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कार्यकर्ताओं ने कहा हार लाओ, वाजपेयी बोले मुझे तो जीत चाहिए

13 दिन प्रधानमंत्री रहने के बाद भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के कोने-कोने में घूम रहे थे। इस दौरान उनका लुधियाना आना हुआ। चार नंबर डिवीजन के पास घाटी मोहल्ला में कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग थी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 08:45 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 08:45 AM (IST)
कार्यकर्ताओं ने कहा हार लाओ, वाजपेयी बोले मुझे तो जीत चाहिए
कार्यकर्ताओं ने कहा हार लाओ, वाजपेयी बोले मुझे तो जीत चाहिए

राजेश शर्मा, लुधियाना

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13 दिन प्रधानमंत्री रहने के बाद भाजपा के दिग्गज नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी देश के कोने-कोने में घूम रहे थे। इस दौरान उनका लुधियाना आना हुआ। चार नंबर डिवीजन के पास घाटी मोहल्ला में कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग थी। कार्यकर्ताओं में गजब का उत्साह था। वाजपेयी आए तो कार्यकर्ता नारेबाजी करने लगे। सभी लोग उनका स्वागत करने लगे। पीछे से किसी ने आवाज लगाई और कहा कि हार लाओ। हाजिरजवाबी के लिए मशहूर वाजपेयी घूमे और आवाज लगाने वाले कार्यकर्ता से कहने लगे हार नहीं मुझे तो जीत चाहिए। कुछ देर तो वहां खड़े लोग गहरी बात को समझ ही नहीं पाए। कुछ देर सन्नाटे के बाद हंसी के फव्वारे छूट पड़े। इसमें वाजपेयी भी शामिल थे। लुधियाना के पुराने कार्यकर्ता आज भी इस किस्से को याद करके उस महान व्यक्तित्व के प्रति नमन हो जाते है।

जैसा कि आरएसएस के पूर्व विभाग संघचालक फूलचंद जैन ने बताया वाजपेयी साहब ने कहा कमर में दर्द है ऊपर की बर्थ पर नहीं बैठ सकता

कारोबारी सोहनलाल जैन के परिवार से वाजपेयी साहब के निजी संबंध थे। उनके पारिवारिक समारोह में एक बार वह मेहमान हुए। मैं और कुछ सीनियर नेता समारोह के बाद उन्हें लेकर सर्किट हाउस आ गए। उन्होंने शाम को ही वापस दिल्ली जाने की इच्छा जता दी। सर्किट हाउस पहुंचते ही वह नहाने चले गए। इस दौरान हम लोगों ने उनके लिए ट्रेन की सीट बुक करवा दी। हम लोग उन्हें लेकर स्टेशन पहुंच गए। वहां जाकर पता चला कि ट्रेन तो दो घंटे लेट है। उन्हें वापस सर्किट हाउस जाने का निवेदन किया पर नहीं माने। हमने स्टेशन मास्टर से कहलवा कर उनके लिए एक कमरा खुलवा लिया। इस दौरान उनकी कमर में दर्द शुरू हो गया। चर्चा चली तो बात निकली की उनके लिए जो टिकट बुक करवाई गई है वह ऊपर वाली बर्थ है। इतने में ट्रेन आ गई। उन्होंने ट्रेन की ऊपरी बर्थ पर जाने में असमर्थता जता दी। हमने टीटीई को ढूंढा। वाजपेयी साहब का परिचय देते हुए सीट बदलने का निवेदन किया। टीटीई मान गया और उन्हें नीचे की सीट अलाट कर दी। अब सोचता हूं कि ट्रेन का लेट होना हमारी खुशकिस्मती ही थी। इन दो घंटे और मिले उस महान नेता के सानिध्य में।

जैसा कि इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन एमएम व्यास ने बताया


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