तड़प रिहा सौ साल तों मगरों, जलियांवाला बाग अजे..
गांव रकबा में बाबा बंदा सिंह बहादुर भवन में जलियांवाला बाग शहीदी शताब्दी को समर्पित पंजाबी कवि दरबार करवाया गया।
जागरण संवाददाता, लुधियाना : बाबा बंदा सिंह बहादुर फाउंडेशन इंटरनेशनल की ओर से पंजाबी लोक विरासत अकादमी के सहयोग से मुल्लांपुर के गांव रकबा में बाबा बंदा सिंह बहादुर भवन में जलियांवाला बाग शहीदी शताब्दी को समर्पित पंजाबी कवि दरबार करवाया गया। इसमें कवियों ने अपनी कविताएं पेश की।
शुरुआत में पंजाबी लोक विरासत अकादमी के चेयरमैन प्रो. गुरभजन गिल ने 'तड़प रिहा सौ साल तों मगरों, जलियांवाला बाग अजे, डायर ते उड़ायर रल के, गाउंदे ओही राग आ.. कविता पेश की। वहीं प्रो. रवींदर भट्ठल ने इह मिट्टी भारतवासियां नू हलून-हलून जगांदी रही, दारदी दंदी दा सबक वे पढे़या नूं पढ़ांदी रही, सुत्ते खून नूं जगांदी रही, इह मिट्टी खामोश नहीं बैठी..कविता पेश। इसके बाद कवि सतीश गुलाटी, तरलोचन लोची, जसवंत जफर, गुरचरण कौर कोचर, हरबंस मालवा, राजदीप तूर, हरदयाल सिंह, पलविदर वासी ने भी एक के बाद एक कविताएं प्रस्तुत की। कवि दरबार के बाद प्रो. गुरभजन गिल ने कहा कि सौ साल पहले जलियांवाला बाग में एक साथ शहीद होकर हिदू, सिख, मुसलमान और समूह भाईचारे ने हमें संयुक्त जीने-मरने का सबक पढ़ाया था। वह दोबारा याद करने और दोहराने की जरूरत है क्योंकि मूलवादी फिरकाप्रस्त जो बोली पढ़ा रहे हैं, वह देश की सुंदरता के बुनियादी गुण को नुकसान पहुंचा रही है। ब्रिटिश पार्लियामेंट को जलियांवाला नरसंहार पर माफी मांगनी चाहिए: केके बावा
वहीं केके बावा ने कहा कि खालसा पंथ की साजना वाले दिन जलियांवाला बाग में बेकसूर पंजाबियों को गोलियां मारना विश्व की सबसे बड़ी घिनौनी करतूत थी। इसके लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट को माफी मांगने की जरूरत है। इस दौरान चेतना प्रकाशन लुधियाना की ओर से पाकिस्तानी लोक कवि बाबा नजमी की रचना 'मैं इकबाल पंजाबी दा इकबाल माहल' का विमोचन किया गया।