चलते रहने में ही जीवन की सफलता: मुनि पीयूष
सिविल लाइंस जैन स्थानक उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि म. ने दैनिक प्रवचन सभा में कहा कि प्रगति करना मानव की स्वाभाविक प्रकृति है। चलते रहना जीवन की प्रकृति और रुक जाना उसकी विकृति है। संसार के तत्वदर्शी विचारकों ने सदा यही उपदेश दिया है कि चलते रहो।
संस, लुधियाना : सिविल लाइंस जैन स्थानक उप-प्रवर्तक श्री पीयूष मुनि म. ने दैनिक प्रवचन सभा में कहा कि प्रगति करना मानव की स्वाभाविक प्रकृति है। चलते रहना जीवन की प्रकृति और रुक जाना उसकी विकृति है। संसार के तत्वदर्शी विचारकों ने सदा यही उपदेश दिया है कि चलते रहो। परिश्रम से थके बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। दिन-रात चलता रहता है, जो बैठता है, उसकी किस्मत भी बैठ जाती है तथा कदम बढ़ाने वाले के साथ भाग्य भी चल पड़ता है।
भाग्य से उत्थान मानव के अपने उत्थान पर ही निर्भर है। जो व्यक्ति प्रमाद वश प्रगति करने से रुक जाता है, उसका समय व्यर्थ जाता है। समय नष्ट करना मूर्खो का लक्षण है। बुद्धिमानों का समय स्वाध्याय तथा सत्संग में गुजरता है। जबकि मूर्खो का वक्त निद्रा, बुरी आदतों या कलह क्लेश में व्यतीत होता है। किसी दूसरे की शरण में न जाकर अपनी आत्मा का ही आश्रय लो, सत्य को दीपक की तरह पकड़े रहो और बिना रुके आगे बढ़ते जाओ। मुनि श्री ने कहा कि महापुरुषों के उपदेशों तथा चरित्र से प्रमाणित होता है कि चलते रहने में ही जीवन की सफलता है। चलते रहने से जीवन का मार्ग सुगम हो जाता है। प्रतिकूल हालात भी अनुकूल हो जाते हैं तथा लक्ष्य प्राप्त हो जाता है।
मुनि श्री ने कहा कि इस अस्थिर तथा परिवर्तन शील संसार में मनुष्य एक निश्चित समय के लिए जाता है और चला जाता है। इस विश्व में वह अपनी इच्छानुसार ठहर नहीं सकता। जीवन एक ऐसी यात्रा है जिसे प्रत्येक प्राणी इच्छा न होने पर भी करने को मजबूर होता है।