कर्मो की वजह से भटकता रहता है मानव: पीयूष मुनि
संसार में कुछ व्यक्ति शरीर से तो दृढ़ होते हैं, परंतु भावना तथा आत्मिक शक्ति से बहुत कमजोर होते हैं। संसार में प्रलोभन की वस्तुएं चारों ओर फैली हैं, जिनके लिए मनुष्य ज्ञाना विडंबनाएं भोगते देखे जाते हैं।
संस, लुधियाना : संसार में कुछ व्यक्ति शरीर से तो दृढ़ होते हैं, परंतु भावना तथा आत्मिक शक्ति से बहुत कमजोर होते हैं। संसार में प्रलोभन की वस्तुएं चारों ओर फैली हैं, जिनके लिए मनुष्य ज्ञाना विडंबनाएं भोगते देखे जाते हैं। यह पंक्तियां सिविल लाइंस जैन स्थानक में चल रही चातुर्मास की विशेष सभा में उप-प्रवर्तक मुनि पीयूष महाराज ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि कुछ धन के लिए कष्ट सहते हैं, कुछ परिवार मोह में फंसे रहते हैं और कुछ यश कीर्ति के लिए आकाश पाताल एक कर देते हैं। विषय भोगों के प्रलोभन ने संसार के सभी प्राणियों को अपने चंगुल में फंसा रखा है और बडे़-बडे़ विद्वान, लेखक, भाषण कार भी इसके शिकंजे से छूट नहीं पाते। मात्र कुछ ही व्यक्तियों को छोड़कर संसार के सभी प्राणी विषय विकारों के शिकार बने रहते हैं। आध्यात्मिक साधना करने वालों को संतन अभ्यास के द्वारा मन पर विजय पाते हुए मन की शक्ति को दृढ़ बनाना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि सर्वोत्तम तो यही है कि मनुष्य में मानसिक शक्ति के साथ शारीरिक शक्ति भी प्रचूर प्राप्त हो। शारीरिक बल का कम महत्व नहीं है। शारीरिक दृढ़ता मनुष्य को भौतिक जीवन के प्रति निर्भय बनाती है तथा मानसिक दृढ़ता पारलौकिक जीवन के लिए निर्भय करती है।
आत्म के शुद्ध स्वभाव पर विकारों की कालिख ढकी रहती है। परिणाम स्वरूप आत्मा में कमजोरी आ जाती है और जन्म-मरण बढ़ते जाते हैं। संसार के विषय भोग आग के समान होते हैं, जब तक यह आग धधकती रहती है, प्राणी को शांति नहीं मिलती है। वह बहुत अधिक अशांत रहता है। यह व्याकुलता कर्म बंधन का कारण है। कर्मो की वजह से जीव भटकता रहता है। जब तक विषय भोगों की तृष्णा शांत नहीं होगी, आत्म शांति नहीं पा सकेगी।