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सुख दुख सापेक्ष हैं: अचल मुनि

एसएस जैन स्थानक शिवपुरी सभा के तत्वाधान में चल रही चातुर्मास सभा में गुरुदेव अचल मुनि महाराज ने कहा कि संसार का प्रत्येक प्राणी सुखी बनना चाहता है। इसी भावना के कारण रात दिन भाग रहा है। अनंतकाल हो गया। भागते हुए परंतु अभी तक सुखी नहीं बन पाया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 07:13 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jul 2021 07:13 PM (IST)
सुख दुख सापेक्ष हैं: अचल मुनि
सुख दुख सापेक्ष हैं: अचल मुनि

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक शिवपुरी सभा के तत्वाधान में चल रही चातुर्मास सभा में गुरुदेव अचल मुनि महाराज ने कहा कि संसार का प्रत्येक प्राणी सुखी बनना चाहता है। इसी भावना के कारण रात दिन भाग रहा है। अनंतकाल हो गया। भागते हुए परंतु अभी तक सुखी नहीं बन पाया। सुख-दुख सापेक्ष हैं। अगर दुनिया में देखा जाए तो कोई राजा होकर परेशान रहता है तो कोई झोपड़ी में रहकर भी सुखी होता है। कोई त्यागने में सुखी, तो कोई मान सम्मान पाकर सुखी रहता है। कितु असली सुख क्या भोग में है अथवा त्याग में। भोग का अर्थ है विषय या काम भोग में अलिप्त हो जाना। कितु काम भोगरुप सुख तो क्षणिक है, वे लंबे समय तक दुख देने वाले होते है। काम भोग मुक्ति का विरोधी तथा अनर्थों की खान है।

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भरत मुनि ने कहा कि संसार के विषयों में सुख नहीं है। भौतिक सुख, सुख नहीं, बल्कि दुख का अभाव मात्र है। उसी को ही हम सुख समझ बैठते है। शाश्वत सुख तो मोक्ष है। अत: भोग तो क्षणिक सुख देकर दुख को बढाता है। उसी प्रकार जैसे किसी व्यक्ति को खुजली हो जाए, तो वह खुजली को मिटाने में तात्कालिक सुख का अनुभव करता है, कितु खुजली के अंत में दुख का अनुभव करता है। इसलिए भोग नहीं, अपितु त्याग शाश्वत सुख का कारण है। वहीं वास्तव में सुखी है।


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