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छलका बंटवारे का दर्द, बूढ़ी आंखों में आज भी घूमता है भारत का यह गांव

बंटवारे के दौरान हुए कत्लेआम को याद कर पाकिस्तान के अब्दुल अजीज की आंखें भर आती हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 06 Sep 2018 03:07 PM (IST)Updated: Thu, 06 Sep 2018 09:09 PM (IST)
छलका बंटवारे का दर्द, बूढ़ी आंखों में आज भी घूमता है भारत का यह गांव
छलका बंटवारे का दर्द, बूढ़ी आंखों में आज भी घूमता है भारत का यह गांव

जेएनएन, समराला। बंटवारे के दौरान हुए कत्लेआम को याद कर पाकिस्तान के अब्दुल अजीज की आंखें भर आती हैं। वो मंजर इतना खौफनाक था कि बुढ़ापे में भी नमी से तर उनकी आंखें इसकी गवाही देती हैैं। अपनों को और अपनी जमीन को खोने का दर्द... अब्दुल अजीज को अंदर ही अंदर खा रहा है।

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बंटवारे के दौरान समराला के गांव सिहाला से पाकिस्तान गए अब्दुल अजीज की बूढ़ी आंखों के सामने रह रह कर वो मंजर घूमता है जब बंटवारे ने उनका सब कुछ छीन लिया था, लेकिन अजीज यह बताना भी नहीं भूलते कि अगर गांव सिहाला के नंबरदार मंगल सिंह ने उस समय 20 मुस्लिम परिवारों को न बचाया होता तो वे आज पाकिस्तान की धरती पर जिंदा न होते।

पाकिस्तान में एक चैनल को दिए साक्षात्कार की ये वीडियो पश्चिम पंजाब (पाकिस्तान) से सोशल मीडिया पर इतनी शेयर हुई कि पूरबी पंजाब (भारत) में उनके पुश्तैनी गांव सिहाला तक पहुंच गई। हालांकि उस समय उन्हें बचाने वाले नंबरदार मंगल सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैैं, लेकिन उनकी बहादुरी के लिए उन्हें सरहद पार आज भी याद किया जा रहा है।

अजीज कहते हैैं कि भारत पाक बंटवारे के समय वे 10 साल के थे और गांव सिहाला के स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ते थे। बंटवारे को लेकर नफरत की आग ऐसे बढ़ी कि कई परिवारों को लील गई। वह गांव सिहाला से अपनी जमीन, पशु और सामान छोड़कर बिना चप्पल पहने ही घर से निकल गए। नंबरदार मंगल सिंह उनके परिवारों के पास आए और कहा कि गांव में बाहर से आए दहशतगर्दों का हजूम उन्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा। इसलिए वह रात को उनके घर मे पनाह ले लें।

अजीज कहते हैैं कि नंबरदार मंगल सिंह ने दहशतगर्दों से भी कह दिया था कि 'हमने इन परिवारों के साथ अपना नमक साझा किया है, इन परिवारों को कत्ल नहीं होने देंगे। यहां से इन्हें सुरक्षित निकल जाने दो आगे जो होगा वह भगवान की मर्जी होगी।'

एक बार गांव सिहाला देखने ही इच्छा

उन्होंने कहा कि वह गांव सिहाला में अपनी 8 किले जमीन, पशु और सामान छोड़कर आए थे। अगर भारत सरकार उन्हें मौका दे तो वह अपने गांव जरूर जाएंगे। अपने मकान की पहचान उन्हें आज भी याद है। फिर कहते हैं कि दोनों मुल्कों के लोग हमेशा खुश रहें और फिर कभी किसी देश का बंटवारा न हो।

मंगल सिंह की हो चुकी है मौत

उधर, गांव सिहाला के नंबरदार मंगल सिंह का देहांत हो चुका है। उनके बेटे निरंजन सिंह (94) ने कहा कि अगर उनके पिता दहशतगर्दों को न रोकते तो उस दिन वह 20 परिवार खत्म कर दिए जाते। उन्हें अपने पिता पर गर्व है।

आसान नहीं थी पूरब से पश्चिम की राह 

अजीज बताते हैैं कि उस रात वह गांव टोडरपुर से होते हुए गांव कोटाला पहुंचे तो वहां का एक हिंदू परिवार भी रात को ही घर को ताले लगाकर कहीं चला गया था। क्योंकि कोटाला में मुसलमान परिवार बहुत रहते थे। कोटाला में उनका सामना फिर कुछ दहशतगर्दों से हुआ, लेकिन ऐन मौके पर सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें बचा लिया। रात को ही परिवारों के साथ सरहिंद नहर पार करके दूसरे पार जा पहुंचे जहां हजारों मुसलमान परिवारों ने डेरा लगा रखा था। वहां 5 दिन रूकने के बाद वह लुधियाना में लगाए एक कैंप में पहुंचे। जहां पर 3 महीने रुकने के बाद पहले तो पाकिस्तान के गांव राय और उसके बाद लाहौर आ गए। उसके बाद गांव रहीमा खान मौजा राम में आकर रहने लगे जहां पाकिस्तान सरकार ने उन्हें 4 एकड़ जमीन ऐलान कर दी।

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