भक्ति, संगीत और आध्यात्म का संगम बना गीता भवन
। व्यास पूजा के मौके पर गीता भवन में चल रही श्रीमद्भागवत गीता सप्ताह के मौके पर एक बार फिर पूरा गीता भवन भक्ति संगीत व आध्यात्म का संगम बना हुआ है।
जागरण संवाददाता.मोगा
व्यास पूजा के मौके पर गीता भवन में चल रही श्रीमद्भागवत गीता सप्ताह के मौके पर एक बार फिर पूरा गीता भवन भक्ति, संगीत व आध्यात्म का संगम बना हुआ है।
वीरवार को सबसे पहले श्री महालक्ष्मी महायज्ञ में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विश्व कल्याण की कामना के साथ हवन-यज्ञ में आहुतियां डाली गई। वहीं शाम को श्रीमद्भागवत कथा में भागवत वेत्ताओं व हरिद्वार से पहुंचे संत महात्माओं ने जहां भागवत कथा के श्रवण से जीवन में होने वाले बदलावों व वातावरण के सकारात्मक प्रभावों की विस्तार से जानकारी दी, वहीं आज के युग से इसे जोड़ते हुए नई पीढ़ी को ये संदेश देने की कोशिश की कि यज्ञ महज धर्म, आध्यात्म का एक रूप नहीं है, बल्कि मानव की समृद्धि, वातावरण की शुद्धता का बड़ा कारण भी है।
यज्ञ सामग्री से सुगंधित हुआ परिसर
हरिद्वार से पहुंचे स्वामी वेदांत प्रकाश जी महाराज, स्वामी सागर जी महाराज, सुनील गर्ग, राम रछपाल, पवन गर्ग, सुरिदर गोयल, रविदर सूद, पुष्पा रानी, मोहनी जिदल ने यजमान के रूप में गीता भवन के विशाल हवन कुंड में हुए हवन-यज्ञ का हिस्सा लिया। हवन-यज्ञ सुबह नौ बजे शुरू हुआ तो पूरा वातावरण यज्ञ की सामग्री से महक उठा। यज्ञाचार्य पं.पवन गौतम व राम ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ आहुतियां डलवाईं।
शाम को हरिद्वार से पहुंचे संत सागर जी महाराज ने भागवत कथा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवत कथा कलयुग में बार-बार इसलिए सुनी जाती है कि इसमें नित्य नूतन संदेश की अनुभूति होती है, यह भगवान का वांगमय रूप है। भगवान ने प्राणी मात्र के कल्याण के लिए ही इसकी रचना की है। हमारी कमजोरी यही है कि हम कथा में आकर बैठते भी हैं, सुनते भी हैं, लेकिन कथा को अपने अंदर बैठाते नहीं है। जिस दिन कथा हमारे अंदर बैठ जाएगी, सचमुच द्वापर और त्रेता युग के सामने कलयुग टिक ही नहीं पाएगा। भागवत अमृत से भी ज्यादा प्रभावी है जो सारे विकारों को दूर करता है।
यज्ञ का जीवन में होना जरूरी
स्वामी वेदांत प्रकाश जी महाराज ने यज्ञ की महिमा बताते हुए कहा कि यज्ञ का हमारे जीवन में होना बहुत जरूरी है। देवता भी यज्ञ से प्रकट होते हैं। अग्नि देवताओं का मुख है, अग्नि के द्वारा ही देवता भोजन करते हैं। यज्ञ से ही देवता प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीनकाल में लोग नित्य प्रति हवन करते थे, जिससे वे निरोग रहते थे। आज के समय में यज्ञ सीमित हो गए हैं, जिस कारण हर दिन वातावरण प्रदूषित होता जा रहा है। वातावरण शुद्ध न होने से तमाम नए लोग सामने आ रहा है, फिर भी लोग मानव कल्याण करने वाली वैदिक संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं।
कालिया नाग मर्दन की कथा सुनाई
श्रीमद्भागवत कथा वेत्ता पं.पवन गौतम ने कथा के दशम स्कंध का वर्णन करते हुए कालिया नाग मर्दन की कथा सुनाई। उन्होंने कथा के धार्मिक, आध्यात्मिक पहलुओं के साथ कालिया मर्दन के संदेश को भी बड़े सहज और सरल अंदाज में भागवत कथा सुनने पहुंचे लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। बीच-बीच में भजन कीर्तन करते श्रद्धालुओं के बीच पूरा माहौल भक्ति, संगीत व भक्ति में डूबा नजर आया।