दान का फल कई गुना अधिक होकर मिलता है: पीयूष मुनि
सिविल लाइंस जैन स्थानक में चल रही चातुर्मास सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि महाराज ने कहा कि जो गरीबों को दान देता है, वह मानो प्रभु को ही दान देता है।
संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक में चल रही चातुर्मास सभा में उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि महाराज ने कहा कि जो गरीबों को दान देता है, वह मानो प्रभु को ही दान देता है। इस तरह दान देना परलोक के प्रामणिक बैंक में धन जमा करना है। एक हाथ से देने वाला दी हुई वस्तु को दो हाथों से समटेता है। भविष्य में काम आएगा, ऐसा सोचकर अच्छे काम में धन का सदुपयोग करने से संकोच नहीं करना चाहिए। सच्चा सुख संग्रह में नहीं, बल्कि सब कुछ बिखेर देने में है। मार्ग में गुजरते हुए दिखाई देने वाले खेतों की हरियाली किसान द्वारा अपने अनाज को बिखेर देने के कारण है। अनाज को गोदामों में भरकर लंबे समय तक रखने से वह खराब हो जाता है, उसमें कीडे़ पैदा हो जाते हैं। दान से समाज लहलहा उठता है और संचय से दुर्गन्ध पैदा होती है। जिसके पास धन है, उसे समाज में उसका प्रवाह बनाए रखना चाहिए। धन को द्रव्य कहा जाता है। मुनि श्री ने कहा कि जो देता है, वह मानो एकत्र करता है, मंदिर में सौ बार हाथ जोड़ने की अपेक्षा दान करने के लिए एक बार हाथ खोलना अधिक उत्तम होता है। भलाई का काम नहीं करने वाला पशु की तरह मरता है
पीयूष मुनि ने कहा कि जिसने सारी जिंदगी कुछ भी भलाई का काम नहीं किया, वह मनुष्य की तरह नहीं, बल्कि पशु की तरह मरता है। दान देने से ऐसा आनंद और कहीं नहीं। गुप्त दान सच्चा दान है। दान से प्राप्त मान का भी त्याग करके व्यक्ति सच्चा सुख और शांति प्राप्त कर सकता है।