मनुष्य में दुख में से सुख खोजने की कला: स्वामी निगम बोध
दुख में से सुख खोजने की कला यही है कि जो तुम्हारे पास है उसमें खुश रहें।
संस, लुधियाना : दुख में से सुख खोजने की कला यही है कि जो तुम्हारे पास है, उसमें खुश रहें। जो नहीं है उसके पीछे नहीं भागे। लेकिन मनुष्य की आदत है कि वह जो उसके पास है उसमें नहीं जीता। जो नहीं मिलता उसके पीछे भागता है। यह बात मंगलवार को भारत धर्म प्रचारक मंडल द्वारा वेद मंदिर में कार्तिक मास को लेकर कराई जा रही कथा के दूसरे दिन वेदाचार्य स्वामी निगम बोध तीर्थ ने की। उन्होंने कहा कि यदि तुम्हारा एक दांत टूट जाता है तो जीभ बार-बार वहीं जाती है। लगता है कि एक दांत कम है। जब तक था, तब उसकी उपयोगिता उसका महत्व समझ में नहीं आता था। मछली जब तक पानी में रहती है, तब तक पानी की महिमा नहीं समझ पाती है, लेकिन जब कोई मछुआरा उसे पकड़ कर गर्म रेत में पटक देता है। तब पहली बार उसे समझ में आता है कि जल ही जीवन है। उन्होंने कहा कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारी पूरी सेवा करती है, तुम्हारी सुख सुविधा का ध्यान रखती है। लेकिन आप कहीं ओर ही होते हैं। जीवन में लक्ष्य जरूरी
स्वामी दंडी स्वामी देवेश्वांनद तीर्थ महाराज ने कहा कि आप मानव जीवन रुपी गाड़ी में बैठे हो, लेकिन आपको मालूम नहीं है कि आप को कौन से स्टेशन पर उतरना है। लक्ष्य का कोई पक्ष है या नहीं। सुबह उठते ही भागना शुरू करते हो, भागते ही जाते हो। भागते ही जाते हो, किस लिए भाग रहे हो, क्यों भाग रहे हो? कोई लक्ष्य ही नहीं। जब तक लक्ष्य नहीं होगा, पक्ष नहीं होगा, मात्र गति ही होगी। यहां स्वामी प्रणवानंद तीर्थ, आचार्य सत्य नारायण, विश्न सरुप चोपड़ा, शिवराम, हरिओम सहगल, सतीश अरोड़ा, पं. दीप वशिष्ठ, मोहणी भार्गव, पं. सौरव, राजेंद्र कपूर, पवन दीदी आदि शामिल थे।