पीला रतुआ को हराकर किसानों को मालामाल करेगी गेहूं की नई किस्म, पीएयू के वैज्ञानिकों ने की तैयार
पीबीडब्ल्यू 824 किस्म को लेकर पिछले कई सालों से राष्ट्रीय स्तर पर ट्रायल किए गए जिसमें उत्तर पश्चिमी क्षेत्र आता है। हमने देखा कि पीबीडब्ल्यू 824 किस्म का औसतन झाड़ 23.3 क्विंटल प्रति एकड़ है। इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी है।
आशा मेहता, लुधियाना। गर्मी के कारण गेहूं को होने वाले नुकसान से अब किसान बच सकेंगे। लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नई किस्म पीबीडब्ल्यू-824 विकसित की है। इसकी विशेषता यह है कि पंजाब में मौजूदा समय में लगाई जा रही गेहूं की दूसरी किस्मों के मुकाबले यह अधिक पैदावार देती है। इसके अलावा यह पीला रतुआ (पीली कुंगी) जैसी बीमारियों और गर्मी से लड़ने में भी सक्षम है। गर्मी बढ़ने पर भी यह किस्म अधिक उत्पादन देती है।
मार्च में गेहूं की इस किस्म को विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट आफ प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक्स व्हीट सेक्शन के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि किसान की खेती कर ज्यादा उत्पादन लेकर मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी बिजाई अगेती और समय पर की जा सकती है। इसका औसत कद 10 सेंटीमीटर है और करीब 156 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की बिजाई किसी भी तरीके से की जा सकती है।
व्हीट सेक्शन के इंचार्ज वीरइंदर सिंह सोहू कहते हैं कि पंजाब में करीब 35 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बिजाई की जाती है। इसमें से करीब 24 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की तीन किस्में एचडी 3086, एचडी 2967 व पीबी डब्ल्यू 725 लगाई जाती हैं। एचडी 3086 किस्म के अंतर्गत करीब 40 फीसद क्षेत्र आता है और इसका औसतन झाड़ 23 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि 20 फीसद क्षेत्र में एचडी 2967 किस्म लगाई जाती है। इसका औसतन झाड़ 21.4 क्विंटल प्रति एकड़ है। वहीं पीबी डब्ल्यू 725 किस्म के अंतर्गत दस फीसद एरिया आता है और इसका औसतन झाड़ 22.9 क्विंटल प्रति एकड़ है। तीनों किस्मों के अंतर्गत करीब 70 फीसद क्षेत्र आता है। वहीं दूसरी तरफ पीबीडब्ल्यू 824 किस्म को लेकर पिछले कई सालों से राष्ट्रीय स्तर पर ट्रायल किए गए, जिसमें उत्तर पश्चिमी क्षेत्र आता है। हमने देखा कि पीबीडब्ल्यू 824 किस्म का औसतन झाड़ 23.3 क्विंटल प्रति एकड़ है।
तीनों किस्मों के मुकाबले पीबीडब्ल्यू 824 किस्म अधिक उत्पादन दे रही है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर हुए तजुर्बों के दौरान पीबीडब्ल्यू 824 ने करनाल सेंटर में सबसे अधिक 39.5 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन दिया है।
बचेगा स्प्रे का खर्च
डा. सोहू कहते हैं कि इस किस्म की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी है। यह किस्म भूरी कुंगी रोधी है। यानी इस पर भूरी कुंगी की बीमारी नहीं लगती। यह पीली कुंंगी का मुकाबला करने में भी सक्षम है। पंजाब में लगाई जा रही एचडी 3086 व एचडी 2967 किस्म भूरी कुंगी व पीली कुंगी रोग लगता है। इन दोनों रोगों की वजह से गेहूं को काफी नुकसान होता है। फसल को बीमारी से बचाने के लिए किसानों को समय-समय पर स्प्रे करना पड़ता है। अगर किसान फसल पर बीमारी लगने पर समय पर स्प्रे न करें, तो इन दोनों रोगों की वजह से गेहूं का झाड़ काफी कम हो जाता है। ऐसे में किसान अगर पीबीडब्ल्यू 824 किस्म लगाते हैं, तो दूसरी किस्मों को लगाने पर स्प्रे पर आने वाला खर्च बचेगा।
70 फीसद तक उपज प्रभावित कर सकता है पीला रतुआ
पीला रतुआ रोग एक खास तरह के फफूंद (पक्सीनिया स्ट्राईफारमिस) से होता है। यह गेहूं की पैदावार को 70 फीसद तक प्रभावित कर सकता है। वर्ष 2013-14 में पंजाब समेत उत्तर भारत के बड़े क्षेत्र में इससे 30 फीसद तक फसल बर्बाद हो गई थी। इस बीमारी में गेहूं का झाड़ पीला पड़ जाता है और इसकी ग्रोथ रुक जाती है।
अधिक तापमान का पैदावार पर असर नहीं
डा. सोहू कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज की वजह से अलग-अलग तरह के परिणाम सामने आ रहे हैं। दिन का तापमान बढ़ रहा है। मौसम के मिजाज में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। ऐसे में जरूरत थी कि ऐसी किस्म तैयार की जाए, जिससे कि तापमान बढऩे पर भी उपज प्रभावित न हो। पिछले कुछ वर्षों में देखने में आया है कि मार्च में तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। तापमान ज्यादा होने से गेहूं के दाने सिकुड़ जाते हैं, जिससे पैदावार प्रभावित होता है, जबकि हमारी पीबीडब्ल्यू 824 हाई टेंपरेचर (40 डिग्री सेल्सियस) सहन करने वाली किस्म हैं। विभाग के डॉ गुरविंदर सिंह मावी के अनुसार यह किस्म पकने के लिए अधिक समय लेने की वजह से मार्च में बढ़ते तापमान को भी सहन कर लेती है। इस वजह से अधिक तापमान होने के बावजूद इसका झाड़ अधिक आ जाता है।