स्वच्छता रैंकिंग 2019: लुधियाना की सुंदरता को कूड़े ने लगाया दाग, रैंकिंग में 26 स्थान फिसला
लुधियाना शहर पिछले साल की तुलना में 26 पायदान नीचे फिसल कर 163वें स्थान पर पहुंच गया है। यही नहीं लुधियाना सूबे में भी तीसरे स्थान से पांचवें स्थान पर खिसक गया है।
जेएनएन, लुधियाना। लुधियाना शहर स्मार्ट शहरों की कतार में शामिल तो है, लेकिन शहर की व्यवस्था अभी तक पुराने ढर्रे पर चल रही है। नगर निगम ने शहर में कूड़ा प्रबंधन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर को डवलप नहीं किया और आए दिन शहर से निकलने वाले कूड़े की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है। शहर में रोजाना 1200 टन कूड़ा निकल रहा है, लेकिन कूड़ा लिफ्टिंग नियमित तौर पर न होने से सड़कों पर जहां-तहां कूड़ा बिखरा होता है। यही कूड़ा अब शहर की स्वच्छता पर दाग बनता जा रहा है। कूड़ा प्रबंधन सही न होने की वजह से लुधियाना शहर तीन साल से लगातार स्वच्छ रैकिंग में पहले सौ शहरों में जगह नहीं बना पा रहा है।
केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की ओर से बुधवार को 425 शहरों की स्वच्छ रैंकिंग जारी की गई, जिसमें शहर पिछले साल की तुलना में 26 पायदान नीचे फिसल कर 163वें स्थान पर पहुंच गया है। यही नहीं लुधियाना सूबे में भी तीसरे स्थान से पांचवें स्थान पर खिसक गया है। पिछले साल लुधियाना देशभर में 137 वें स्थान पर था, जबकि उससे पहले लुधियाना की रैंकिंग 140 थी। पिछले साल रैंकिग में तीन पायदान का इजाफा हुआ था तो अफसरों ने दावा किया था कि 2019 की रैंकिंग में शहर पहले 100 शहरों में शामिल हो जाएगा, लेकिन नगर निगम कूड़ा प्रबंधन के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया। यहां तक कि इस बार के सर्वेक्षण में सबसे ज्यादा फोकस कूड़ा सेग्रीगेशन पर था। इसके बावजूद निगम इसे भी शुरू नहीं कर सका, जिसकी वजह से लुधियाना शहर की रैंकिंग पिछले साल की तुलना 26 अंक फिसल गई। स्वच्छ सर्वेक्षण में लुधियाना शहर 5 हजार में से सिर्फ 2523 अंक ही हासिल कर सका, जिससे नगर निगम अफसरों की कारगुजारी पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।
स्टेटिक कंपेक्टर न लगने से हुआ नुकसान
पिछले साल जब स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग में शहर तीन पायदान ऊपर आया था तो निगम अफसरों ने स्टेटिक कंपेक्टर लगाने का ऐलान किया था, ताकि कूड़ा शहर की सड़कों पर न दिखे। स्टेटिक कंपेक्टर लगाने की प्रक्रिया को शुरू किए एक साल से ज्यादा का समय हो गया, लेकिन अभी तक कंपेक्टर नहीं लगे और कूड़ा शहर की सड़कों पर ही बिखरा रहता है।
कूड़ा मुक्त व खुले में शौच मुक्त शहर में रेटिंग हासिल नहीं कर पाया शहर
