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धर्म पालन के लिए धन की नहीं भावना की जरुरत है

कृष्ण गोपाल लुधियाना जिस चमन में गुलाब नहीं वह चमन ही क्या जिस जिदगी में धर्म नहीं वह जिदग

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Aug 2021 06:17 PM (IST)Updated: Wed, 18 Aug 2021 06:17 PM (IST)
धर्म पालन के लिए धन की नहीं  भावना की जरुरत है
धर्म पालन के लिए धन की नहीं भावना की जरुरत है

कृष्ण गोपाल, लुधियाना :

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जिस चमन में गुलाब नहीं, वह चमन ही क्या, जिस जिदगी में धर्म नहीं वह जिदगी ही क्या, प्रभु महावीर ने कहा कि धर्म का पालन गरीब से गरीब भी कर सकता है। धर्म पालन के लिए धन नहीं दिल और भावना की जरुरत है। भावना के बिना आचरण नहीं जा सकता।

उन्होंने कहा कि आचरण के बिना जीवन महल कभी ऊंचा उठ नहीं सकता। आचरण मिश्री में मिठास के समान है, फूल में खुशबू के समान है। इसका अनुसरण सभी को चातुर्मास की सभाओं में संतों के मुखारविद से श्रवण करना चाहिए। यही चातुर्मास का महत्व है। इस पर जैन समुदाय के बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने तर्क रखे है। चातुर्मास में करे जप, जप व स्वाध्याय का अनुसरण

जवाहर लाल ओसवाल, विनोद जैन सीएचई, जितेंद्र जैन, राजीव जैन चमन ने कहा कि मानव मन के अंधकार को दूर करने वाला इस जगत में कोई डा. वैद्य व हकीम नहीं हो सकता। डाक्टर रोग मिटा सकता है, लेकिन मानव के अंदर जो अंधकार छाया हुआ है उसे दूर करने वाला अगर कोई पथ प्रदर्शक है तो वह सदगुरु ही है जो सत्य का रास्ता दिखाता है। इसलिए इस चातुर्मास में सदगुरु की शरण में जाकर जप, तप व स्वाध्याय का हम सभी को अनुसरण करना चाहिए।

संतों के सानिध्य से जीवन में आता परिवर्तन

कोमल जैन ड्यूक, सुनील जैन, अरिदमन जैन, विशाल जैन ने कहा कि

चातुर्मास के दौरान संतों के सानिध्य में आने जीवन में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। चूंकि हर धर्म व संप्रदाय में चातुर्मास का महत्व है। इसलिए इन अवधि के समय तप, ज्ञान व ध्यान की ओर अग्रसर होना चाहिए। आलस्य को त्याग कर ज्ञान की वृद्धि के लिए उपदेश श्रवण करना चाहिए। श्रावक और श्राविकाओं को संयम को अपनाकर वृत्ति को प्रभु की ओर लगाना चाहिए, यह चातुर्मास की परिभाषा है।

स्वाध्याय करने से जीव को मिलती शांति

धीरज सेठिया, सुरेश जैन, अनिल जैन लक्की ने कहा कि चातुर्मास जप, तप व स्वाध्याय का संगम है। स्वाध्याय करने से जीव को शांति मिलती है। भले ही संसार में अनेक वस्तुओं से शांति मिलने की बात कहीं गयी हो। पर जब तक आत्मिक शांति नहीं होगी, तब तक जीवन सुखी नहीं होगा। प्रवचनों के माध्यम से समाज में चेतना लाने का प्रयास करते रहे। राग द्वेष के भाव का क्षय करना ही चातुर्मास है।


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