इंसान अपने दुख से नहीं, दूसरों के सुख से दुखी : विनय कुमार आलोक
जीवन में बोए सब कर्मों के बीच। प्रमाद मत करो आलस और प्रमाद जीवन के शत्रु हैं शत्रु का दहन करना शत्रु पर नियंत्रण करना यह सबसे जरूरी है परंतु आंतरिक शक्तियों पर प्रयत्न सामान्यतया कम होता है और जिसने आंतरिक शक्तियों पर कंट्रोल करने का प्रयत्न किया। वहीं व्यक्ति विश्व विजेता बना। भगवान महावीर ने आंतरिक शक्तियों को जीतने पर बल दिया।
By Edited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 07:04 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 09:28 AM (IST)
संस, लुधियाना। जीवन में बोए, सब कर्मों के बीज। प्रमाद मत करो। आलस और प्रमाद जीवन के शत्रु हैं। शत्रु का दहन करना, शत्रु पर नियंत्रण करना, यह सबसे जरूरी है, परंतु आंतरिक शक्तियों पर प्रयत्न सामान्यतया कम होता है और जिसने आंतरिक शक्तियों पर कंट्रोल करने का प्रयत्न किया। वहीं व्यक्ति विश्व विजेता बना। भगवान महावीर ने आंतरिक शक्तियों को जीतने पर बल दिया। यह उक्त विचार मनीष संत मुनि श्री विनय कुमार आलोक ने आध्यात्मिक नवानिक अनुष्ठान के पांचवें दिन तेरापंथ भवन इकबाल गंज रोड में कहें। उन्होंने आगे कहा कि हमें दूसरों को हानि पहुंचाने में नहीं, बल्कि उनके के मार्ग में आशा के दीप जलाने का काम करना चाहिए। विरहा शास्त्रों के अनुसार कर्मों के फल निश्चित है। जो बोया गया वही वृक्ष बनेगा फूल व फल लगेंगे। अब अगर बीज को बीजा ही नहीं जाए, तो फल की आशा नहीं रखनी चहिए।
उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक प्रसिद्ध संत जब स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचे तो चित्रगुप्त ने उन्हें रोकते हुए कहा अंदर जाने से पहले लेखा-जोखा देखना पड़ता है। चित्रगुप्त की बात से नाराज संत ने कहा आप यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? बचपन से लेकर इस अवस्था तब, अब तक सभी मुझे जानते हैं। इस पर चित्रगुप्त बोले आपको कितने लोग जानते हैं, इसका लेखा-जोखा हमारे भाई खाते में नहीं होता। इसमें हमारे पास लेखा-जोखा केवल कर्मों का होता है। संत ने कहा कि पहले मैंने लोगों की सेवा की जबकि दूसरे हिस्से में मैंने जब तक ईश्वर की आराधना की। चित्रगुप्त ने उनके जीवन का दूसरा हिस्सा देखा। उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सब कुछ बुरा था। वह फिर से उनका लेखा-जोखा देखने लगे। संत जी बोले आपके अच्छे और पुण्य के कार्यों का लेखा जोखा जीवन के आरंभ में है। जीवन के पहले हिस्से में आपने मनुष्यों की पशुओं की पक्षियों की सेवा की और इसी कारण आपको स्वर्ग में स्थान मिला है जबकि ईश्वर की आराधना आपने अपनी शांति के लिए की। इसलिए वह पुण्य का कार्य है। संत चित्रगुप्त की बात समझ गए। उन्होंने संत को कहा कि जीवन में मनुष्य को हमेशा सत्कर्म करने चाहिए। अच्छे काम करोगे तो आगे भी अच्छी गति मिलेगी आज का इंसान अपने दुख से ज्यादा दुखी नहीं होता लेकिन सामने वाले के सुख से दुखी जरूर हो जाता है। हमें अपने कर्मों पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक प्रसिद्ध संत जब स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचे तो चित्रगुप्त ने उन्हें रोकते हुए कहा अंदर जाने से पहले लेखा-जोखा देखना पड़ता है। चित्रगुप्त की बात से नाराज संत ने कहा आप यह कैसा व्यवहार कर रहे हैं? बचपन से लेकर इस अवस्था तब, अब तक सभी मुझे जानते हैं। इस पर चित्रगुप्त बोले आपको कितने लोग जानते हैं, इसका लेखा-जोखा हमारे भाई खाते में नहीं होता। इसमें हमारे पास लेखा-जोखा केवल कर्मों का होता है। संत ने कहा कि पहले मैंने लोगों की सेवा की जबकि दूसरे हिस्से में मैंने जब तक ईश्वर की आराधना की। चित्रगुप्त ने उनके जीवन का दूसरा हिस्सा देखा। उन्हें कुछ भी नहीं मिला। सब कुछ बुरा था। वह फिर से उनका लेखा-जोखा देखने लगे। संत जी बोले आपके अच्छे और पुण्य के कार्यों का लेखा जोखा जीवन के आरंभ में है। जीवन के पहले हिस्से में आपने मनुष्यों की पशुओं की पक्षियों की सेवा की और इसी कारण आपको स्वर्ग में स्थान मिला है जबकि ईश्वर की आराधना आपने अपनी शांति के लिए की। इसलिए वह पुण्य का कार्य है। संत चित्रगुप्त की बात समझ गए। उन्होंने संत को कहा कि जीवन में मनुष्य को हमेशा सत्कर्म करने चाहिए। अच्छे काम करोगे तो आगे भी अच्छी गति मिलेगी आज का इंसान अपने दुख से ज्यादा दुखी नहीं होता लेकिन सामने वाले के सुख से दुखी जरूर हो जाता है। हमें अपने कर्मों पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए।
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