Move to Jagran APP

सेहत के लिए काफी खतरनाक है पराली का धुआं, इन बीमारियाें का खतरा ज्यादा Ludhiana News

वर्ष 2016-2017 में नवंबर दिसबंर में तो हालात इतने बदतर हो गए थे कि खुली हवा में सांस लेना भी दूभर हो गया था। लोग अपने घरों से निकलने से कतराने लग गए थे।

By Sat PaulEdited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 01:27 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 11:11 AM (IST)
सेहत के लिए काफी खतरनाक है पराली का धुआं, इन बीमारियाें का खतरा ज्यादा Ludhiana News

लुधियाना, [आशा मेहता]। पराली न जलाए जाने के लिए हो रहे प्रयास अपना रंग दिखा रहे हैं परंतु जागरूक किसानों के बीच अब भी हजारों की संख्या में किसान पराली जलाने से तौबा नहीं कर रहे हैं। सूबे में करीब 30 लाख हेक्टेयर रकबे में धान की खेती से करीब 22 लाख टन पराली पैदा हो रही है। किसान धान की फसल को तो मुनाफे के लिए काट रहे हैं लेकिन फसल के अवशेष आग के हवाले कर रहे हैं। धान की कंबाइनों के साथ कटाई के बाद खेतों में बचने वाले पराली और नाड़ के बड़े हिस्से को गेहूं की बिजाई से पहले खेत में ही जला दिया जाता है। इससे न केवल भूमि की उपजाऊ शक्ति बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, जिसका खामियाजा इंसानोंं के अलावा जीव जंतु भी भुगतते हैं।

loksabha election banner

करोड़ों रुपए की नाइट्रोजन और सल्फर नष्ट, स्मॉग का खतरा अलग

पंजाब में हर साल जलाई जाने वाली पराली से करीब 1.50 से 1.60 लाख टन नाइट्रोजन और सल्फर के अलावा जैविक कार्बन भी नष्ट हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर इतनी मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर को बाजार से खरीदना पड़े तो इसके लिए 160 से 170 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। पीएयू के वैज्ञानिकों की शोध के अनुसार एक एकड़ की पराली में करीब 18-10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 3.2-3.5 किलो फासफोरस, 56-60 किलो पोटाश, 4-5 किलो सल्फर, 1150-1250 किलो जैविक कार्बन और दूसरे सूक्ष्म तत्व होते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो एक टन पराली जलाने से चार सौ किलो जैविक कार्बन, 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलो फासफोरस, 25 किलो पोटाश, 1.2 किलो सल्फर व मिट्टी के बीच के सूक्ष्म तत्वों का नुकसान होता है। वहीं इतने बड़े स्तर पर पराली को खेतों में जलाएं जाने से कार्बन डाइक्साइड, कार्बन मनो ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रिक आक्साइड जैसी गैसें पैदा होती हैं। पीएयू के अनुसार धान की पराली में से निकलने वाली गैसों में 70 प्रतिशत कार्बन डाइक्साइड, 7 प्रतिशत कार्बन मोनोआक्साइड, 0.66 प्रतिशत मीथेन व 2.09 प्रतिशत नाइट्रिक आक्साइड जैसी गैसेंं और आर्गेनिक कंपाउंड होते हैं। जिससे इंसानों व पशुओं की सेहत को भी नुकसान होता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में इसे लेकर केस भी लगा हुआ है।

हवा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव

पराली जलने से कई बार हालात इस कदर बदतर हो जाते हैं कि कई जिलों में अक्तूबर से दिसंबर के बीच में एयर क्वालिटी इंडेक्स 500 के खतरनाक स्तर पर भी पहुंच जाता है। एयर क्वालिटी इंडेक्स जब 300 से पार हो जाए और तो यह सेहत के लिए बेहद घातक हो जाता है। वर्ष 2016-2017 में नवंबर दिसबंर में तो हालात इतने बदतर हो गए थे कि खुली हवा में सांस लेना भी दूभर हो गया था। लोग अपने घरों से निकलने से कतराने लग गए थे।

