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शिक्षा के गुलशन खिला रही 'गुलिस्तां', अब कचरा बीनने वाले हाथों में दिखती हैं किताबें Ludhiana News

रूपिका बताती हैं कि जब वह बच्चों के माता पिता से मिली। इनमें से ज्यादातर अभिभावक बच्चों को सुबह ही कूड़ा बीनने के लिए भेज देते थे और उनको पढ़ाने की बात पर भड़क जाते थे।

By Edited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 07:30 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 04:10 PM (IST)
शिक्षा के गुलशन खिला रही 'गुलिस्तां', अब कचरा बीनने वाले हाथों में दिखती हैं किताबें Ludhiana News
शिक्षा के गुलशन खिला रही 'गुलिस्तां', अब कचरा बीनने वाले हाथों में दिखती हैं किताबें Ludhiana News

जेएनएन, लुधियाना। आज भी देश में लाखों बच्चे हैं, जिन्होंने या तो कभी स्कूल का मुंह ही नहीं देखा या फिर अलग-अलग वजहों से पढ़ाई बीच में छोड़ दी। ऐसे बच्चों को शिक्षित करना ही मेरी जिंदगी का लक्ष्य है। यह कहना है नन्हें गुलिस्तां (एक कदम शिक्षा की ओर) एनजीओ के जरिए झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित कर रही रूपिका का। रूपिका साठ से अधिक बच्चों को निशुल्क पढ़ा रही है। यहीं नहीं, सभी बच्चों को यूनिफॉर्म से लेकर पाठ्य सामग्री निशुल्क उपलब्ध करवाती जाती हैं।

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दुगरी निवासी कोचिंग सेंटर संचालिका रूपिका बताती हैं कि अकसर वह रास्ते से गुजरते वक्त झुग्गी झोपड़ी व स्लम एरिया में रहने वाले बच्चों को कूड़े के ढेर से कचरा बीनते हुए देखती थीं। यह देखकर मन बड़ा विचलित होता था। जब भी इन बच्चों को देखती थी तो हर बार मन से एक ही आवाज आती कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। फिर क्या था, वर्ष 2016 में ठान लिया कि स्लम बस्तियों में रहने वाले ऐसे बच्चों, जिनके परिजनों के पास उन्हें स्कूल भेजने के पैसे नहीं होते उन्हें शिक्षित करेंगी। उन्होंने नन्हें गुलिस्तां (एक कदम शिक्षा की ओर) एनजीओ बनाई।

कठिनाइयों के बावजूद नहीं हारी हिम्मत

इसके बाद वह झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के माता पिता से मिली। इनमें से ज्यादातर अभिभावक ऐसे थे, जो बच्चों को सुबह ही कूड़ा बीनने के लिए भेज देते थे। जब अभिभावकों से बच्चों को पढ़ाने की बात करती तो वह भड़क जाते। क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। उन्होंने बार-बार इंकार सुनने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और अभिभावकों से मिलना जारी रखा और उन्हें बताया कि वह उनके बच्चों को निशुल्क शिक्षित करना चाहती है। तब जाकर बच्चों के माता पिता माने।

तीन-चार बच्चों से हुई थी शुरुआत

रूपिका बताती हैं कि जब उन्होंने एनजीओ शुरू की तब पहले दो महीने तो तीन से चार बच्चे ही पढ़ने आते थे, लेकिन धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ती गई। वह बताती हैं कि वह सभी बच्चों को खुद पढ़ाती है। जिसमें तीन से लेकर बारह साल तक के बच्चे है। अब 60 से अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं।

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