अज्ञान व मोह के अंधकार को दूर करने का प्रयास है चातुर्मास
जैन समुदाय का पर्व चातुर्मास 23 जुलाई यानी आज से प्रारंभ हो रहा है। इन चार महीनों में धर्म श्रवण करने से अज्ञान ओर मोह का अंधकार दूर हो जाता है। प्राणी को संसार के वास्तविक स्वरूप देखने में देर नहीं लगती वह जान लेता है।
कृष्ण गोपाल, लुधियाना : जैन समुदाय का पर्व चातुर्मास 23 जुलाई यानी आज से प्रारंभ हो रहा है। इन चार महीनों में धर्म श्रवण करने से अज्ञान ओर मोह का अंधकार दूर हो जाता है। प्राणी को संसार के वास्तविक स्वरूप देखने में देर नहीं लगती, वह जान लेता है। इस संसार के जितने भी संबंध है। सब झूठे संबंध है। जहां का धन वैभव सब झूठा है। संसार के भौतिक सुख जलती उस चमक के समान है। जो पल झपकते ही नष्ट होने वाले है। इन सभी बातों का ज्ञान चातुर्मास के अंदर ही निहित रहा है। जो हमें साधु-साध्वीवृंद की वाणी से मिलता है। इनके अनुसरण से सदसंगति ज्ञान का वह द्वार है। जिसमें व्यक्ति उस सच्चाई को जान लेता है। जो परम लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक बनती है। आओ इस चातुर्मास की बेला के रंग में रंगे, व दूसरों को भी प्रेरित करते। इस पर जैन समुदाय ने भी अपने विचार रखे है... 24वें तीर्थकारों का सुमेल है चातुर्मास
जवाहर लाल ओसवाल, संजीव जैन सीए, निति जैन नेवा गारमेंटस ने कहा कि चातुर्मास की चार माह की सभा में धर्म के साथ जोड़ना कर्मों के साथ मिलता है। महावीर भी जन्म के समय हमारी तरह मानव ही थे। भगवान तो वह उस समय बनें जब उन्होंने स्वयं को जीता। इस प्रकार हम देखते है, महावीर ने जो कुछ भी कहा, वह कोई नया तत्व नहीं था। वह तो सदा से है। सनातन है। उन्होंने कोई नया धर्म स्थापित नहीं किया। उन्होंने मात्र धर्म में खोई आस्था को ही स्थापित किया।
अहिंसा और ज्ञान से सरोकार है चातुर्मास.
सुनील जैन, कुशल जैन, नरेश जैन, रमेश जैन बरड़ ने कहा कि तप, त्याग के इस मेले में जहां से अहिसा और ज्ञान की बातें मिलें, उन्हें ग्रहण करना है, जिस कुएं का पानी मीठा होता है उसे सभी पीते है। जैन दर्शन पर विचार करने पर लगता है कि वह सारे विश्व के कल्याण के लिए विशेष योगदान दे सकता है। इसलिए किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं, बल्कि विश्व के कल्याण के लिए इस दर्शन का अध्ययन करना होगा।
धर्म की ओर अग्रसर करती है चातुर्मास की बेला
कमल चेतली, जसबीर जैन, रुपेश जैन रिद्धि सागर जैन ने कहा कि धर्म के सिवाय संसार में कोई भी मनुष्य का रक्षक नहीं है। आपकी वाणी ने लोक हृदय को अपूर्व दिव्यता प्रदान की । आपका समवशरण जहां भी गया, वह कल्याण धाम हो गया। चातुर्मास का उद्देश्य भी यही है। भगवान महावीर ने प्राणीमात्र की हितैषिता एवं उनके कल्याण की ²ष्टि से धर्म की व्याख्या की। आपने कहा ''धम्मो मंगल मुक्किट्ठं, अहिसा संजमा तवो'' ( धर्म उत्कृष्ट मंगल है। वह अहिसा, संयम तथा तप रूप है) एक धर्म ही रक्षा करने वाला है। इसलिए इस चार माह धर्म के बेला में रंग जाने का संकल्प ले।