Move to Jagran APP

Stubble Burning In Punjab: पराली के साथ 170 करोड़ की नाइट्रोजन-सल्फर जला देते हैं किसान, पर्यावरण पर पड़ रहा असर

Stubble Burning In Punjab पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। ऐसा करके न किसान पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि अपना खर्च भी बढ़ा लेते हैं। पीएयू लुधियाना के एक शाेध में यह बात सामने आई है।

By Vipin KumarEdited By: Published: Thu, 22 Sep 2022 09:38 AM (IST)Updated: Thu, 22 Sep 2022 09:38 AM (IST)
Stubble Burning In Punjab: पराली के साथ 170 करोड़ की नाइट्रोजन-सल्फर जला देते हैं किसान, पर्यावरण पर पड़ रहा असर
Stubble Burning In Punjab: पंजाब में किसान जला रहे पराली। (फाइल फाेटाे)

आशा मेहता, लुधियाना। Stubble Burning In Punjab: पंजाब के किसान धान की कटाई के बाद कई वर्षाें से पराली को आग के हवाले कर देते हैं। गेहूं की बिजाई की जल्दबाजी में किसान पूरे पंजाब में करीब 150 से 160 लाख टन पराली को आग लगा देते हैं। ऐसा करके न केवल वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि अपना खर्च भी बढ़ा लेते हैं। पीएयू के विशेषज्ञों के अनुसार पराली के साथ अगली फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फासफोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद को भी जलाकर राख कर देते हैं। इसके बाद खादों पर खर्च करके अगली फसल की पैदावार करते हैं।

loksabha election banner

एक एकड़ में पराली जलाने से 18 से 20 किलो नाइट्रोजन हाेती है राख

पीएयू के विशेषज्ञों के अनुसार एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पराली के साथ पंजाब में 1.50 से 1.60 लाख टन नाइट्रोजन और सल्फर के अलावा कार्बन भी जलकर राख हो जाती है। जिसकी कीमत करीब 160 से 170 करोड़ रुपये है। पीएयू वैज्ञानिकों की शोध बताती हैं कि एक एकड़ में पराली जलाने से 18 से 20 किलो नाइट्रोजन, 3.2 से 3.5 किलो फासफोरस, 56 से 60 किलो पोटाश, चार से पांच किलो सल्फर और कई सूक्ष्म तत्व जलकर राख हो जाते हैं।

भूमि की उर्वरा शक्ति बड़ी चुनाैती

दूसरे शब्दों में कहें तो एक टन पराली जलाने से 400 किलो जैविक कार्बन, 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलो फासफोरस, 25 किलो पोटाश, 1.2 किलो सल्फर का नुकसान होता है। भूमि की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता ।पीएयू के कई शाोधों में साबित हो चुका है कि अगर किसान पराली का उपयोग करें, तो वह न सिर्फ अपने खेतों से मुनाफे की फसल काट सकते हैं बल्कि भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ा सकता है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पराली को खेत में जोतने, मिलाने व बिछाने के साथ गेहूं का झाड़ बढ़ता है और मिट्टी की सेहत भी सुधरती है।

मिट्टी की सेहत में सुधार लाती है खेत में मिलाई गई पराली

शोध में वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यदि पराली को गेहूं की बिजाई करने से तीन सप्ताह पहले खेत में दबा दिया जाए, मिला दिया जाए या फिर खेत में ही जोत दिया जाए तो गेहूं के झाड़ में कमी नहीं आती। ऐसा लगातार तीन-चार वर्ष तक करने पर चौथे वर्ष गेहूं के झाड़ में वृद्धि होती है। जहां से पराली को खेत से बाहर निकाल दिया गया, वहां धान का झाड़ 24 क्विंटल और गेहूं का झाड़ 19.6 क्विंटल प्रति एकड़ रहा।

हैप्पी सीडर कर रहा मुश्किल आसान

पराली को खेत में मिलाने पर धान का झाड़ 24 से 27 क्विंटल (12.5 प्रतिशत की वृद्धि) और गेहूं का झाड़ 19.2 से बढ़कर 21.6 (10.2 प्रतिशत की वृद्धि) क्विंटल पर पहुंच गया। इसके साथ ही जैविक कार्बन में 38 प्रतिशत, फासफोरस में 32.8 प्रतिशत, पोटाश में 39.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। पीएयू के फार्म मशीनरी व पावर इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डा. महेश कुमार नांरग के अनुसार 10 वर्ष की शोध बताती है कि हैप्पी सीडर के साथ खेत की स्तह पर पराली रखने से मिटटी की जैविक कार्बन 0.42 से बढ़कर 0.65 हो जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.