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Guru Nanak Dev Jayanti: लुधियाना में यहां पड़े थे गुरुनानक देव जी के चरण, गुरुपर्व के दिन उमड़ती है संगत

Guru Nanak Dev Jayanti गुरुनानक देव शिष्यों के साथ 1515 ई में लुधियाना आए थे। तब लुधियाना में जलाल खां लोधी का शासन हुआ करता था। उस वक्त यहां पर गौ हत्या की जा रही थी और सतलुज दरिया लुधियाना को अपनी चपेट में लेने के लिए बढ़ रहा था।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 09:36 AM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 09:36 AM (IST)
Guru Nanak Dev Jayanti: लुधियाना में यहां पड़े थे गुरुनानक देव जी के चरण, गुरुपर्व के दिन उमड़ती है संगत
लुधियाना में भी गुरुनानक देव के तीन चरण छो गुरुद्वारे स्थापित किए गए हैं।

लुधियाना, [राजेश भट्ट]। Guru Nanak Dev Jayanti: गुरुनानक देव जी (Guru Nanak Dev) अपने शिष्यों के साथ घूमते रहे और जहां गए वहां लोगों को शिक्षाएं देते रहे। श्री गुरुनानक देव जी लुधियाना भी पहुंचे थे और उन्होंने तीन जगहों पर अपने शिष्यों के साथ कुछ समय के लिए रुके थे। जहां जहां गुरुनानक देव जी के चरण पड़े थे वहां पर अब गुरुद्वारा साहिब बनाए गए हैं। लुधियाना में भी गुरुनानक देव (Guru Nanak Dev)  के तीन चरण छो गुरुद्वारे स्थापित किए गए हैं। गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर अगर आप गुरुद्वारा साहिब में माथा टेकना चाहते हैं तो यहां जा सकते थे।

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गुरुनानक देव (Guru Nanak Dev) अपने शिष्यों के साथ 1515 ई में लुधियाना आए थे। तब लुधियाना में जलाल खां लोधी का शासन हुआ करता था। उस वक्त यहां पर गौ हत्या की जा रही थी और सतलुज दरिया लुधियाना को अपनी चपेट में लेने  के लिए बढ़ रहा था। उस वक्त गुरुनानक देव जी गुरुद्वारा गऊघाट वाली जगह पर रूके थे। सतलुज का प्रकोप देखकर जलाल खां इसी स्थान पर गुरुजी की शरण में आया और उनसे शहर को बचाने का आग्रह करता रहा। गुरु जी ने उसे गौ हत्या बंद करने को कहा तो उसने वचन दिया था कि अपने राज्य में गौहत्या नहीं होने देगा।

इसके बाद गुरुनानक देव जी (Guru Nanak Dev) के आग्रह पर सतलुज दूर बहने लगा और एक धारा बुड्ढा दरिया के रूप में यहां बहती रही। जालल खां ने इस जगह को गऊघाट का नाम दिया और बाद में यहां पर गुरुद्वारा साहिब स्थापित किए गए। इतिहासिक तथ्यों के मुताबिक गुरु जी यहां पर आधा दिन रूके और उसके बाद यहां से ठक्करवाल  चले गए।

ठक्कर वाल में दूर किया था ठाकुर दास का अहम

ठक्कर वाल में ठाकुर दास नाम महंत रहता था जिसने प्रयाग राज में दीक्षा ली थी। वह मूलत: राजस्थान का रहने वाला था। वह प्रयाग राज में गुरु गद्दी के विवाद के बाद यहां आ गया था और उसने यहां अपना डेरा बनाया और जिसका नाम ठक्कर वाल रख दिया। वह खुद को विद्वान समझता था और वह यहां गद्दी लगाकर बैठने लगा। उसे खुद के ज्ञान पर अहम था और जब गुरुनानक देव  जी यहां पहुंचे तो वह उस समय अपने आंगन में था। गुरुजी को देखकर वह अपनी गद्दी पर बैठा तो गुरु नानक देव जी उसकी तरफ पीठकर के बैठ गए।

वह इस बात से क्रोधित हुआ और गुरजी को समझ आ गया कि वह क्रोधित हो गया। जिस पर गुरुजी ने वाणी का उच्चारण करना शुरू कर दिया। गुरुजी की वाणी सुनकर ठाकुरदास गुरुजी के पास आया और उन्हें हरे राम कहकर पुकारा। जिसके उत्तर में गुरुजी ने सतकरतार कह दिया। दोनों के बीच लंबी वार्ता हुई और गुरुजी ने उसका अहंकार तोड़ दिया। ठाकुरदास ने गुरुजी से खाना खाने का आग्रह किया लेकिन गुरुजी ने अपने शिष्यों के साथ यहां रोटी खाई और सुल्तानपुर लोधी चले गए। अब यहां पर बड़ा गुरुद्वारा साहिब स्थापित है और यहां पर एक सरोवर है। जिसके जल की अपनी विशेष महत्ता है। यह ठक्करवाल गांव लुधियाना पखोवाल रोड पर स्थित है।

गांव को दिया था गुरु जी ने अपना नाम, अब है भव्य गुरुद्वारा साहिब

लुधियाना जिले का गांव नानकपुर जगेड़ा ऐसा गांव है जिसका संबंध सीधे श्री गुरुनानक देव (Guru Nanak Dev) और छठे गुरु हरगोबिंद साहिब से है। बताते हैं कि जब गुरुनानक देव यहां आए थे तो उन्होंने इस गांव को अपना नाम दे दिया था। पहले इस गांव का नाम झिंगड़ जगेड़ा हुआ करता था जिसे उन्होंने नानकपुर जगेड़ा कह दिया। स्थानीय लोग बताते हैं कि नानकटियाणा साहिब जाते वक्त गुरुजी इस गांव से होकर निकले थे।

यहां पर एक पीपल का बड़ा पेड़ था जिसके नीचे गुरुजी बैठ गए थे। इसी जगह पर बैठकर गुरुजी ने गांव के लोगों को अपनी वाणी सुनाई थी। बाद में यहां भी विशाल गुरुद्वारा साहिब स्थापित किया गया। इस गुरुद्वारा साहिब के साथ भी एक सरोवर है।


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