मनुष्य अपने जीवन संतुलित बनाएं : अरुण मुनि
एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में संघशास्ता शासन प्रभावक गुरुदेव श्री सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव श्री अरुण मुनि महाराज के सानिध्य में प्रार्थना सभा हुई।
संस, लुधियाना :
एसएस जैन स्थानक सिविल लाइंस में संघशास्ता शासन प्रभावक गुरुदेव श्री सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य आगमज्ञाता गुरुदेव श्री अरुण मुनि महाराज के सानिध्य में प्रार्थना सभा हुई। गुरुदेव आगामज्ञाता अरुण मुनि म. ने कहा कृपा जीवन को संतुलित करे, वीतराग सूत्र समियाएं धम्मो आरिएहि पवेइए, आर्य महापुरुषों ने समभाव में धर्म कहा है।
जर्मनी की एक पुरानी बोध कथा है। यह कथा वैसे तो हमारे देश में भी है। मैंने किसी जर्मन पुस्तक में पढ़ा था। एक व्यक्ति पर भगवान खुश हुए और बोले, तू मांग क्या दूं? आदमी ने कहा मैं सोचकर कहूंगा। प्रभु ने समय दिया। आदमी को समय मिला, इसलिए सोचकर मांगा। ऐसा वरदान दें कि आज तक आपने किसी को न दिया हो, किसी ने न मांगा हो। भगवान भी एक क्षण सोच में पड़ गए, फिर बोले तू चाहे जहां भी जाएगा, तेरे शरीर की छाया नहीं पडे़गी। भूत प्रेत और देवताओं के लिए तो स्वाभाविक है। ऐसा लोग कहते हैं, लेकिन तुझे मेरी ओर से यह वरदान कि तू प्रकाश या धूप में चले तो तेरी परछाई नहीं पडे़गी। आदमी बहुत खुश हो गया कि ऐसा वरदान तो किसी को नहीं दिया। उसे ऐसा लगा कि अब तो मेरी कितनी महिमा बढ़ेगी। वह वरदान पाकर पहले ही दिन ऐसे बाजार में निकला, सब देखते हैं कि इसकी तो छाया ही नहीं है? किसी दुकान में जाता, तो व्यापारी दुकानें बंद कर देते है कि यह तो कोई भूत-प्रेत हो सकता है। सभी इससे भागने लगे, परेशानी ज्यादा तब और बढ़ गई। जब पत्नी ने भी द्वार बंद कर दिया। बच्चों ने भी कहा ये हमारे पिता जी नहीं है। चौबीस घंटे में वरदान श्राप बन गया। आपके शरीर की परछाई नहीं है, आप प्रेत बन गए, ये परछाई कैसे खो गई? जिसकी परछाई खो जाए तो जीवन में कितनी भारी मुसीबत आ जाती है। छाया खोने से प्राणी प्रेत बन जाता है, उसके साथ ही ऐसा हुआ।