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सूबे में एमबीबीएस की 191 सीटें सामान्य, रिजर्व वर्ग के लिए 224

राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 600 सीटों में से सामान्य वर्ग के हिस्से महज 191 सीटों को सरासर अन्याय व इसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा न करने के आदेश का उल्लंघन बताते हुए एक और याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर की गई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Jul 2019 11:30 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jul 2019 06:38 AM (IST)
सूबे में एमबीबीएस की 191 सीटें सामान्य, रिजर्व वर्ग के लिए 224
सूबे में एमबीबीएस की 191 सीटें सामान्य, रिजर्व वर्ग के लिए 224

सत्येन ओझा, मोगा : राज्य के तीन मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 600 सीटों में से सामान्य वर्ग के हिस्से महज 191 सीटों को सरासर अन्याय व इसे सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा न करने के आदेश का उल्लंघन बताते हुए एक और याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि एमबीबीएस की सूबे में कुल 600 में से सामान्य वर्ग के लिए 191 सीटें व अनुसूचित जाति, जनजाति आदि के लिए 224 सीटें सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के साथ अन्याय है।

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सीटों का गणित

पंजाब के तीन मेडिकल कॉलेजों अमृतसर में 200, पटियाला में 200 व फरीदकोट में 100 सीटें थीं। इस बार सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को 10 प्रतिशत सीटें रखने के फैसले के तहत नियम तय किया था कि आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को लाभ देने के लिए हर कॉलेज 25 प्रतिशत सीटें बढ़ाए, ताकि पहले से चल रही आरक्षण नीति प्रभावित न हो। नियमानुसार अमृतसर व पटियाला में 50-50 सीटें और बढ़ा दी गईं। फरीदकोट मेडिकल सीट न बढ़ाने पर जब इसकी डिमांड उठने लगी, तो फरीदकोट की सीटें बढ़ाने के बजाय पटियाला की 50 में से 25 सीटें फरीदकोट को दे दीं, पटियाला के पास 225 सीटें ही बचीं।

नियमानुसार ऑल इंडिया कोटे में 15 प्रतिशत सीटें देने का प्रावधान होने के कारण 90 प्रतिशत सीटें उनके लिए रिजर्व हो गई। 50 सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए निर्धारित कर दीं, जबकि 45 सीटें एनआरआइ कोटे के लिए छोड़ी गई हैं।

सूत्रों का कहना है कि एनआरआइ कोटा अमृतसर व पटियाला में 13-13 प्रतिशत, जबकि फरीदकोट में 15 प्रतिशत के नियम के अनुसार 41 सीटें होनी चाहिए। मगर, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की चार सीटें काटकर एनआरआइ कोटे की सीटें 41 की बजाय 45 करके उन्हें अतिरिक्त लाभ दे दे दिया गया।

ऐसे में तीनों कैटागरी निकालने के बाद सूबे में एमबीबीएस की 415 सीटें बचीं। जिनमें से सामान्य वर्ग के हिस्से में 191 व रिजर्व कोटे में 224 सीटें आई हैं। सूबे में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए साल 2016 में जारी किए गए नोटीफिकेशन को अमल में लाने से पहले ऐन मौके पर बदलने के मामले में हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ लड़ रहे मोगा के चिकित्सक डॉ. संदीप वर्ग ने सामान्य व रिजर्व सीटों के इस अनुपात को सामान्य वर्ग के साथ अन्याय बताते हुए हाईकोर्ट में एक और रिट दायर कर दी है।

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मेल सामने आने के बाद यूनिवर्सिटी व सरकार की हुई किरकिरी

वहीं हाईकोर्ट में पहले से चल रहे नोटीफिकेशन के एक अन्य मामले में सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के पैरोकार ने दलील दी कि मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के मामले में वह राज्य सरकार के आदेश को मानती है। यूनिवर्सिटी की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने यूनिवर्सिटी की ओर से पंजाब सरकार के चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग को भेजी गई एक मेल अदालत में प्रस्तुत कर दी। इस ऑफीशियल मेल में यूनिवर्सिटी की ओर से पंजाब के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए 10वीं की परीक्षा पंजाब के स्कूल से करने की अनिवार्यता के नियम को शामिल करने के लिए लिखा है। इस मेल के सामने आने के बाद यूनिवर्सिटी व सरकार की खूब किरकिरी हुई। इस बीच बड़ी संख्या में अदालत में वे छात्र भी अपने वकीलों के साथ पेश हुए, जो 2019 में नियम बदलने जाने से प्रभावित हो रहे हैं। इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से गर्मागर्म बहस हुई। बाद में सुनवाई 11 जुलाई तक टाल दी गई है।

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ये है मामला

साल 2016 में साल 2019 से राज्य में मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए जारी नोटीफिकेशन उसे लागू होने से चंद दिन पहले ही छह जून को बदलकर सरकार ने नया नोटीफिकेशन जारी कर दिया था। जिससे पंजाब से बाहर के विद्यार्थियों के लिए रास्ते खुल गए थे, पंजाब के छात्रों का इसका नुकसान हो रहा था। नोटीफिकेशन के अनुसार पंजाब के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए पंजाब में 10वीं, 11वीं व 12वीं करना अनिवार्य कर दिया था। नए नोटीफिकेशन में 10वीं की अनिवार्यता को हटा दिया गया था। सरकार के इसी फैसले के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।


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