110 साल पहले शुरू हुआ होजरी का कारोबार, बना इस बड़े शहर की शान Ludhiana News
लुधियाना शहर में पंजीकृत एवं गैर पंजीकृत इकाइयों की संख्या 12 से 15 हजार के बीच है और करीब 15 हजार करोड़ रुपए का सालाना कारोबार हो रहा है।
लुधियाना, जेएनएन। सर्दियां आते ही लुधियाना के होजरी बाजार पर लग जाती हैं पूरी दुनिया की नजरें, उम्मीदें व आस। जुराब बनाने से शुरू हुआ यह कारोबार अब शहर की शान बन गया है। लगभग 110 साल पहले लुधियाना में जुराब बनाने का एक छोटा सा यूनिट स्थापित हुआ था। जुराब की इकाई से लगा यह पौधा आज वटवृक्ष बन गया है।
यहां के उद्यमियों की मेहनत, लगन एवं कार्यकुशलता और कुछ नया करने की धुन के चलते आज यहां की होजरी ने लुधियाना को विश्व में पहचान दिलाई है। देश का सबसे बड़ा होजरी कलस्टर लुधियाना में है। पहले शुरूआत में जुराब, मफलर, दस्ताना ही बनते थे यहां। आज लेडीज, जेंट्स, किड्स गारमेंट्स के अलावा शॉल, कंबल समेत हर तरह के होजरी, निटवियर एवं टेक्सटाइल उत्पाद बनाने का बड़ा हब बन गया है शहर।
रेडिमेड कपड़ों की बनवाई के साथ-साथ यहां पर डाइंग, निटिंग, स्पीनिंग, फिनिशिंग, प्रिंटिंग व पैकेजिंग, गारमेंट मशीनरी उद्योग समेत होजरी से जुड़े अन्य सेक्टर भी विकसित हो गए हैं। नतीजतन आज भी वूलेन गारमेंट में लुधियाना के मुकाबले कोई नहीं है। यह कलस्टर आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग से लेकर संपन्न परिवारों की गारमेंट संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। लुधियाना में बने वूलेन गारमेंट्स विश्व स्तरीय फैशन एवं क्वालिटी का मुकाबला करते हैं। हालत यह है कि आज शहर के घर-घर में होजरी इकाइयां हैं।
यूं पड़ा नाम ‘होजरी’
उद्यमियों का मानना है कि 20वीं सदी की शुरुआत में एक मुसलमान यहां पर जुराब की मशीन लाया था। यह डायलदार मशीन थी और इसे हाथ से घुमाते थे। गोलाकार मशीन में हौज़- ट्यूब के आकार का गोलाई में कपड़ा बुना जाता था। तभी से इसका नाम ‘होजरी’ पड़ गया। इसके बाद फ्लैट निटिंग मशीनें, इंटरलॉक मशीनें आ गईं। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यहां पर जुराब बनाने के नए यूनिट लगे। करीब 1930 में यहां कश्मीरी करीगर आ गए और उन्होंने भी कढ़ाई का काम शुरू किया। फिर फ्लैट निटिंग मशीनें बननी शुरू हो गईं। भारत पाक बंटवारे के बाद पाक से आए लोगों ने भी यहां पर होजरी की छोटी-छोटी इकाइयां लगाईं। वर्ष 1950 के बाद मोटराइज्ड एवं इलेक्ट्रिक सर्कूलर निटिंग मशीनें आ गईं। तब आर्डर देने के छह माह बाद मशीनें मिलती थीं। वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के बाद होजरी को पहला बूस्ट मिला। तब डिफेंस से गर्म कपड़ों का बड़ा आॅर्डर आया और साथ ही सरकारी खरीद भी शुरू हुई। तब उन्होंने शहर में 20-20 उद्यमियों को मिला कर छोटे डिस्ट्रिब्यूशन प्वाइंट्स (डीपी) बना दिए। डीपी ही सरकार को माल की बिक्री करती थी। यह सिस्टम चार पांच साल तक चला।
कुछ ऐसा रहा इंडस्ट्री का सफर
इसके बाद वर्ष 1964-65 में रूस से खरीदारी शुरू हो गई। इससे होजरी इंडस्ट्री को फिर से बूस्ट मिला। बड़े स्तर पर आर्डर आए और निर्माण शुरू हुआ। साथ ही इंडस्ट्री में नई तकनीक आई और हाईटेक विदेशी मशीनरी इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। वर्ष 1980 के बाद बुनाई मशीनों का कम्प्यूट्रीकरण हुआ। वर्ष 1990 में रूस के टूटने के बाद यहां की होजरी इंडस्ट्री को झटका लगा और उद्यमियों ने घरेलू बाजार की तरफ रुख किया। पहले यहां की होजरी सिर्फ सर्दियों पर ही फोकस रही, लेकिन बाद में गर्मी के मौसम के अलावा हल्की ठंड के लिए वस्त्र, अंडर गारमेंट्स, अत्याधिक ठंड के लिए थर्मल्स समेत हर सेक्टर में दबदबा बनाया। वर्ष 1997-98 में लुधियाना होजरी में बड़ी संख्या में विदेशी मशीनरी आई।
इतना है कारोबार
पहले होजरी पुराना बाजार, माधोपुरी, बाजवा नगर, सुंदर नगर, शिवपुरी में ही सीमित थी, लेकिन अब इंडस्ट्रियल एरिया, बहादुरके रोड, फोकल प्वाइंट्स, दोराहा और लाढोवाल की तरफ गांव भट्टियां तक बढ़ गई। ज्यादातर होजरी इकाइयां अनाधिकृत क्षेत्र में लगी हैं। माना जाता है कि शहर में पंजीकृत एवं गैर पंजीकृत इकाइयों की संख्या 12 से 15 हजार के बीच है और करीब 15 हजार करोड़ रुपए का सालाना कारोबार हो रहा है। इसमें से करीब सात-आठ हजार करोड़ का कारोबार वूलन सेक्टर का ही है।
चीन व बांग्लादेश बने टीस
निटवियर अपैरल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ लुधियाना के प्रेसिडेंट सुदर्शन जैन का कहना है कि हालांकि लुधियाना की होजरी इंडस्ट्री ने काफी तरक्की की है, वूलन में आज भी कोई इसे टक्कर देने की स्थिति में नहीं है, लेकिन इंडस्ट्री के समक्ष चुनौतियां भी बहुत हैं। चीन से आयात हो रहा सस्ता गारमेंट इंडस्ट्री की टीस बन गया है। इसके अलावा बांग्लादेश भी नई चुनौती बन कर उभरा है। ऐसे में यहां की इंडस्ट्री को विचारधारा बदल कर एक दायरे से बाहर निकल कर आगे बढ़ना होगा। साथ ही नए विजन के साथ ओवरसीज मार्केट पर फोकस करना होगा।
बदलनी होगी विचारधारा
निटवियर क्लब के जनरल सेक्रेटरी नरिंदर मिगलानी ने कहा कि लुधियाना में अधिकतर इकाइयां माइक्रो, स्मॉल एंड मिडियम सेक्टर में स्थापित हैं। संसाधनों की कमी के कारण वह तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। इंडस्ट्री को बाजार में आ रहे बदलाव के अनुसार ही खुद को तैयार करना होगा, अन्यथा आगे का सफर काफी कठिन हो जाएगा। क्योंकि बदलते परिवेश का मुकाबला प्लानिंग के साथ ही किया जा सकता है। इसके अलावा सरकार को भी सहयोग करना होगा ताकि इस उद्योग नगरी की शान बरकरार रहे।
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