Move to Jagran APP

लुधियाना के डाक्टरों का कमाल : 23 हफ्ते की प्रेगनेंसी में पैदा 430 ग्राम के बच्चे को दी नई जिंदगी

शिशु को चार दिन वेंटीलेटर 12 दिन सीपैप वेंटीलेटर और 65 दिन तक एनआइसीयू में अपनी निगरानी में रखकर इलाज किया। जब बच्चे के अंग विकसित हो गए और उसका वजन 1200 ग्राम हो गया तो उसे अपनी मां के साथ डिस्चार्ज कर दिया गया।

By Vipin KumarEdited By: Published: Sun, 01 Aug 2021 12:18 PM (IST)Updated: Sun, 01 Aug 2021 12:18 PM (IST)
23 हफ्ते की प्रेगनेंसी में पैदा बच्चा 1200 ग्राम का होने पर स्वस्थ नजर आते हुए। (जागरण)

लुधियाना, [आशा मेहता]। डाक्टरों को यूं ही धरती के भगवान का दर्जा नहीं दिया जाता। इसके पीछे उनकी मेहनत, लगन और समर्पण होता है। शहर के क्लियू मदर एंड चाइल्ड इंस्टीट्यूट के डाक्टरों ने भी ऐसा कमाल कर दिखाया है। डाक्टरों ने 23 हफ्ते पांच दिन की प्रेगनेंसी में पैदा हुए 430 ग्राम के शिशु को नई जिंदगी दी है। शिशु जब पैदा हुआ तो उसकी आंखें, फेफड़े और दिमाग पूरी तरह तैयार नहीं थे।

loksabha election banner

शिशु को चार दिन वेंटीलेटर, 12 दिन सीपैप वेंटीलेटर और 65 दिन तक एनआइसीयू में अपनी निगरानी में रखकर इलाज किया। जब बच्चे के अंग विकसित हो गए और उसका वजन 1200 ग्राम हो गया, तो उसे अपनी मां के साथ डिस्चार्ज कर दिया गया। इंस्टीट्यूट डाक्टरों ने इस बच्चे को वंडर बेबी नाम दिया है।

---

26 अप्रैल को हुई थी डिलीवरी, बेटे ने लिया जन्म

शिशु को उसकी मां सुमन को सौपते हुए डा. वीनस बंसल। (जागरण)

इंस्टीट्यूट की सीनियर गाइनाक्लोजिस्ट डा. वीनस बांसल का कहना है कि फिरोजपुर के जलालाबाद की रहने वाली 23 हफ्ते की गर्भवती सुनीता 26 अप्रैल को अस्पताल आई थी। उसे बहुत दर्द हो रहा था। जांच करने पर पाया कि गर्भ में दो शिशु हैं। एक की मौत हो चुकी है। इसके बाद अभिभावकों को बताया कि 23 हफ्ते के गर्भ के शिशु के जिंदा रहने की संभावना बहुत कम होती है। उन्होंने डाक्टरों को अपनी कोशिश करने की अनुमति दी। 30 अप्रैल को सामान्य डिलीवरी करवा कर पहले जीवित शिशु (बेटा) को बचाया फिर मृत शिशु को बाहर निकाला। शिशु रोग विशेषज्ञ डा. विकास बांसल की टीम ने शिशु को बचाने की जिम्मेदारी संभाली। इस टीम में आइसीयू स्पेशलिस्ट डा. महक बांसल, शिशुओं के ब्रेन स्पेशलिस्ट डा. गुरप्रीत कोचर, हिमेटोलाजिस्ट डा. प्रियंका गुप्ता शामिल थे। इन्होंने ढाई महीने तक बच्चे को संभाला और नई जिंदगी दी।

---

ऐसे बच्चों के बचने की संभावना 10 फीसद होती है

इंस्टीट्यूट के सीनियर कंसलटेंट पीडियाट्रिक्स डाक्टर विकास बंसल का कहना है कि 23 हफ्ते की प्रेगनेंसी में पैदा हुए शिशु को बचाने की संभावना दस प्रतिशत तक होती है। ऐसे शिशुओं में इम्यूनिटी नहीं होती है। स्किन बहुत पतली होती है। फेफड़े कमजोर होते हैं और दिल की नसें खुल जाती हैं और दिमाग विकसित नहीं हुआ होता है। इंटरनेशनल डेटा के अनुसार जो बच्चे 25 सप्ताह में पैदा होते हैं उनके बचने की संभावना 40 प्रतिशत होती है। पूरी टीम ने अपनी मेहनत और लग्न से शिशु को बचा लिया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.