ निकल रहा है।
मोगा, [सत्येन ओझा]। 'साइमन कमीशन गो बैक...'आजादी का इतिहास पढ़ते हुए आज भी जोश पैदा करने वाला यह नारा भारत मां के जिन लाल लाला लाजपत राय ने बुंलद किया था, उनकी कर्मस्थली लाहौर में उनकी एक निशानी भी उसी तरह बुलंद है और रहेगी भी। यह है उनकी हवेली 'इंसाफ'। यहां न केवल उस समय आजादी के तराने गूंजते थे बल्कि लाला जी ने वंदे मातरम अखबार का प्रकाशन भी यहीं से किया था।
मां भारती के लाल की निशानी को पाकिस्तान की कौमी यादगार बनाने के लिए प्रयास शुरू
महात्मा गांधी ने जिस हवेली का उद्घाटन किया था और लाला जी ने जहां अंतिम सांसें ली थी, यह वही हवेली है। बहुत कुछ वैसी की वैसी। आज भी यहां से अखबार निकल रहा है...लेकिन वंदेमातम नहीं, 'डेली इंसाफ' । पाकिस्तान का सबसे बड़ा उर्दू का अखबार। यह हवेली लाला जी की यादगार के तौर पर ही जानी जाए, इसके लिए पाकिस्तान की एक संस्था ने बीड़ा उठाया है। साथ ही पंजाब के ढुडीके में रह रहे लाला जी के ननिहाल वाले भी इस हवेली के संरक्षण को लेकर संजीदा हो गए हैं।
पाक की भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने की संरक्षण की मांग, मोगा में रह रहे ननिहाल वालेे हुए भी संजीदा
दरअसल लाला लाजपत राय का जन्म मोगा के गांव डुढीके मेंं हुआ था लेकिन जीवन का ज्यादातर समय उनका लाहौर में ही बीता। वहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली थी। भारत में तो बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि लाला जी की हवेली 'इंसाफ' अब भी लाहौर में है, लेकिन पाकिस्तान में भी आज की पीढ़ी यह शायद नहीं जानती कि जिस भवन पर कुछ लोग कब्जा भी कर बैठे हुए हैं, जहां से आज इंसाफ भी अखबार निकल रहा है, वह दरअसल अपने आप में एक इतिहास संजोए हुए है। इसी लिए इसे अब कौमी यादगार बनाने की मांग उठने लगी है।
बापू ने किया था लाहौर में 'इंसाफ' का उदघाटन, वहीं अंतिम सांस ली थी पंजाब केसरी ने
ढुडीके लाला लाजपत राय का ननिहाल था तो लुधियाना का जगराओं उनका पैतृक गांव जहां मुख्तार (छोटे वकील) के रूप में उन्होंने वकालत शुरू की दी थी। यहां उन्हें ज्यादा संभावना नजर नहीं आई तो वह तब संपूर्ण पंजाब का ही हिस्सा रहे रोहतक चले गए थे। वहां 1885 में वकालत की परीक्षा पास करके तुछ समय हिसार रहे, 1892 में लाहौर चले गए। लाहौर हाईकोर्ट में उन्होंने वकालत शुरू कर की।
वह लाहौर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के 1896 में सचिव भी रहे थे। कोर्ट स्ट्रीट में उनकी 27 ए नंबर की यह जो हवेली है उसका 24 दिसंबर 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उद्घाटन किया था। इसका उल्लेख आज भी उस हवेली में लगे संगमरमर के शिलापट पर मिलता है। हवेली को लाला जी ने इंसाफ नाम दिया था, जो हवेली पर हिंदी व उर्दू में लिखा हुआ है। शायद इसलिए क्योंकि बतौर वकील वे लोगों को इंसाफ दिलाते थे और देश के लिए इंसाफ (आजादी) की आवाज भी वहीं से बुलंद करते थे। वहां रहते हुए लाला जी ने पंजाबी (पंजाबी भाषा में), वंदे मातरम (उर्दू) व द पीपुल्स एवं यंग इंडिया नामक मासिक पत्रिकाएं भी निकाली थीं।
विडंबना यह है कि मुल्क की आजादी के साथ ही बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान में 'इंसाफ' के साथ इंसाफ नहीं हुआ। पाक की एक्यू ट्रस्ट प्राॅपर्टी बोर्ड ने चंद रुपयों के लिए लालाजी की हवेली को लीज पर दे दिया था। जिस पर कुछ लोगों ने कब्जा करना शुरू कर दिया था। हवेली में बनी कुछ मूर्तियों को कब्जा किए बैठे लोगों ने नुकसान पहुंचाया है, हालांकि बाहर की स्थिति आज भी ज्यों की त्यों है। ऐसे में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन पाकिस्तान नामक संस्था ने लाला जी की हवेली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए आवाज बुलंद कर विरासत बचाने के साथ ही भारत- पाक के बीच दोस्ती की नई राह दिखाई है।
पाकिस्तान के भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष राशिद इम्तियाज कुरैशी एवं ह्युमन राइट्स एक्टिविस्ट डॉ.शाहिद नसीर।
फाउंडेशन के सरपरस्त इम्तियाज राशिद कुरैशी और ह्युमन राइट्स एक्टिविस्ट डॉ.शाहिद नसीर ने कुछ दिन पहले ही हवेली का दौरा किया। कुरैशी ने दैनिक जागरण को बताया कि उन्होंने एक्यू ट्रस्ट प्राॅपर्टी बोर्ड के अधिकारियों व पाकिस्तान की हुकूमत को लिखा है कि हवेली को कब्जा मुक्त कराकर इसे संंरक्षित किया जाए। उन्होंने कहा कि बोर्ड व हुकूमत ने अगर उनकी बात आसानी से नहीं मानी तो वे इस मामले को अदालत में लेकर जाएंगे।
राशिद इम्तियाज कुरैशी ने सादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने का मामला अदालत में लंबे समय तक लड़ा और वर्तमान में भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव तथा शहीद ऊधम सिंह को पाकिस्तान का राष्ट्रीय हीरो का दर्जा दिलवाने में लगे हैं।
लाला लाजपत राय के मोगा के बेअंत नगर में रह रहे उनके ननिहाल परिवार की तीसरी पीढ़ी के प्रतिनिधि कपिल मित्तल ने इम्तियाज राशिद कुरैशी के इस प्रयास को प्रशंसनीय बताते हुए कहा कि उनके पिता रुपलाल मित्तल 1998 में लाहौर की हवेली देखने गए थे। वे पांच दिन वहां रहे थे। उनकी भी यही इच्छा थी कि लाला जी की हवेली को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाय। अब रूपलाल मित्तल तो नहीं रहे,लेकिन उनके सपने को साकार करने का काम इम्तियाज राशिद कुरैशी ने उठाया है।