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ARTICLE 370 : कश्मीरी पंडितों का छलका दर्द, बोले- कुछ समय के लिए वादी क्या छोड़ी, सब लुट गया

लुधियाना में रहने वाले कश्मीरी पंडित डॉ. कौल का कहना है कि अपने पुश्तैनी मकान में जाने से वे खुद को रोक नहीं सके लेकिन अपने घर पर दूसरे का कब्जा देख आज भी दिल रोता है।

By Sat PaulEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 12:54 PM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2019 05:09 PM (IST)
ARTICLE 370 : कश्मीरी पंडितों का छलका दर्द, बोले- कुछ समय के लिए वादी क्या छोड़ी, सब लुट गया
ARTICLE 370 : कश्मीरी पंडितों का छलका दर्द, बोले- कुछ समय के लिए वादी क्या छोड़ी, सब लुट गया

लुधियाना [भूपेंदर सिंह भाटिया]। जियें तो अपने बागीचे में गुलमोहर के तले, मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए। दुष्यंत की लिखीं यह पक्तियां कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करने के लिए काफी हैं। लगभग 30 साल पहले कश्मीर में बिगड़े माहौल को देखते हुए हजारों कश्मीरी पंडित परिवार रातों-रात उन वादियों को छोड़ने के लिए मजबूर हुए, जहां वे वर्षों से रहते आए थे। परिवार ने सुरक्षा के लिए कुछ समय के लिए वादी क्या छोड़ी, उनका घर-बार सब लुट गया।

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यह कहानी हर कश्मीरी पंडित की है। एम्स से एमडी करने वाले डॉ. टीके कौल के परिवार ने भी इन्हीं हालात में अपनी जन्मभूमि छोड़ दी थी। खास बात यह है कि जब वह वापस श्रीनगर गए, तो उनके चार मंजिला घर पर कब्जा हो चुका था। जब उन्होंने उनसे पूछताछ की तो सीधा जवाब मिला कि उन्होंने किसी अन्य व्यक्ति से मकान खरीदा है।

डॉ. कौल कहते हैं कि इसके बाद वह कई बार श्रीनगर गए। अपने पुश्तैनी मकान में जाने से वे खुद को रोक नहीं सके, लेकिन अपने घर पर दूसरे का कब्जा देख आज भी दिल रोता है। जब भी घाटी जाते हैं, तो उस मकान के सामने खड़े होकर रो पड़ते हैं।

उम्‍मीद थी हालात ठीक होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ

इस मकान में बचपन बीता था। यहां कभी न मिटने वाली यादें हैं। एम्स दिल्ली से एमडी करने वाले डॉ. कौल के अनुसार जब वह 28 वर्ष की उम्र में एमडी कर श्रीनगर लौटे, तो उन्हें अच्छी जॉब नहीं मिली। 1980 में घाटी छोड़ लुधियाना के डीएमसी अस्पताल में नौकरी ज्वाइन की। माता-पिता और भाई सभी श्रीनगर में रहते थे। 1990 में हालात ज्यादा बिगड़ने के बाद जब कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ रहे थे, तो उनके परिवार ने रातोंरात घाटी छोड़ दी और लुधियाना आ गए। उम्मीद थी कि हालात ठीक होंगे, तो लौट जाएंगे, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो फैसला लिया है, वह सात दशकों में कोई नहीं ले सका। ऐसा फैसला 56 इंच के सीने वाला ही ले सकता है।

आज से हम भी हिंदुस्तानी

होशियारपुर में रह रहे कश्मीरी पंडितों ने भी जमकर जश्न मनाया। कहा कि आज से हम भी हिंदुस्तानी हो गए। यह ऐतिहासिक व सराहनीय फैसला है। होशियारपुर में रह रहे सुनील धर, राजेश भट्ट व डॉ. एसके जलाली ने कहा कि अब रोजगार के द्वार खुलेंगे।

जिस जमीन से यादें जुड़ी थीं, वो हाथों से छिन गई

घाटी छोड़कर लुधियाना में आ बसे डॉ. दीपक भट्ट का दर्द भी कम नहीं है। वे कहते हैं, जब हमारे परिवार ने घाटी छोड़ी तो मैं दसवीं में पढ़ता था। हालात काफी खराब थे। एक दिन पिताजी ने कहा कि अब हमें यहां से निकल जाना चाहिए। हमने रातों-रात तैयारी की और भय के बीच घाटी को अलविदा कह दिया। आज भी हमें वहां बिताए दिन याद आते हैं। डीएमसी अस्पताल में तैनात डॉ. भट्ट कहते हैं कि पलायन का हमारे माता-पिता को बहुत दर्द हुआ।

हम काफी छोटे थे और जम्मू आकर पढ़ाई करने लगे, तो नए दोस्त मिल गए। फिर मेडिकल की पढ़ाई में नए फ्रेंड्स बने, लेकिन हमारे अभिभावकों के दिलो-दिमाग में आज भी पलायन का दर्द रहा। जिस घर और जमीन से अपनी यादें जुड़ी थी, वह उनके हाथों से छिन गई। हमेशा इस बात का मलाल रहा। पिताजी एजी कार्यालय में अफसर थे। हमेशा आतंकियों के निशाने पर रहते थे। सही सलामत घर लौटने तक डर बना रहता था। एक दिन घाटी हमेशा के लिए छोड़ने का मन बना लिया।

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