जो जैसी सोच रखेगा, उसे वैसा ही दिखाई देगा: साध्वी रत्न संचिता
धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कषाय आत्म गुणों को केंद्रित कर देते है। क्रोध मान माया इन दुष्प्रवृतियों को कषाय कहा जाता है। जैसे स्वच्छ पानी में कीचड़ डाल देने पर जिस तरह से पानी गंदा हो जाता है।
संस, लुधियाना : तपचंद्रिका श्रमणी गौरव महासाध्वी वीणा महाराज, नवकार आराधिका महासाध्वी सुनैया म., प्रवचन भास्कर कोकिला कंठी साध्वी रत्न संचिता महाराज, विद्याभिलाषी अरणवी म., नवदीक्षिता साध्वी अर्शिया, नवदीक्षिता आर्यनंद ठाणा-6 एस एस जैन स्थानक रुपा मिस्त्री गली में सुखसाता विराजमान है। इस दौरान चल रही धर्म सभा में साध्वी रत्न संचिता ने कहा कषाय आत्म गुणों को केंद्रित कर देते है। क्रोध, मान, माया इन दुष्प्रवृतियों को कषाय कहा जाता है। जैसे स्वच्छ पानी में कीचड़ डाल देने पर जिस तरह से पानी गंदा हो जाता है। उसी प्रकार क्रोध, मान, माया और लोभ के सेवन से आत्मा के क्षमा-संतोष, दया और परोपकार जैसे महान सदगुण भी दृषित और मलिन हो जाते है। उन्होंने ने कहा कि क्रोध से प्रीति का नाश हो जाता है। जैसे हमारे दिल में किसी के प्रति प्रेम और स्नेह के भाव है। पर यदि व्यक्ति उस पुराने मित्र से क्रोध करता है। तो उसका वर्षों का प्रेम खत्म हो जाता है। जिस प्रकार से मन भर दूध में दो चार बूंदे खटाई डालने पर पूरा दूध फट जाता है, बेकार सारहीन हो जाता है। बुराई या कषाय को प्रवृति आत्मिक गुणों को दूषित और मलिन कर देते है। इस दौरान महासाध्वी वीणा महाराज ने अपने संदेश में कहा कि इंसान की दृष्टि दो प्रकार की होती है। गुण ग्राटी और दोष दृष्टि। जिसकी सोच अच्छी हो, ऐसा व्यक्ति हर जगह से हर व्यक्ति से अच्छाई को ही ग्रहण लेता है। जिसकी सोच गलत हो ऐसा व्यक्ति अच्छाईयों में भी बुराईयों को ढूंढने वाला बन जाता है। धर्मराज को सभी लोगों में अच्छाई ही नजर आई तो दुर्योधन को हर लोगों में बुराई ही बुराई नजर आई। जिसके आंखों में जैसा चश्मा चढ़ा हुआ होगा, उसे वैसा ही दृश्य दिखाई देगा।