लो हाे गया इस बड़ी समस्या का समाधान, आम के आम और गुठलियां नहीं करेंगी परेशान
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की ऐसी किस्में तैयार की हैं जिनसे उपज ज्यादा मिलेगी और पराली बेहद कम होगा। यानि आम के आम व गुठलियां नहीं करेंगी परेशान।
लुधियाना, [आशा मेहता]। अब धान की फसल हर करेगी पराली की समस्या का समाधान। किसान धान की नई किस्मों को अपनाकर पराली की समस्या का समाधान आसानी से पा सकते हैं। इन किस्मों को ईजाद किया है पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने। पंजाब में पराली का समाधान ढूंढने को लेकर हर स्तर पर कोशिशें हो रही हैं। पीयूए ने धान की एेसी नई किस्में ईजाद की हैं जिनसे ऊपज अधिक प्राप्त होगी और पराली बहुत कम होगी।
धान की नई किस्में करेंगी पराली का निदान, पीआर किस्में जल्दी पककर होती हैं तैयार व पराली भी कम
पीएयू पराली के प्रबंधन को लेकर अलग-अलग तरह के प्रयास कर रहा है। वह पराली को खेतों में खपाने को लेकर आधुनिक मशीनरी बनाने पर जोर दे रही है, वहीं धान की ऐसी किस्में भी ईजाद कर रही है, जो अधिक उत्पादन के साथ पराली कम पैदा करें। विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इन किस्मों का जहां हारवेस्ट इंडेक्स अधिक है, वहीं पराली की मात्रा कम है। इससे पराली संभालना आसान हो जाता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पीआर किस्मों में परमल धान का कद दूसरी ट्रेडिशनल किस्मों की तुलना में कम है। माहिरों के अनुसार पीआर धान की कई किस्मों का कद औसतन 95 से 100 सेंटीमीटर के बीच है। नहीं पूसा 44 वैरायटी के धान की हाइट करीब 122 सेंटीमीटर के है। कद कम होने से पराली ज्यादा नहीं बनती।
वहीं, दूसरी तरफ पीएयू के डायरेक्टर (एक्सटेंशन) डॉ. जसकरण सिंह माहल के अनुसार पीआर किस्में कम समय में पक कर तैयार हो जाती हैं, जिससे किसानों को पराली प्रबंधन के लिए अधिक समय मिलता है। यह सितंबर के मध्य में पककर तैयार हो जाती है। सितंबर के अंत तक कटाई की जा सकती है।
डॉ. जसकरण सिंह माहल के अनुसार धान की यह किस्में लगाने पर खेत अक्टूबर के पहले सप्ताह में खाली हो जाते हैं। पीआर 123 व 122 की कटाई अक्टूबर के दूसरे हफ्ते की शुरुआत में की जा सकती है। इसके बाद किसान पराली प्रबंधन के तहत कंबाइन के साथ धान की फसल की कटाई करवाने के बाद बची हुई पराली एमबी प्लो (उलटावे वाला हल), चौपर व अन्य मशीनों की मदद से जमीन में मिलाकर कुछ दिनों में आम ड्रिल के साथ गेहूं की बिजाई कर सकते हैं। इससे गेहूं के झाड़ पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, धान की पराली को नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाशियम खाद के साथ मिट्टी में मिलाने से सिर्फ झाड़ ही नहीं बढ़ता, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधरती है। सूबे में अधिक समय लेने वाली गेहूं की बिजाई 25 अक्टूबर से शुरू हो जाती है और दस नवंबर तक चलती है।
गेहूं की उन्नत पीबी डब्ल्यू 550 व पीबी डल्ब्यू 550 किस्म की बिजाई नवंबर के दूसरे हफ्ते में शुरू की जाती है क्योंकि यह कम समय में पकने वाली किस्में हैं। ऐसे में हम किसानों को जागरूक कर रहे हैं कि वह पीएयू की परमल धान की नई पीआर किस्में लगाएं। इससे की उनके खेत अक्टूबर के पहले हफ्ते के आसपास खाली हो जाएंगे, तो उन्हें गेहूं की बिजाई के लिए 15 नवंबर तक का बहुत वक्त मिल जाएगा।
दूसरी तरफ धान की पूसा 44 पनीरी सहित पकने में करीब 160 दिन और पीआर 118 किस्म 158 दिन लेती हैं। इन दोनों किस्मों की धान की फसल की कटाई अक्टूबर में शुरू होती है। माह के अंत तक चलती है। किसानों को पता है कि यह वैरायटी अधिक समय लेती हैं, लेकिन वह इसे इसलिए लगाते हैं, क्योंकि इससे दूसरी किस्म की तुलना में चार से पांच क्विंटल अधिक झाड़ प्राप्त होता है।
बीमारियों से लड़ने में सक्षम हैं धान की ये किस्में
