समय से पहले व भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता : अरुण मुनि
संघशास्ता श्री सुदर्शन लाल म. के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव अरुण मुनि ठाणा-6 एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस सुखसाता विराजमान है।
संस, लुधियाना : संघशास्ता श्री सुदर्शन लाल म. के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव अरुण मुनि ठाणा-6 एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस सुखसाता विराजमान है। आयोजित प्रार्थना सभा में अरुण मुनि ने कहा कि जिस घर में दया दान होता है, उस घर में लक्ष्मी स्थिर हो जाती है।
उन्होंने कहाकि दान से तो घर की शुद्धि होती है। अन्याय की कमाई न हो और आप दूध पियो पर खून नहीं। अन्याय का पैसा हमेशा ऐब लेकर आता है। पैसा या तो बीमारी में चला जाता है या कोर्ट कचहरी में। समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। इसलिए बिना निराशा व हताशा के पुरुषार्थ करते रहो। पर आज उधार की जिदगी ने सभी कुछ बेइमान बना दिया है। कल तक जिदगी मौन से चलती थी, आज लोन में चल रही है। माल पर ले आओ और किश्तें चुकाते रहो। पूछो अब सुख भोग रहे हो? बोले नहीं तो? किस्तें चुका रहा हूं और किश्तें चुकाते एक दिन आदमी खुद चला जाता है। गुरुदेव ने बताया कि भाग्य कैसे चमकता है। पुण्य के बीज बोते रहो, नीयत ऊंची रखो, इज्जत के साथी बनो, गिरते का सहारा बनो।
उन्होंने आगे कहा कि सफल व्यापारी कौन होता है, परिश्रम करने वाला, व्यापारी हो। अपने जीवन में प्रामाणिकता हो। धन दौलत का गुमान न हो। थोड़ा धैर्य हो। मीठा बोलने वाला हो। हिसाब का पक्का हो।
आत्मा में भी परमात्मा तत्व विद्यमान : महासाध्वी मीना म.
लुधियाना : उप-प्रवर्तिनी महासाध्वी गुरुणी महासाध्वी मीना म., सेवाभावी कर्मठ महासाध्वी श्री मुक्त महाराज, प्रवचन प्रभाविका मधुर गायिका महासाध्वी श्री समृद्धि महाराज, नवदीक्षित साध्वी उत्कर्ष म. रिद्धि ठाणा-4 के सानिध्य में प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया।
महासाध्वी मीना ने कहा जैसे सूर्य के ऊपर बादल छा जाने से उसका प्रकाश मंद पड़ जाता है, या ढक जाता है। इसी प्रकार आत्मा के ऊपर कर्मो के बादल आच्छादित होने पर आत्मा के ज्ञानमय स्वभाव है। वह भी कर्म बादलों से ढक जाता है जिससे आत्मा मूढ़ या विवेक शून्य हो जाता है। जैसे तेज हवा चलने पर बादल उड़ जाते हैं। बिखर जाते हैं, उसी प्रकार सुंदर और शुद्ध भावों के माध्य से आत्मा में लगे कर्म बादलों को जैसे ही दूर करेंगे तो आत्मा पुन: शुद्ध और पवित्र रूप को धारण करने वाली बन जाती है। तत्व चितक श्री उत्तम मुनि म. ने कहा कि जैसे बीज में वृक्ष रूप अस्तित्व में विद्यमान है। आत्मा में भी परमात्मा तत्व विद्यमान है। जरुरी है ,उसे जानने पहचानने की। आत्मा अनादि काल से मोह माया में फंस कर मात्र दूसरे को पहचाना है। जड़ पदार्थ और पांच इन्द्रियों के विषय को जाना है। पर खुद को नहीं। महापुरुषों की वाणी खुद जानने की शिक्षा देती है। जो खुद को जानता है, वह एक दिन खुदा बन जाता है।