Move to Jagran APP

अकेला ज्ञान कभी जीव का कल्याण नहीं कर सकता : रमेश मुनि

एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में रमेश मुनि मुकेश मुनि व मुदित मुनि सुखमाता विराजमान हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 27 Sep 2020 03:05 AM (IST)Updated: Sun, 27 Sep 2020 03:05 AM (IST)
अकेला ज्ञान कभी जीव का कल्याण नहीं कर सकता : रमेश मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में रमेश मुनि, मुकेश मुनि व मुदित मुनि सुखमाता विराजमान हैं। आज के संदेश में गुरुदेव रमेश मुनि ने कहा मुस्कुराहट दुनिया का सबसे बड़ा इंवीटेशन कार्ड है। किसी को अपना बनाना है तो मुस्कराओ और किसी के अपने बनना है? तो मुस्कराओ। मुस्कराने का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। तुम्हें पता होना चाहिए कि मुस्कुराता हुआ बुढ़ा भी अच्छा लगता है और रोता हुआ बच्चा भी बुरा लगता है। एक मनुष्य ही है? तो मुस्करा सकता है। अरे मैं पूछता हूं कि क्या तुमने कभी किसी जानवर को मुस्कुराते हुआ देखा है? आप अपनी पांच इंद्रियों का सदुपयोग करें।

loksabha election banner

उन्होंने कहा कि अकेला ज्ञान कभी जीव का कल्याण न हीं कर सकता। साथ में क्रिया भी होना जरूरी है। अरे अगर आप सुखी जीवन जीना चाहते है? तो मेरी तीन बातों पर ध्यान रखे। ठीक ढंग से रहना आ जाए। ठीक ढंग से अपनी बात कहना आ जाएं। जरूरत पड़ने पर सहना आ जाएं। हमें ठीक ढंग से रहना नहीं आता और ढंग से कहना भी नहीं आता तथा सहना तो आता ही नहीं। जहां संत आ जाएं, वहां बसंत आ जाएं : अरुण मुनि संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में संघशास्ता श्री सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव अरुण मुनि ठाणा-6 सुखसाता विराजमान हैं। आज के संदेश में अरुण मुनि ने कहा कि संत जहां आ जाते हैं, वहीं बसंत आ जाता है। जिस तरह बसंत के बिना पृथ्वी खत्म हो जाएगी। उसी प्रकार से संतों के बिना आत्मा का उत्थान नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि आज दुनिया में धर्म और मत मंत्राओं की कोई कमी नहीं। पर याद रखो। मात्र मान्यता को ही धर्म समझना बड़ी अज्ञानता होगी। जो क्रिया पाप को नाश करे, मन में शांति और आनंद प्रदान करे। जो शांति से जीए और दूसरे सभी प्राणियों को भी अपनी आत्मा के समान मानकर उनकी रक्षा में सदा तत्पर रहे। वास्तव में ऐसा महान और श्रेष्ठ आचरण को ही धर्म कहा जाता है।

उन्होंने कहा कि दुख आने पर डर, घबराकर धर्म से विचलित न हो। दुख से ही सुख के महत्व को समझा जा सकता है। दुख एक कसौटी है। दुख किसी का दिया हुआ नहीं है। दुख आने पर यदि भागना भी चाहे तो भी भाग नहीं पाएंगे। जो कर्ज लिया है तो उसे चुकाना ही पडेगा। असहाय की सेवा भगवान की पूजा से भी उत्तम है। यदि हम बाह्य अनुष्ठान न भी कर सकें, तो भी कोई बात नहीं, परंतु असहाय और जरूरतमंद की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है। इसका पालन यथा-शक्ति और यथा-संभव अवश्य करें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.