डॉ. जसकरण माहल के अनुसार पीआर वैरायटियां जहां जल्दी पकती हैं, वहीं यह बीमारियों से लड़ने में भी समक्ष हैं। यह किस्में झुलस रोग के जीवाणु की जातियों का मुकाबला करने की शक्ति रखती हैं, जबकि पंजाब में लगाई जाने वाली धान की पारंपरिक किस्में उक्त बीमारियों से लड़ने में सक्षम नहीं हैं। डॉ. माहल कहते हैं कि पीएयू का फोकस अधिक पैदावार के साथ जल्दी पकने, उच्च क्वालिटी के साथ कम पराल वाली धान की किस्मों को तैयार करने पर है।
पानी की भी बचत
पीआर किस्में कम समय में पक जाती हैं। इससे फसल की मैच्योरिटी के दिन कम हो जाते हैं। जल्दी पकने की वजह से फसल की सिंचाई कम हो जाती है। इससे पानी की बचत होती है, जबकि पारंपरिक किस्में लेट पकने की वजह से अधिक सिंचाई मांगती है।
किसान मेलों, कैंपों से किया जा रहा जागरूक
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से किसानों को किसान मेलों व गांवों में जागरूकता कैंप लगाकर परमल धान की नई किस्मों को लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि परमल धान की कम समय में पकने वाली नई किस्मों के अंतर्गत रकबे में उत्साहजनक वृद्धि हुई है।
वर्ष 2012 के दौरान पकने में अधिक समय लेने वाली पूसा 44 के अंतर्गत 50 फीसदी रकबा और पीआर किस्मों के अंतर्गत 30 फीसद रकबा था, जबकि वर्ष 2016 के बाद पीआर किस्मों का रकबा बढ़कर 62 फीसदी तक पहुंच गया हैं और पूसा 44 का रकबा घटकर 30 फीसदी रह गया है।
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ये कहते हैं किसान
'' मैंने पांच एकड़ में धान की पीआर 126 किस्म लगाई थी। एक हफ्ता पहले धान की कटाई करके मंडी में बेच दिया। बची पराली को मल्चर, पलटावे हल, तवे और हल चलाकर खेत में ही मिला दिया। अब आलू की बिजाई करने जा रहे हैं। पीआर 126 किस्म बहुत बढिय़ा है। इससे उनके खेत जल्दी खाली हो गए। अगर उन्होंने धान की पुरानी वैरायटी लगाई होती तो वह अक्टूबर के दूसरे सप्ताह के बाद धान की फसल खेत में ही होती।
- अवतार सिंह संधू, गांव कादिया, गुरदासपुर।
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'' मैंने ढाई एकड़ में पीएयू की परमल धान की पीआर 126 किस्म लगाई थी। यह सितंबर के अंत तक पक जाती है, लेकिन इस बार सितंबर में बारिश होने की वजह से कटाई थोड़ी लेट हो गई, लेकिन अक्टूबर के पहले हफ्ते में फसल की कटाई कर ली है। अब मंडी में ले जाने की तैयारी है। रेट सही न मिलने की वजह से फसल पर घर है। धान की कटाई के बाद जो पराली बची थी, उसे मशीनों के जरिए खेत में ही मिला दिया। अब वह पशुओं के लिए हरा चारा बीजेंगे।
- गुरइकबाल सिंह, गांव घोतपोखर, गुरदासपुर।
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और भी है उपाय...
पराली से मशरूम उत्पादन
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से गेहूं की तूड़ी के साथ पराली को मिलाकर मशरूम उत्पादन की तकनीक भी विकसित की गई है। यूनिवर्सिटी की ओर से पराली की मदद से सर्दियों में बटन मशरूम व ढींगरी मशरूम के उत्पादन और गर्मियों में पराली मशरूम के उत्पादन की सिफारिश की गई है। सरकार भी इसे सहायक धंधे के तौर पर अपनाने के लिए जोर दे रही है क्योंकि इसका मंडीकरण काफी आसान है। मशरूम उत्पादन के बाद बची हुई पराली को खाद के तौर पर खेतों में इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है।
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कम पराली व कम समय में पकने वाली किस्में
किस्म -पकने का समय
-पीआर 121 -140 दिन
-पीआर 122 -143 दिन
-पीआर 123 -138 दिन
-पीआर 124 -136 दिन
-पीआर 126 -123 दिन
-पीआर 127 -137 दिन
-95 से 100 सेंटीमीटर के बीच होता है पीआर धान की किस्मों का औसत कद
-122 सेंटीमीटर तक औसत कद है पूसा 44 किस्म के धान का
-25 अक्टूबर से शुरू हो जाती है गेहूं की औसतन बिजाई व दस नवंबर तक चलती है
-2016 के बाद पीआर किस्मों का रकबा 62 फीसद तक पहुंचा
-30 फीसद रह गया है पूसा 44 का रकबा
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उत्पादन भी बेहतर
किस्म और औसतन उपज प्रति एकड़
पीआर 121 -30.5 क्विंटल
पीआर 122 -31.5 क्विंटल
पीआर 129 -30.0 क्विंटल
पीआर 124 -30.5 क्विंटल
पीआर 127 -30.0 क्विंटल
(पीएयू के विशेषज्ञ डॉ. जसकरण माहल के अनुसार)