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बुड्ढा नाले के किनारों रहने वाले लोगों को सताने लगा घराें में पानी पहुंचने का डर

नाले के किनारे रहने वाले दुकानदार अजय ने कहा कि सालों से नाले पर तरह-तरह के तजुर्बे हो रहे हैं। अब बरसात सिर पर है और नाले की सफाई नहीं हो पा रही है।

By Vikas_KumarEdited By: Published: Thu, 09 Jul 2020 09:29 AM (IST)Updated: Thu, 09 Jul 2020 01:51 PM (IST)
बुड्ढा नाले के किनारों रहने वाले लोगों को सताने लगा घराें में पानी पहुंचने का डर

लुधियाना, राजेश शर्मा। सरकारें आती रहीं और जाती रहीं। सभी ने बुड्ढा नाला के कायाकल्प के सपने दिखाए। कई स्कीमें भी लाई गईं, कई तरीके अपनाए, लेकिन बुड्ढा नाला आज भी शहर के लिए नासूर बना हुआ है। प्रशासन ने नाले के किनारे हरा-भरा रखने के लिए किनारों पर पौधे लगा दिए और जानवर पौधे खराब न करें, इसके लिए ट्री गार्ड लगाने के साथ ही किनारों पर जाली भी लगवा दी।

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अब नाले की हर साल सफाई की जाती है। अब संकट यह है कि पौधे बड़े हो गए हैं। इससे सफाई करने में दिक्कत आ रही है। नाले के किनारे रहने वाले दुकानदार अजय ने कहा कि सालों से नाले पर तरह-तरह के तजुर्बे हो रहे हैं। अब बरसात सिर पर है और नाले की सफाई नहीं हो पा रही है। ऐसे में पानी कहीं किनारों से निकलकर घरों में ही न पहुंच जाए। इसे लेकर दुकानदारों में डर बना हुआ है।

अब ढूंढते रहो श्रमिकों को
कोरोना संकट के कारण लगे कफ्र्यू से काम धंधे बंद हो गए। मई से श्रमिक विशेष ट्रेनें शुरू हुईं और सरकार ने लाखों मजदूरों को घर भेज दिया। अब अनलॉक के दौरान औद्योगिक गतिविधियां फिर से शुरू हो गई हैं, लेकिन उद्यमियों के समक्ष लेबर का संकट मंडरा रहा है। हालत यह है कि कोई उद्यमी हवाई जहाज से तो कोई ट्रेन या टैक्सी से मोटी रकम खर्च करके लेबर ला रहा है।

बावजूद इसके इंडस्ट्री में लेबर का टोटा है। यहां तक कि गांवों के युवाओं को भी काम के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लेबर संकट पर उद्यमी आपस में बातचीत कर रहे थे तो किदवई नगर निवासी उद्यमी सुदर्शन ने कह ही दिया कि सरकार ने तो पंजाब को लेबर मुक्त कर दिया, अब दीपक लेकर ढूंढ़ते रहो श्रमिकों को। इस पर अन्य लोगों ने भी समर्थन किया और बोले कि हुण इंडस्ट्री रफ्तार किवें फड़ू।

लगदा हुण सीईटीपी चल जाऊ
सरकार से काम करना खासकर ग्रांट या सब्सिडी हासिल करना कितना मुश्किल है, इसका अहसास डाइंग उद्यमियों को काफी है। ताजपुर रोड पर दो कॉमन एफल्यूएंट ट्रीटमेंट प्लांट लग रहे हैं। इनमें उद्यमी अपनी जेब से पैसे खर्च कर रहे हैं, साथ ही केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से सब्सिडी भी मिलनी है। पिछले दस साल से उद्यमी सब्सिडी पाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के चक्कर काट-काट कर हांफ गए, जब रास्ता नहीं निकला तो मजबूरी में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस दायर करना पड़ा।

अब एनजीटी ने केंद्र एवं राज्य सरकार को तीन सप्ताह में पूरी सब्सिडी जारी करने का निर्देश दिया है। इससे खुश पंजाब डायर्स एसोसिएशन के महासचिव बॉबी जिंदल पूरी उम्मीद एवं आत्मविश्वास से बोले कि लगता है अब दस साल की मेहनत सफल हो जाएगी। सब्सिडी मिल जाएगी और कॉमन एफल्यूएंट ट्रीटमेंट प्लांट भी चल जाएंगे। वाकई सरकार से काम कराना आसान नहीं।

कोरोना ने सिखाई फैमिली लाइफ
कोरोना महामारी के दौरान दो माह तक लगे कफ्र्यू में व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। कई दिन दुकानें बंद रहीं और फिर कुछ घंटे के लिए खुलनी शुरू हुईं। धीरे-धीरे दुकानों का वक्त बढ़ता गया। दुकानदार सुबह से देर रात तक दुकानदारी करते हैं, यहां तक कि परिवार, मित्रों एवं रिश्तेदारों के लिए भी उनके लिए वक्त कम ही रहता था। ऐसे में वे सामाजिक तौर पर लोगों से जुड़ नहीं पाते थे।

कोरोना में काफी राहत मिली। अब समझ में आ गया कि ज्यादा दौड़-धूप करने का कोई फायदा नहीं। अभी भी रविवार को लॉकडाउन है, दुकानें बंद रहती हैं। बदले माहौल में घुमार मंडी स्थित कपड़ा कारोबारी बिट्टू कुमार कहते हैं कि सारी उम्र भागते रहे। अब कोरोना ने तो फैमिली लाइफ भी सिखा दी है। अब कारोबार भी हो रहा है और परिवार, मित्र एवं रिश्तेदारों के साथ बातचीत के बीच सुख-दुख भी साझा हो रहा है।



 


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