सूक्ष्म जीव और भूमि के मित्र कीट भी खतरे में

मुख्य खेतीबाड़ी अफसर डा. बलदेव सिंह के कहते हैं कि अगर हम खेतों की मिट्टी में मौजूदर सूक्ष्म जीवों से खेेत में जैव विविधता बनी रहती है। सूक्ष्म जीव खेत में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाने में मददगार होते हैं। लेकिन जब खेतों में पराली जलाई जाती है, तो उससे भूमि में मौजूद सूक्ष्म जीव और मित्र कीट भी खत्म हो जाते हैं।

भ्रूण वृद्धि पर असर डालता है धुआं

एसपीएस अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. वीनस बांसल कहती हैं कि पराली का धुआं गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत बड़ा खतरा है। यदि कोई गर्भवती महिला बार बार धुएं के संपर्क में आती है, तो उसका प्रभाव भ्रूण वृद्धि पर पड़ता है। गर्भ में भ्रूण की वृद्धि पर इसका सीधा असर पर पड़ता है। पूरी ऑक्सीजन न मिलने पर समय से पहले लेबर पेन खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा जो गर्भवती महिलाएं अस्थमा से पीडि़त हैं उनके लिए तो यह धुआं जानलेवा साबित हो सकता है।

ब्रेन डैमेज का खतरा भी बरकरार

डीएमसीएच की न्यूरोलाजिस्ट डाॅ. मोनिका सिंगला कहती हैं कि जब पराली जलाई जाती है तो उसमें से कार्बन डाइक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसेंं पैदा होती है। यदि इन गैसों के संपर्क में कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक रहे, तो इससे ब्रेन डैमेज हो सकता है। याददाश्त बहुत कम हो सकती है। 

फेफड़ों की इन्फेक्शन का कारण बनता है पराली का धुआं

पंचम अस्पताल के हृदय रोग विशेषज्ञ डा. आरपी सिंह के अनुसार पराली का धुआं लोगों के फेफड़ों और हार्ट को काफी नुकसान पहुंचाता है। एक सप्ताह तक यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति पराली के धुएं को जाने अनजाने में श्वास के जरिए अपने शरीर में ले जाता है तो इससे उसे फेफड़ों में इन्फेक्शन और फेफड़ों का दमा हो सकता है। कई सालों तक लगातार धुएं से प्रभावित होने पर व्यक्ति को फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है। यहीं नहीं, पराली के धुएं में मौजूद खतरनाक गैसों के कण जब श्वास के जरिए शरीर में दाखिल होते हैं तो खून नाडिय़ों में जम सकता है। जिससे नाडिय़ां सिकुड़ जाती हैं। खून चिपचिपा हो जाता है। नाड़ी की लाइजिंग डैमेज हो जाती है। ऐसे में हार्ट अटैक की संभावना काफी संभावना रहती है।

मरीजों के साथ किसानों की सेहत को भी खतरा

प्रदूषण की वजह से हवा की क्वालिटी के लगातार खराब रहने से फेफड़ों, श्वास, हार्ट से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती है। खासकर, अस्थमा, कैंसर व हृदय रोगियों के लिए। ऐसा नहीं कि किसान इन बीमारियों की चपेट में नहीं आते। बल्कि उन्हें भी इन बीमारियों की चपेट में आने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। क्योंकि वह खेतों के आसपास रहते हैं। मोहनदेई ओसवाल अस्पताल के छाती रोग विशेष डा. प्रदीप कपूर कहते हैं कि धान की कटाई के सीजन में तो उनके अस्पताल में श्वास व फेफड़ों के रोगों के मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है। दमा, सीओपीडी, हार्ट व किडनी रोगों से पीडि़त मरीजों के लिए पराली का धुआं बेहद खतरनाक है। यदि मरीज इस धुएं के संपर्क में लंबे समय तक रहे तो उनके फेफड़े खराब हो सकते हैं। हार्ट पर स्ट्रेस बढऩे लगता है। जिससे हार्ट अटैक की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। 

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.