इंग्लैंड से आई रणजीत कौर 75 साल बाद अपने स्कूल पहुंच हुईं भावुक, विद्यार्थियों के साथ समय बिताकर पुराने दिन किए याद
सिधवां खुर्द के सरदार नारायण सिंह ने अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए वर्ष 1909 में यह स्कूल खोला था। उस समय स्कूल में केवल पांच बच्चों ने दाखिला लिया था। समय के साथ स्कूल का नाम ऊंचा होता गया और यह लड़कियों के लिए बड़ा शिक्षण संस्थान बन गया।
बिंदु उप्पल, जगराओं (लुधियाना)। इंग्लैंड से आईं गांव छोटी ललतों खुर्द की रहने वाली 93 वर्षीय रणजीत कौर करीब 75 वर्ष बाद अपने स्कूल पहुंचकर भावुक हो गईं। वर्ष 1942 से 1947 तक सिधवां खुर्द स्कूल में बिताए दिनों को याद करते हुए रणजीत कौर ने कहा कि ‘जब मैं यहां पढ़ती थी उस समय बिजली नहीं होती थी। हम मिट्टी के तेल से लैंप जलाकर पढ़ाई करते थे। घर से स्कूल और स्कूल से घर तक घोड़ागाड़ी से आना जाना होता था।
स्कूल जाने की जताई इच्छा
सिख गल्र्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल सिधवां खुर्द वर्ष 1909 में बनाया गया था। आज 113 वर्ष बाद यह बुलंदियों को छू रहा है। रणजीत कौर ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1947 में दसवीं पास की थी। वे हास्टल में रहती थीं। स्कूल की पूर्व छात्र के स्कूल पहुंचने पर प्रिंसिपल जतिंदर कौर, स्कूल प्रबंधन कमेटी और स्टाफ ने उनका स्वागत किया। प्रिंसिपल ने उन्हें स्कूल व हास्टल के रजिस्टर में उस समय दर्ज उनका नाम भी दिखाया।
उन्होंने हास्टल की वह पुरानी इमारत भी देखी जहां कभी वे रहती थीं। रणजीत कौर एक महीना पहले इंग्लैंड से गांव मंडियानी, मुल्लांपुर दाखा में अपनी बेटी हरिंदर कौर के पास आई हैं। उन्होंने अपने स्कूल जाने की इच्छा जताई, जिसके बाद दामाद व बेटी उन्हें वहां लेकर पहुंचे। वे करीब ढाई घंटे स्कूल में रहीं। नौवीं व दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों के पास जाकर बातें भी की।
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सरदार नारायण सिंह ने बनवाया था स्कूल
सिधवां खुर्द के सरदार नारायण सिंह ने अपनी इकलौती बेटी हरप्रकाश कौर को पढ़ाने के लिए यह स्कूल खोला था। उस समय स्कूल में केवल पांच बच्चों ने दाखिला लिया था। समय के साथ स्कूल का नाम ऊंचा होता गया और यह लड़कियों के लिए एक बड़ा शिक्षण संस्थान बन गया। वर्ष 1944 में सरदार नारायण ने अपनी सारी जायदाद इस गल्र्स स्कूल को दान दे दी थी। इसी जमीन पर लड़कियों के कालेज बनाया गया।
स्कूल के स्टाफ व विद्यार्थियों को दी शुभकामनाएं
रणजीत कौर ने स्कूल के विजटिंग रजिस्टर पर स्टाफ और विद्यार्थियों के लिए शुभकामनाएं लिखीं। इसके साथ ही स्कूल को 11 हजार रुपये भी भेंट किए। स्कूल में बच्चों के साथ बातचीत में रणजीत कौर ने उन्हें बताया कि उस समय पढ़ाई मंहगी होने के कारण लड़कियों को पढ़ाने का रिवाज नहीं था। उनकी स्कूल फीस एक रुपये और हास्टल फीस 20 रुपये प्रति महीना होती थी। मैस का खाना लड़कियां खुद तैयार करती थीं। स्कूल के संस्थापक नारायण सिंह की पत्नी राम कौर भी खाना तैयार करती थीं।