कमजोर मांग ने बिगाड़ा पेपर मिलों का गणित, इस साल करीब 20 फीसद सस्ता हुआ कागज Ludhiana News
पिछले साल के मुकाबले विभिन्न तरह के कागज के दामों में करीब बीस फीसद तक की कमी देखी जा रही है। ऐसे में पेपर मिलों ने अपने उत्पादन में करीब 20 फीसद की कमी की है।
लुधियाना, [राजीव शर्मा]। बाजार में कमजोर मांग एवं विदेशों से हो रहे सस्ते आयात को घरेलू उद्योग झेल नहीं पा रहा है, जिसके कारण पेपर मिलों का गणित गड़बड़ा गया है। हालत यह है कि उत्पादन लागत बढ़ रही है, लेकिन कीमतें कम हो रही है। पिछले साल के मुकाबले विभिन्न तरह के कागज के दामों में करीब बीस फीसद तक की कमी देखी जा रही है। ऐसे में पेपर मिलों ने अपने उत्पादन में करीब 20 फीसद की कमी की है। मिलें अपनी स्थापित क्षमता का 75 से अस्सी फीसद ही उपयोग कर पा रही हैं। घरेलू कागज उद्योग को थामने के लिए सरकार को पहल करनी होगी। उद्यमियों ने सरकार से आग्रह किया है कि मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के तहत जीरो ड्यूटी पर हो रहे आयात की जांच के अलावा आयात को नियंत्रित करने एवं घरेलू उद्योग को संरक्षण देने के लिए सेफगार्ड ड्यूटी लगाई जाए।
कागज के आयात में 30 फीसद का उछाल
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कागज एवं बोर्ड के आयात में करीब 30 फीसद का उछाल आया है। चीन से आयात 47.7 फीसद बढ़ा है, जबकि आसियान देशों से 78.9 फीसद आयात बढ़ा है। आसियान देशों से एफटीए के तहत जीरो ड्यूटी पर आयात हो रहा है। आसियान देशों में कागज का उत्पादन काफी है। खास कर इंडोनेशिया में लकड़ी एवं कोयला सस्ता है, ब्याज दर भी काफी कम है। वहां पर उत्पादन लागत कम होने से सस्ता माल भारतीय बाजार में डंप किया जा रहा है।
कागज की प्रति व्यक्ति खपत बढ़ाने की जरूरत
भारत में प्रति व्यक्ति कागज की खपत 13 किलोग्राम सालाना है, जबकि विश्व स्तर पर इसकी औसत 57 किलो है। ऐसे में देश में कागज की प्रति व्यक्ति खपत बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा करके इंडस्ट्री में भी जान फूंकी जा सकती है। माना जा रहा है कि प्लास्टिक को दरकिनार कर कागज की खपत को नए-नए इनोवेशन के साथ प्रोत्साहित करना होगा। देश में हर तरह के कागज की करीब 24 मिलियन टन सालाना की मांग है, जबकि घरेलू पेपर मिलें 21 मिलियन टन पेपर का उत्पादन कर रही हैं। करीब तीन मिलियन टन पेपर विदेशों से आयात किया जा रहा है। लेकिन बढ़ रहा आयात इंडस्ट्री के लिए दिक्कतें पैदा कर रहा है।
आर्थिक सुस्ती के कारण मांग में कमी
इंडियन एग्रो एंड रिसाइकिल पेपर मिल्स एसोसिएशन आर्थिक सुस्ती के कारण पैकेजिंग उद्योग से मांग कम आ रही है। इसके अलावा लेखन एवं प्रिंटिंग क्षेत्र की मांग भी दबाव में है। कमजोर मांग के चलते पिछले साल 62 रुपये प्रति किलो में बिकने वाला प्रिंटिंग एवं राइटिंग पेपर का दाम अब पचास से 52 रुपये प्रति किलो रह गया है। इसी तरह वेस्ट मिलों के पेपर की कीमत भी पिछले साल के पचास से 52 रुपये प्रति किलो से कम होकर चालीस रुपये रह गई है।
इंडस्ट्री के मार्जेन पर दबाव
सेतिया पेपर मिल्स लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर आरके भंडारी का तर्क है कि विभिन्न देशों के साथ हुए एफटीए का घरेलू कागज उद्योग को काफी नुकसान हो रहा है। इनको चेक करने एवं उपयुक्त कदम उठाने की जरूरत है। इसके अलावा पंजाब में ज्यादातर मिलें एग्रो बेस्ड हैं। इनमें तूड़ी का उपयोग किया जाता है। कम उत्पादन के चलते तूड़ी की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 15 फीसद अधिक हैं। इसका भी लागत पर असर आ रहा है और गिरती कीमतों के बाजार में खुद को संभालना मुश्किल हो रहा है। इससे इंडस्ट्री के मार्जेन पर दबाव आ रहा है।
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