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प्रभु के सिमरन बिना दुखों में उलझ कर रह जाता है जीवन

समराला चौक स्थित आश्रम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने अध्यात्मिक प्रवचनों का आयोजन किया गया। जिसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या हरि दीपिका भारती ने आई हुई संगत के समक्ष अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रभु के सुमरण के बिना जीव दुखों में ही उलझ कर रह गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Mar 2019 05:00 AM (IST)Updated: Sat, 23 Mar 2019 05:00 AM (IST)
प्रभु के सिमरन बिना दुखों में उलझ कर रह जाता है जीवन
प्रभु के सिमरन बिना दुखों में उलझ कर रह जाता है जीवन

जेएनएन, लुधियाना : समराला चौक स्थित आश्रम में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ने अध्यात्मिक प्रवचनों का कार्यक्रम करवाया। इसमें सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की परम शिष्या हरि दीपिका भारती ने संगत के समक्ष अपने विचार रखते हुए कहा कि प्रभु के सिमरन के बिना जीव दुखों में ही उलझ कर रह गया है। कभी भी वह सुख व परम आनंद की प्राप्ति नहीं कर सकता। क्योंकि प्रभु की भक्ति को प्राप्त किए बिना इंसान के समस्त संशय व प्रश्नों का निवारण कदापि संभव नही है।

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साध्वी ने बताया कि परमात्मा ने यह मानवीय जीवन अपने दर्शन व भक्ति के लिए दिया है। यदि खान में कोयला न निकले तो उस खान की कोई कीमत नहीं। यदि फूल से खुशबु न आए तो फूल में कोई गुण नहीं। यदि लकड़ी से आग न निकले तो लकड़ी किसी काम की नहीं। यदि आइने में परछाई न दिखे तो उस आइने का कोई महत्व नहीं। इसी प्रकार इस तन में आकर यदि कोई व्यकित प्रभु की भक्ति न करे तो उसके जीवन का कोई अर्थ नहीं। हमारे महापुरुष कहते हैं कि परमात्मा को देखने के बाद ही सही अर्थ में जीवन की शुरुआत होती है। संत के बिना प्रभु के दर्शन नहीं

उन्होंने कहा कि संत के बिना कोई भी प्रभु के दर्शन नहीं करवा सकता। जैसे रोगी को डॉक्टर की जरूरत है, छात्र को अध्यापक की जरूरत है, उसी प्रकार मानव को एक पूर्ण गुरु की आवश्यकता है। गुरु की शरणागत होकर ही वह उस तकनीक को जान सकता है। जिसके द्वारा प्रभु का दर्शन हो सके और उसके इस जीवन का जो लक्ष्य है वह पूरा हो सके। साध्वियों ने किया भजन गायन

भारती ने कहा कि आज एक इंसान के जीवन में कई प्रकार के संबंध आते हैं। पहला जन्म जात का संबंध, जो हमें जन्म से प्राप्त होता है। दूसरा सपदिक संबंध जब एक इंसान यौवन अवस्था को प्राप्त करता है तो रिश्तों नातों में फस जाता है। तीसरा संबंध होता है शाशवत संबंध, जो इस संसार से नहीं और न ही संसार की अन्य किसी वस्तु से होता है। यह संबंध होता है उस भगवान से जो हमारा अपना है। और इसी शाशवत संबंध से जोड़कर गुरु भी हमें उस प्रभु से मिलाता है। अंत में साध्वियों ने सुमधुर भजनों का गायन किया गया।


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