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चार माह बाद भी नहीं मिला मछली विक्रेताओं को ठिकाना

मोगा भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके मछली मार्केट के करीब 40 दुकानदारों ने हर तरफ से निराश होकर जिला प्रबंधकीय कांप्लेक्स को जाने वाले मोगा-फिरोजपुर रास्ते पर ही अपनी दुकानें शुरू कर दी हैं। केंद्र सरकार की वेंडिंग पालिसी होते हुए भी चार माह में भी नगर निगम अभी तक मछली मार्केट के दुकानदारों को जगह उपलब्ध नहीं करा सका है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 03:27 PM (IST)Updated: Wed, 28 Oct 2020 08:00 AM (IST)
चार माह बाद भी नहीं मिला मछली विक्रेताओं को ठिकाना
चार माह बाद भी नहीं मिला मछली विक्रेताओं को ठिकाना

संवाद सहयोगी, मोगा

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भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके मछली मार्केट के करीब 40 दुकानदारों ने हर तरफ से निराश होकर जिला प्रबंधकीय कांप्लेक्स को जाने वाले मोगा-फिरोजपुर रास्ते पर ही अपनी दुकानें शुरू कर दी हैं। केंद्र सरकार की वेंडिंग पालिसी होते हुए भी चार माह में भी नगर निगम अभी तक मछली मार्केट के दुकानदारों को जगह उपलब्ध नहीं करा सका है। मछली बाजार में जो दुकानें लगी भी हैं, वहां पर मछली के मास की जांच भी नहीं की जा रही है। पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डा. सुभाष गोयल का कहना है कि यह मामला मछली पालन विभाग देखता है। वहीं मछली पालन विभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर सुखविदर सिंह का कहना है कि मछली मास का मामला पशु पालन विभाग ही देखता है।

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यह है मामला

शहर में लगभग 30 साल से भी ज्यादा समय से मछली मार्केट इंप्रूवमेंट ट्रस्ट की जगह पर लगती थी। गत 23 जून को पुलिस के सहयोग से वहां से सभी दुकानदारों को हटा दिया गया था। इस दौरान 12 दुकानदारों को शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार कर एसडीएम कोर्ट में भी पेश किया गया था। तब से अभी तक मछली मार्केट के दुकानदारों को शहर में कहीं भी जगह आवंटित नहीं की जा सकी है। लगभग डेढ़ महीने पहले मार्केट कमेटी परिसर में एक खाली जगह पर मिट्टी डलवाकर मार्केट के लोगों ने उसे समतल बनाया था, तो मार्केट कमेटी के लोग दुकानदारों को सामान उठा ले गए थे।

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अब यह है स्थिति

मछली मार्केट के दुकानदारों के संघर्ष का नेतृत्व कर रहे सीता राम का कहना है कि चार माह से काम न होने से परिवार भुखमरी के हालात में पहुंच गया है। अगर सड़क किनारे कहीं बैठते हैं, तो कभी नगर निगम के कर्मचारी सामान उठाकर ले जाते हैं, तो कभी मार्केट कमेटी के। सब उनका रोजगार छीनने आ जाते हैं। रोजगार के लिए ठिकाना देने की बात कोई भी अधिकारी नहीं करता है। सीता राम का कहना है कि वह 30 साल से इस कारोबार से जुड़े हैं, दूसरा कारोबार कर भी नहीं सकते हैं। ऐसे में मछलियों का कच्चा मास बेच रहे हैं, कोई चोरी नहीं कर रहे हैं। मगर, यह काम भी चोरों की तरह करना पड़ रहा है। हर समय डर लगा रहता है कि कहीं निगम की टीम न आ जाए या कोई और न सामान उठाने आ जाए।

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मिशन स्वास्थ्य की उड़ी धज्जियां

संबंधित दुकानदार मजबूरन सड़क किनारे मछली काट कर बेच रहे हैं। मछली मास को पशुपालन विभाग के चिकित्सक भी चेक नहीं करते हैं। जबकि खुले में फुटपाथ पर लगीं इन दुकानों पर मछली ही नहीं मुर्गे का मास भी मिल रहा है। मीट से निकलने वाला रा मैटीरियल भी वातावरण को प्रदूषित करता है, लेकिन निगम भी इस पर ध्यान नहीं दे रही है।

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प्रशासन जगह उपलब्ध कराए

यूथ अकाली नेता अमरजीत सिंह मटवानी का कहना है कि प्रशासन मीट विक्रेताओं को कोई जगह उपलब्ध कराए, ताकि अवैध रूप से लगी मीट की दुकानों के कारण वातावरण को दूषित होने से बचाया जा सके। साथ ही लोगों के स्वास्थ्य की भी रक्षा की जा सके। समस्या का हल दुकानदारों को भगाने से नहीं, उन्हें जगह देने से होगा।

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समस्या का किया जाए समाधान

मेन बाजार दुकानदार एसोसिएसन के अध्यक्ष हरप्रीत सिंह मिक्की का कहना है कि मछली मार्केट के दुकानदारों की समस्या का हल किया जाए। रोजगार आसानी से मिल नहीं रहा है। अगर सरकार रोजगार का साधन देने के बजाय सिर्फ डंडे चलाती रहेगी, तो इससे समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।

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मनपसंद जगह देना संभव नहीं

निगम कमिश्नर अनीता दर्शी का कहना है कि मछली मार्केट के दुकानदारों को दो-तीन जगह दिखाई गई है। मगर, वह जगह उन्हें पसंद नहीं आई है। नगर निगम के पास जो जगह उपलब्ध है, वही दी जा सकती है। हर किसी की मनसपंद के आधार पर जगह देना संभव नहीं है।


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