अहंकार जीवन को कठोर बना देता है : रचित मुनि
एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि अहंकार जीवन को कठोर बना देता है और कठोरता स्वयं के बिखराव का दूसरा नाम है। अहंकार एक साधक की साधना में रुकावट पैदा कर देता है। आपने सुना होगा कि बाहुबली प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती के युद्ध के बाद उन्होंने दीक्षा अंगीकार की मुनि बन गए जंगल में साधना के लिए निकल पड़े साधना में कोई कमी नहीं है लेकिन लघु भ्राताओ को भी वंदन करना पड़ेगा।
संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक जनता नगर में विराजित श्री जितेंद्र मुनि जी म. के सानिध्य में मधुर वक्ता श्री रचित मुनि ने कहा कि अहंकार जीवन को कठोर बना देता है और कठोरता स्वयं के बिखराव का दूसरा नाम है। अहंकार एक साधक की साधना में रुकावट पैदा कर देता है। आपने सुना होगा कि बाहुबली प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र थे। अपने बड़े भाई भरत चक्रवर्ती के युद्ध के बाद उन्होंने दीक्षा अंगीकार की मुनि बन गए, जंगल में साधना के लिए निकल पड़े साधना में कोई कमी नहीं है, लेकिन लघु भ्राताओ को भी वंदन करना पड़ेगा। इस तुच्छ अहम को अंतर में जागृत रखे रखा, साधना करते करते एक वर्ष बीत गया, लेकिन केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाई बाहुबली के शरीर पर बेल छा गई चारों और दीमक ने मिट्टी जमा दी पक्षियों ने कानों में घोसले बना लिए। फिर भी बाहुबली वैसे ही ध्यानावस्था में खड़े रहे प्रभु ने अपने ज्ञान में देखा बाहुबली ये क्या इतनी कठोर साधना फिर भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पा रहे।
भगवान ऋषभदेव ब्राह्मणी और सुंदरी दोनों साध्वियों को बाहुबली के पास भेजते है, साध्वियों ने आकर कहा कि भाई गज चढ़े केवल ना होए यानि अभिमान के हाथी से नीचे उतरो। इस तरह दो तीन बार संबोधन किया शब्द टकराए कानों से, चितन चला, बाहुबली सोचने लगे मेरे पास हाथी कहां है। फिर ये मेरी बहने जो साध्वी हो गई है ये साध्वी झूठ भी नहीं बोल सकती। खूब विचार कर सोचा चितन बड़ा तो ज्ञात हुआ, भान हुआ कि मैं मान रूपी हाथी पर आरूढ़ हूं। विवेकी को मान नहीं करना चाहिए, सदभावना पूर्वक चितन करते हुए अभिमान रहित होकर भाइयों को वंदन करने के लिए चरण ज्योहीं आगे बढ़ाएं कि सहसा केवल ज्ञान प्रकट हो गया । अहंकार को अंधा बतलाया है, रावण की कहानी उसके अहंकार की कहानी है रावण की पूरी लंका तबाह हो रही थी । लेकिन रावण को लंका अपना खानदान का तबाह होना दिखाई नहीं दे रहा था। इतिहास गवाह है अहंकारी व्यक्ति का अंत अत्यंत दुख और भविष्य अंधकार में हो जाया करता है।