उधार व माल वापसी के चक्रव्यूह में उलझा हौजरी उद्योग
हौजरी उद्योग से जुड़े उद्यमी लंबे उधार और माल वापसी के चक्रव्यूह में उलझ गए हैं। 60 दिन का पेमेंट सर्किल 180 दिन पर पहुंच गया है।
लुधियाना [राजीव शर्मा]। हौजरी उद्योग से जुड़े उद्यमी लंबे उधार और माल वापसी के चक्रव्यूह में ऐसे उलझे हैं कि उनको बाहर निकलने का रास्ता नहीं सूझ रहा है। आर्थिक सुस्ती एवं बाजार में तरलता की कमी के चलते हालत यह हो गई है कि 60 दिन का पेमेंट सर्किल अब 180 दिन पर पहुंच गया है। साथ ही औसतन तीस फीसद की माल वापसी भी उद्यमियों के लिए जी का जंजाल बन गई है, जिसे उद्यमियों को मजबूरन नुकसान उठा कर बेचना पड़ रहा है। इसके अलावा उद्यमियों की करीब दस फीसद पेमेंट हर साल बाजार में डूब जाती है।
एक अनुमान के मुताबिक उद्यमियों का करीब पांच से छह हजार करोड़ उधार में फंसा रहता है। ऐसे में उद्योग के तमाम वित्तीय समीकरण गड़बड़ा रहे हैं। कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण हौजरी का अधिकतर माल उधार पर बिकता है। यहां पर बड़े रिटेलर बिके हुए उत्पादों की पेमेंट ही करते हैं, जबकि अन सोल्ड माल निर्माता को वापस कर देते हैं। इसके अलावा बहुराष्ट्रीय ब्रांड जॉब वर्क पर माल बनवाते हैं और उसकी पेमेंट किस्तों में होती है।
वूल क्लब के चेयरमैन एवं रेज ब्रांड के निर्माता शाम बांसल का कहना है कि बाजार की हालत लगातार खराब हो रही है। कारपोरेट सेक्टर और बड़े रिटेलर अपनी शर्तों पर माल की पेमेंट करते हैं। उनका कहना है कि पहले दो माह में पेमेंट आती थी, अब छह माह से भी अधिक वक्त लग रहा है। इसके अलावा करीब तीस फीसद माल सीजन के खत्म होने पर वापस आ जाता है। हौजरी फैशन की आइटम है। इसे अगले साल बेचना संभव नहीं है। ऐसे में निर्माता घाटा उठाकर बेचने को मजबूर हैं। इससे उद्योग को बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा है।
निटवियर एंड टेक्सटाइल क्लब के चेयरमैन विनोद थापर का कहना है कि लंबे उधार ने उद्योग की कमर तोड़ दी है। उद्योग का करीब छह हजार करोड़ से अधिक उधारी में ही अटका हुआ है। दस फीसद रकम हर साल डूब जाती है। उनका कहना है कि मौजूदा चक्रव्यूह को तोडऩा संभव नहीं दिख रहा है।
उद्यमियों में जागरुकता की कमी : सुरिंदर सिंह
माइक्रो स्मॉल एंड मिडियम एंटरप्राइजेज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट के पूर्व उप निदेशक सुङ्क्षरदर सिंह का कहना है कि हालांकि सरकार ने लघु उद्योगों के लिए डीलेड पेमेंट एक्ट बना रखा है। इसमें यदि उद्यमी की पेमेंट नहीं आती तो वे कानून का रास्ता अपना सकता है, लेकिन जागरुकता की कमी के कारण उद्यमी इसका ज्यादा लाभ नहीं ले पा रहे हैं। दूसरे यहां पर ज्यादातर इकाइयां असंगठित क्षेत्र में स्थित हैं। उनके लिए यह रास्ता आसान नहीं है।
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