पंजाब में पिछले साल की तुलना में इस बार कम जली पराली, सेटेलाइट मोनीटरिंग में आई बात सामने
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि पराली के अंतर्गत जलने वाला रकबा इस बार 749.43 हजार हेक्टियर है जबकि पिछले साल यह रकबा 790.77 हजार हेक्टियर था। इस साल पंजाब सरकार द्वारा करीब 23500 और मशीनें पराली की संभाल के लिए दी जा रही हैं।
लुधियाना, जेएनएन। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर की सेटेलाइट मोनीटरिंग की मानें तो इस साल पिछले सालों की तुलना में पराली जलाने की अधिक घटनाएं सामने आ रही हो। कई जिलों में पराली जलने के मामले दोगुने हो गए हैं। लेकिन, इसके बावजूद भी सूबे में पिछले साल की तुलना में इस साल पराली कम जली है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकाे का कहना है कि इस साल अभी तक पराली के अंतर्गत जलने वाला रकबा पिछले साल की तुलना में 5.2 प्रतिशत कम है।
पीएयू के एडिशनल डायरेक्टर रिसर्च डा. गुरसाहिब सिंह कहते हैं कि पंजाब में धान की कटाई जोरों पर चल रही है। 30 अक्टूबर तक 62.5 प्रतिशत रकबे की कटाई हो चुकी है। पिछले साल की तुलना में इस साल धान की आमद 32.6 प्रतिशत और परमल व बासमती की कुल आमद 29.4 प्रतिशत अधिक हुई। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर के आंकड़े बताते हैं कि धान की पराली के अंतर्गत जलने वाला रकबा इस समय के दौरान अब तक 749.43 हजार हेक्टियर है, जबकि पिछले साल यह रकबा 790.77 हजार हेक्टियर था। इस हिसाब से अगेती कटाई के बावजूद पराली के अंतर्गत जलने वाला रकबा पिछले साल के मुकाबले कम है। इससे स्पष्ट है कि पंजाब में इस साल पराली संभालने की स्थिति पिछले सालों से बेहतर है। इसकी एक वजह यह भी है कि इस साल पंजाब के किसानों केपास पराली की संभाल के लिए अधिक साधन है।
इस साल पंजाब सरकार द्वारा करीब 23500 और मशीनें पराली की संभाल के लिए दी जा रही है, जबकि पिछले साल इन मशीनों की गिनती 50815 थी। यहीं नहीं इस बार कम समय लेने वाली धान की किस्में जैसे पीआर 121, पीआर 126 के अंतर्गत 70 प्रतिशत रकबा भी मददगार हाेगा। इन किस्मों का पराल बहुत कम होता है और कम समय लेने के कारण इनकी पराली को मशीनों से संभालने में आसानी होती है। साल 2020 में कुछ किसानों को खेतों में ही पराली की संभाल की तकनीकों को अपनाते हुए तीन साल से अधिक हो चुके हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कि क्या उनके खेतों में गेहूं की आगामी फसल के झाड़ में बढ़ोतरी नजर आ रही है। हालांकि पीएयू की तजुर्बों के मुताबिक झाड़ में बढ़ोतरी ही नहीं, बलिक खाद की खपत में भी कमी की संभावना जताई गई है। यह रूझान आने वाले सालों में पराली को खेतों में संभालने वाली तकनीकों को बड़े स्तर पर अपनाने के लिए एक मुख्य जरिया बन सकता है।