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प्रार्थना सभा में रमेशा मुनि ने कहा, सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते

एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में प्रार्थना सभा में रमेश मुनि ने कहा कि कभी कभी दूसरों का भला करना भी सीखो। अगर आप ऐसा करोगे तो यह आपके लिए भविष्य में फायदेमंद साबित जरूर होगा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 01:19 AM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 01:19 AM (IST)
प्रार्थना सभा में रमेशा मुनि ने कहा, सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते
प्रार्थना सभा में रमेशा मुनि ने कहा, सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते

संस, लुधियाना : एसएस जैन स्थानक 39 सेक्टर में प्रार्थना सभा में रमेश मुनि ने कहा कि कभी कभी दूसरों का भला करना भी सीखो। अगर आप ऐसा करोगे, तो यह आपके लिए भविष्य में फायदेमंद साबित जरूर होगा। लेना ही लेना लोभ है। लेना-देना मनुष्य धर्म है। देना ही देना संत का धर्म है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे केवल अपने लिए, बल्कि दूसरों का भला करके भी जीना है। दुनिया का नियम है जो लुटाओगे, वहीं लौटकर आएगा। जो ओरों को ठगता है वह एक दिन खुद भी ठगा जाता है। जो देता है, वहीं पाता है। जरा देकर तो देखो। मांगने पर देना अच्छा है, लेकिन जरूरत समझकर बिना मांगे देना और भी अच्छा है। जरूरत पाप नहीं है, इससे ज्यादा रखना पाप है। अरे, सत्य और ईमान व परोपकार का रास्ता स्वर्ग में जाकर खत्म होता है। दुभा‌र्ग्य है कि सत्यावदियों, ईमानदारों और परोपकारी लोगों का अकाल सा पड़ा गया है। क्योंकि, लोगों का विश्वास है कि अब ईमानदारी के दिन लद गए हैं। लेकिन, मेरा कहना है सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते। कीमती फर्नीचर हमेशा सीधी स्पाट लकड़ी का ही बनता है। दूसरी ओर, एसएस जैन स्थानक किचलू नगर में प्रार्थना सभा हुई। इसमें डा. राजेंद्र मुनि ने कहा कि दूसरों की भलाई करना अच्छा है, लेकिन अपनी बुराई ढूंढना और भी बेहतर है। सत्य बोलना अच्छा है पर दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए झूठ बोलना ज्यादा अच्छा है। कर्ज चुकाना अच्छा है, पर अच्छाई का आमंत्रण और भी ज्यादा अच्छा है। संयम में रहना सीखें। संयमित व मर्यादित जीवन ही शांति का मूल स्थान होता है। हम नियमों में तो रह सकते है पर संयम में नहीं। डा. सुरेंद्र मुनि ने कहा कि मानव सुख शांति पाने के लिए संतों की चरणों में जाता है। मंदिर में जाकर प्रभु के द्वार खटखटाता है, पर पवित्र स्थानों में भी दूसरों की बुराई और कमियां निकाल लेता है। दूसरों की छोटी-छोटी बुराइयां नजर आती है पर अपनी बड़ी गलती नहीं। वास्तव में यही दुख का कारण है। जब तक मुख में नमक रहेगा, मीठे का स्वाद नहीं आ पाता। इसी प्रकार जब तक मन में मोह माया, विषय विकार रूपी गंदगी रहेगी, तब तक भक्ति के रस का आनंद ले नहीं सकते।

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