'सूरमा' में दिलजीत की मां का किरदार निभाना अच्छा अनुभव : सीमा कौशल
यह अनुभव सिटी स्पाइस से शेयर किया फिल्म 'सूरमा' में दिलजीत की मां का किरदार निभा रही जालंधर की सीमा कौशल ने।
लुधियाना (जासं) : 'जिम्मी शेरगिल अभिनीत फिल्म 'दाना-पानी' के लिए मेरी डेट्स बुक हो चुकी थी और उसी दौैरान मुझे 'सूरमा' में दिलजीत दोसांझ की मां के रोल का ऑफर मिला। बिजी शेड्यूल के चलते मैं चाहते हुए भी 'हां' नहीं कर पाई थी। ईश्वर को लेकिन कुछ और ही मंजूर था। शायद इसलिए 'दाना पानी' का शेड्यूल किन्हीं कारणों से कुछ दिन के लिए पोस्टपोन हो गया। तब मैंने 'सूरमा' की टीम से पुन: संपर्क साधा और मुझे रोल मिल गया। यूं कह लो जहां चाह वहां राह।' यह अनुभव सिटी स्पाइस से शेयर किया फिल्म 'सूरमा' में दिलजीत की मां का किरदार निभा रही जालंधर की सीमा कौशल ने। कभी नहीं भूलेगा वो अनुभव
उन्होंने बताया, 'सूरमा' की शूटिंग शुरू हुई तो को-इंसीडेंट यह हुआ कि उसी दौरान दूसरी फिल्म के शूट की डेट्स भी आ गईं। दोनों ओर मेरी शूटिंग डेट्स में मात्र एक दिन का अंतर था लेकिन एक शाहबाद में शूट चल रहा था और दूसरा श्री गंगा नगर, जिनमें 360 किलोमीटर की दूरी थी। सर्दियों के दिन थे। उन दिनों स्मोग सभी पुराने रिकार्ड तोड़ रही थी। मेरे अनुरोध पर असिस्टेंट डायरेक्टर शाह नवाज (कादर खान के बेटे) ने मुझे जाने की अनुमति तो दे दी लेकिन मेरे लौटने तक उनकी और मेरी जान गले में अटकी रही। मैं रात 12 बजे शाहबाद से चली, दोपहर 12 बजे गंगानगर पहुंची। अपना सीन शूट किया और रात 8.30 बजे फिर वापिस चल दी। घनी धुंध में रास्ते में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसी दिन एक भयानक दुर्घटना हुई थी जिसमें कई वाहन स्मोग के कारण आपस में टकरा गए थे। इसी कारण डर भी ज्यादा लग रहा था लेकिन ईश्वर का नाम लेते हुए मैं सुबह छह बजे शाहबाद पहुंच गई। तब जा कर सांस में सांस आई।' पहले भी कर चुकी हूं कई ¨हदी मूवीज़
पंजाबी फिल्मों में तो सीमा कौशल एक जाना माना चेहरा है। मां के किरदार में वह अक्सर नजर आती हैं लेकिन ¨हदी फिल्मों में भी अब वह नई नहीं हैं। उन्होंने राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म 'तीन थे भाई', अनुराग कश्यप की 'लव शव ते चिकन खुराना', अमीषा पटेल की 'देसी मैजिक', जयदीप चोपड़ा की 'द रैली', आदि फिल्मों में काम किया है। उन्होंने बताया कि पंजाबी फिल्मों में करियर 'दिलदारा' से शुरू किया था जिसमें तनुजा, कुलभूषण खरबंदा, अरुण बाली जैसे बॉलीवुड के कलाकार थे। फिर मनमोहन ¨सह की 'असां नूं मान वतनां दा' में काम मिला और उसके बाद तो जैसे फिल्मों की झड़ी लग गई। 'मुंडे यूके दे','दिल अपणा पंजाबी', 'हश्र', 'कैरी ऑन जट्टा',आदि अनेक फिल्में की हैं।
अभिनय कर पाऊंगी नहीं जानती थी
मैं खुद भी नहीं जानती थी कि मैं अभिनय कर सकती हूं। कॉलेज में हमेशा हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर भाग लेना मेरा शौक था, जिसे मैं विवाह के बाद भूल गई थी। लेकिन जब 1988 में मेरे पति राकेश कौशल, जो अब डिस्ट्रिक्ट स्पोर्ट्स अफसर हैं, का तबादला जालंधर हुआ, तो रेडियो पर कुछ कार्यक्रम देने शुरू किए। यहीं ड्रामा आर्टिस्ट बनी और पुनीत सहगल उन दिनों रेडियो पर थे और उनके साथ कई नावेल रेडियो पर प्रस्तुत किए। उन्हें मेरी प्रतिभा का अंदाजा था और जब उनका तबादला दूरदर्शन में हुआ, तो वहां भी उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया। बस, वहीं से शुरू हुआ अभिनय का सफर।