शहर को खुले में शौचमुक्त घोषित किया जा चुका है। इसके बावजूद शहर को ओडीएफ में कोई भी रैंकिंग हासिल नहीं हो सकी, जिससे साफ है कि सर्वेक्षण टीम को नगर निगम की तरफ से बनाए गए टायलेट्स पर्याप्त नहीं दिखे। इसके अलावा कूड़ा मुक्त शहर में भी शहर को सिर्फ एक स्टार मिला है, जो कि इसमें सबसे कम रेटिंग है। कूड़ा फ्री शहर में देश में पहला स्थान हासिल करने वाले इंदौर को पांच और सूबे में पहला स्थान हासिल करने वाले बठिंडा को दो स्टार रेटिंग मिली। वहीं ओडीएफ में इंदौर को थ्री प्लस और बठिंडा को भी सिर्फ लुधियाना के बराबर सामान्य रैंकिंग मिली।
इस बार जाग जाओ, इन चार चरणों में तय हुई है रैकिंग
डायरेक्ट ऑब्जर्वेशन: इस चरण में लुधियाना को 1250 में से 1016 अंक हासिल हुए। यह अंक शहर के रिहायशी व कॉमर्शियल इलाकों में साफ सफाई के प्रबंध, पब्लिक व कम्युनिटी टॉयलेट की साफ सफाई, सब्जी मंडी में सफाई, रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड पर सफाई, स्लम एरिया में सफाई व शहर में स्वच्छता सर्वेक्षण के लगे होर्डिंग के आधार पर मिले। इसमें शहर की परफॉर्मेंस संतोषजनक रही। इस श्रेणी में इंदौर को 1241 और बङ्क्षठडा को 1060 अंक मिले।
सर्विस लेबल प्रोग्रेस: इस चरण में लुधियाना को 1250 में से सिर्फ 316.81 अंक मिले। यह अंक कूड़ा कलेक्शन व उसे डंप तक पहुंचाने, कूड़ा निस्तारण व सीवरेज की सफाई के आधार पर मिले। इंदौर को इस श्रेणी में 1238.88 व बठिंडा को 934.7 अंक हासिल हुए।
सिटीजन फीड बैक: सिटीजन फीडबैक में 1250 में से 840.18 अंक मिले। यह अंक सर्वेक्षण टीम ने शहर के लोगों से पूछे गए अलग-अलग सवालों के आधार पर दिए गए हैं। इसके अलावा स्वच्छता एप, ओडीएफ स्टेटस और लोगों की भागीदारी के आधार पर मिले। इस श्रेणी में इंदौर को 1129.21 व बठिंडा को 1025.48 अंक मिले।
सर्टिफिकेशन: खुले में शौच मुक्त और कूड़ा मुक्त शहर के लिए रेटिंग की गई। इस श्रेणी में लुधियाना को 1250 में से 350 अंक मिले, जबकि इंदौर को 1050 और बठिंडा को 500 अंक मिले।
लोग दिलचस्पी दिखाते तो अलग होती तस्वीर
स्वच्छ सर्वेक्षण में शहरवासियों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिसका परिणाम यह रहा कि इस कैटेगिरी में अंक कम मिले। लुधियाना शहर के सिर्फ 1901 लोगों ने इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया। देश में पहले स्थान पर रहने वाले इंदौर की बात करें तो वहां के 2.44 लाख और सूबे में पहला स्थान हासिल करने वाले बङ्क्षठडा के 8163 लोगों ने इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया। लोगों की भागेदारी कम होने के पीछे कहीं न कहीं नगर निगम की तरफ से लापरवाही बरती गई और लोगों को इसके लिए जागरूक नहीं किया गया।
चुपके से आई थी सर्वेक्षण टीम और तय की रेटिंग
स्वच्छ सर्वेक्षण के लिए इस बार एक तो जीपीएस व एमआइएस का प्रयोग किया गया, जिसके लिए केंद्रीय स्तर पर ऑनलाइन डाटा लिया गया। इसके अलावा केंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्रालय की टीम शहर में बिना बताए आई और सर्वे करके चली गई, जिसकी सूचना निगम अफसरों को नहीं दी गई। इससे पहले टीम जब शहर में आती थी तो निगम अफसर उन्हें शहर के अलग-अलग हिस्सों में घुमाते थे और उसके बाद वह रेटिंग तय करते थे।