डॉलर के मुकाबले लगातार लुढ़कता रुपया ऐसे डूबो रहा उद्योग जगत की नैया..
विदेशों से आ रहा कच्चा माल महंगा पड़ रहा है और इंडस्ट्री की लागत बढ़ रही है, जबकि बाजार में सुस्ती के कारण तैयार माल का रेट बढ़ नहीं पा रहा है।
राजीव शर्मा, लुधियाना : डॉलर के मुकाबले लगातार लुढ़क रहा रुपया उद्योग जगत के आयातित कच्चे माल पर चोट कर रहा है। विदेशों से आ रहा कच्चा माल महंगा पड़ रहा है और इंडस्ट्री की लागत बढ़ रही है, जबकि बाजार में सुस्ती के कारण तैयार माल का रेट बढ़ नहीं पा रहा है। साफ है कि उद्यमी मौजूदा स्थिति को मैनेज नहीं कर पा रहे हैं। इंडक्शन फर्नेस उद्यमियों ने फिलहाल आयातित स्क्रैप के आर्डर देने से हाथ खींच लिया है। डॉलर के मुकाबले शुक्रवार को रुपया कमजोर होकर 70.99 के स्तर पर रह गया। करंसी में आ रहे तेज उतार-चढ़ाव ने उद्यमियों की नींद हराम कर दी है। ऑल इंडिया इंडक्शन फर्नेस एसोसिएशन के प्रेसिडेंट संदीप जैन का कहना है कि करीब एक-डेढ़ माह पहले उद्यमियों ने औसतन 68 रुपये प्रति डॉलर के हिसाब से स्क्रैप आयात का ऑर्डर दिया था। तब स्क्रैप का रेट करीब 370 डॉलर था। आज डॉलर का रेट करीब 71 रुपये पर आ गया है। जबकि विदेशी सप्लायर को पेमेंट प्रीमियम जोड़कर लगभग 71.25 पर होगी। इसके चलते डेढ़ माह में कुल 3.25 रुपये का अंतर आ गया है। साफ है कि सिर्फ करंसी के कमजोर होने से अब वह स्क्रैप उद्यमियों को लगभग 1250 रुपये प्रति टन महंगी पड़ेगी। जिस तरह से रुपया कमजोर हो रहा है उद्यमी अब विचार कर रहे हैं कि डॉलर की कीमत औसतन 72 रुपये की कॉस्टिंग से आयात के आर्डर दें, लेकिन ऐसी हालत में स्क्रैप का अंतरराष्ट्रीय रेट 340 डॉलर प्रति टन के आसपास होना चाहिए, लेकिन विश्व बाजार में अभी भी रेट 370 डॉलर के स्तर पर है। इस रेट पर माल मंगवाना नुकसान का सौदा है। नतीजतन उद्यमी फिलहाल आयात से हाथ खींच रहे हैं। देश में सालाना करीब 80 लाख टन स्क्रैप का विदेशों से आयात होता है। संदीप जैन का कहना है कि सरकार ने भारतीय करंसी को सौ फीसद फ्री नहीं किया है। मसलन कोई भी व्यक्ति डॉलर समेत विदेशी करंसी को खरीद कर नहीं रख सकता। यदि ऐसा होता तो उद्यमी बाजार की चाल के अनुसार मैनेज कर पाते। जबकि अमेरिकन एवं ऑस्ट्रेलियन डॉलर, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, पाउंड, यूरो एवं यूएई का दराम सौ फीसद फ्री है। इन करंसी को खरीद कर रखा जा सकता है।
नई मशीनरी खरीदने से संकोच, स्थिरता का इंतजार
उधर वूल क्लब के चेयरमैन शाम बांसल का कहना है कि 6-7 माह पहले डॉलर के मुकाबले रुपया 65 के स्तर पर था। अब वह 71 तक पहुंच गया है। इससे 15 लाख रुपये वाली सीफिंग और स्टेगर निटिंग मशीन अब 16.50 लाख रुपये में आ रही है। इससे इंडस्ट्री पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। रुपये में तेज उठापठक के कारण फिलहाल नई मशीनरी खरीद से संकोच किया जा रहा है और करंसी बाजार में स्थिरता का इंतजार किया जा रहा है।