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लुधियाना में अनूठे 'सीटी अभियान ' से छेड़खानी पर लगाम लगाने की कोशिश

मोना सिंह की मुहिम को पूर्व डीसीपी निलांबरी जगदले ने साथ दिया और आगे बढ़ाया।

By Krishan KumarEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 11:37 AM (IST)

आईनिफ्ड फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाली मोना लाल साल 2012 में पूरे देश के लोगों की तरह टीवी देखते हुए दिल्ली में हुए निर्भया कांड की निंदा कर रही थीं। वह इस घिनौनी करतूत से आहत थीं। इसके बाद उन्होंने लुधियाना में एक अनोखी पहल की। ये थी महिलाओं को सीटी देने की। उन्होंने सराभा नगर मार्केट में महिलाओं को जागरूक करने के लिए उन्हें इकट्ठा किया। जहां उन्हें एक-एक सीटी दी।

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उन्होंने कहा कि आप कहीं भी हो, कोई उन्हें मानसिक या शारीरिक तौर पर परेशान कर रहा है तो एकदम से सीटी बजाएं। इससे ये होगा कि उनके आसपास के लोग सावधान हो जाएंगे और मदद के लिए कई लोग आगे आएंगे। इसी मुहिम को जारी रखते हुए उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट में छात्राओं को भी सीटियां बांटी। मुहिम में पूर्व डीसीपी निलांबरी जगदले ने भी उनका साथ दिया और उन्होंने इस मुहिम को आगे बढ़ाया।

आठ परिवारों को किया अडॉप्ट
मोना हमेशा से ही लोगों के लिए काम करती आई हैं। एक वाकया तब का है, जब उनके घर पर एक महिला काम करने के लिए आती थी। एक दिन उसकी बेटी उसके साथ आई तो उन्होंने उससे पूछा कि ये स्कूल क्यों नहीं जाती? तो काम वाली ने बताया कि वो क्या उनकी बस्ती के आठ परिवारों के बच्चे स्कूल नहीं जाते।

जिसके बाद वो एसबीएस नगर उक्त लोगों की बस्ती में गई। इन परिवारों के 16 बच्चे थे, जिसमें से 10 लड़कियां थी और 6 लड़के। उन्होंने इन सभी परिवारों को अडॉप्ट किया और बच्चों की पढ़ाई के लिए वो डीईओ (डिस्ट्रिक एजुकेशन आफिसर) से मिलीं। जिनसे उन्होंने बच्चों की एडमिशन सरकारी स्कूल में करवाने के लिए कहा। लेकिन कोई हल नहीं हो पाया।

इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और वो माडल टाउन स्थित सरकारी स्कूल के प्रिंसिपल से मिलीं। प्रिंसिपल ने उनकी बात को समझा और बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिया। इसके बाद अब सामने एक और परेशानी खड़ी थी, कि लड़के-लड़कियों को स्कूल कैसे भेजा जाए? उनके पास काम की तलाश में आए एक शख्स से उन्होंने पूछा कि क्या वह वो आटो चलाएगा?

तो जवाब मिला कि हां, मैं चलाउंगा। उन्होंने उसे एक आटो खरीदकर दे दिया और बच्चों को स्कूल से लाने और ले जाने का का जिम्मा उसे दे दिया। इस बीच वह दिन में सवारियां लाने और ले जाने का भी काम करने लगा। कुछ बच्चे तो आटो में आ गए, लेकिन जो बच गए, उन्हें साइकिल लेकर दी, जिससे वो स्कूल जाने लगे।

परिवारों का करवाया इलाज
वो आठ परिवार अब अपने परिवार के सदस्यों की तरह लगने लगे थे। उनकी हर दुख-तकलीफ को वो खुद झेलने लगी थी। कुछ साल पहले उन्हें पता चला कि एक बच्चे की आंख खराब हो गई है, जिसकी वजह से उसकी दूसरी आंख भी खराब होने के कगार पर है। वह उसे एसपीएस अस्पताल में लेकर गई, जहां उसका इलाज करवाया। अब वो बच्चा बिल्कुल ठीक है। इसके अलावा वहां रहने वाले उक्त बच्चों के माता-पिता का भी उन्होंने अपने खर्च से इलाज करवाया।

छात्राओं की शुरू की काउंसलिंग
इन सबके बाद उन्होंने अपने इंस्टीट्यूट में छात्राओं की काउंसलिंग शुरू की। वो रोज छात्राओं को सुरक्षित रहने के गुर सिखाती हैं। इसके अलावा 6 महीने में एक बार दिल्ली से काउंसलर आकर छात्राओं की काउंसलिंग करते है। जिसमें छात्राओं को आने वाली परेशानियों को लेकर विचार-विमर्श करके उनकी परेशानियों को हल किया जाता है।

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